प्रशांत भूषण बोले- भरूंगा जुर्माना, लेकिन चुनौती का अधिकार, ट्वीट सुप्रीम कोर्ट, प्रधान न्यायाधीश का निरादर करने की मंशा से नहीं किए गए थे

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 31, 2020 04:58 PM2020-08-31T16:58:26+5:302020-08-31T19:14:13+5:30

अवमानना मामले पर भूषण ने कहा कि मैं पुनर्विचार याचिका दायर करने के अपने अधिकार को सुरक्षित रखता हूं, उच्चतम न्यायालय के निर्देश के अनुसार जुर्माना अदा करने का प्रस्ताव करता हूं।

Prashant Bhushan said - tweets were not made with the intention of disrespecting Supreme Court, Chief Justice | प्रशांत भूषण बोले- भरूंगा जुर्माना, लेकिन चुनौती का अधिकार, ट्वीट सुप्रीम कोर्ट, प्रधान न्यायाधीश का निरादर करने की मंशा से नहीं किए गए थे

अवमानना के इस मामले में उन्हें दोषी ठहराने के फैसले पर पुनर्विचार की उनकी याचिका पर निर्णय होने तक अमल नहीं किया जायेगा। (photo-ani)

Highlightsप्रशांत भूषण ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि ट्वीट उच्चतम न्यायालय, प्रधान न्यायाधीश का निरादर करने की मंशा से नहीं किये गए थे।अवमानना के दोषी अधिवक्ता प्रशांत भूषण को सोमवार को सजा सुनाते हुये उन पर एक रुपए का सांकेतिक जुर्माना किया।एक रुपए की राशि 15 सितंबर तक जमा नहीं करने पर उन्हें तीन महीने की कैद भुगतनी होगी और तीन साल के लिये वकालत करने पर प्रतिबंध रहेगा।

नई दिल्लीः अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सोमवार को कहा कि वह अवमानना मामले में उच्चतम न्यायालय की तरफ से लगाया गया एक रुपये का सांकेतिक जुर्माना भरेंगे लेकिन यह भी कहा कि वह आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर कर सकते हैं।

भूषण पर अवमानना का मामला न्यायपालिका के खिलाफ उनके ट्वीट को लेकर चल रहा था। अधिवक्ता-कार्यकर्ता ने कहा कि वह न्यायपालिका का बहुत सम्मान करते हैं और उनके ट्वीट शीर्ष अदालत या न्यायपालिका का अपमान करने के लिए नहीं थे। भूषण ने प्रेस वार्ता में कहा, “ पुनर्विचार याचिका दायर करने का मेरा अधिकार सुरक्षित है , मैं अदालत द्वारा निर्देशित जुर्माने को अदा करने का प्रस्ताव देता हूं।”

शीर्ष अदालत द्वारा जुर्माना लगाए जाने के कुछ घंटों बाद उन्होंने कहा, “दोषी ठहराए जाने और सजा के खिलाफ उचित कानूनी उपाय के जरिये पुनर्विचार याचिका का मेरा अधिकार जहां सुरक्षित है, वहीं मैं इस आदेश को उसी तरह स्वीकार करता हूं जैसा मैं किसी दूसरी कानूनी सजा को स्वीकार करता और मैं सम्मानपूर्वक जुर्माना अदा करूंगा ।”

भूषण ने यहां सीजेएआर (कैम्पेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स) और स्वराज अभियान द्वारा आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, “उच्चतम न्यायालय के लिये मेरे मन में बेहद सम्मान है। मैं हमेशा मानता हूं कि यह उम्मीद का अंतिम ठिकाना है, खास तौर पर गरीबों और वंचितों के लिये जो अक्सर शक्तिशाली कार्यकारियों के खिलाफ अपने अधिकारों की रक्षा के लिए उसका दरवाजा खटखटाते हैं।” उन्होंने कहा कि ट्वीट किसी भी तरह उच्चतम न्यायालय या न्यायपालिका के प्रति असम्मान के उद्देश्य से नहीं किये गए थे बल्कि उनके द्वारा महसूस की जा रही वेदना को व्यक्त करने के लिये थे, “जो उनके पिछले पुख्ता रिकॉर्ड से विचलन था। यह मामला कभी भी मेरे बनाम न्यायाधीशों के बारे में नहीं था और मेरे बनाम उच्चतम न्यायालय से बहुत कम था।”

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने सोमवार को भूषण से कहा कि वह 15 सितंबर तक जुर्माने की रकम अदा करें और ऐसा नहीं करने पर उन्हें तीन महीने कैद या तीन साल के लिये वकालत करने से रोका जा सकता है। इस महीने अवमानना के लिये उन्हें दोषी ठहराने वाली पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई और नयायमूर्ति कृष्ण मुरारी भी शामिल हैं। न्यायालय ने कहा कि बोलने की आजादी को बाधित नहीं किया जा सकता लेकिन दूसरों के अधिकारों का सम्मान भी किये जाने की जरूरत है।

भूषण ने कहा, “देश का उच्चतम न्यायालय जब जीतता है तो भारत का प्रत्येक नागरिक जीतता है। हर भारतीय एक मजबूत और स्वतंत्र न्यायपालिका चाहता है। स्वभाविक है कि अगर अदालतें कमजोर होंगी तो इससे गणतंत्र कमजोर होगा और प्रत्येक नागरिक को नुकसान पहुंचेगा।” उन्होंने कहा, “मैं उन तमाम लोगों, पूर्व न्यायाधीशों, वकीलों, कार्यकर्ताओं और साथी नागरिकों का शुक्रगुजार हूं जिन्होंने दृढ़ रहने और अपने विश्वास और जमीर पर टिके रहने के लिये मेरा हौसला बढ़ाया।”

उन्होंने कहा कि इन लोगों ने उनके इस विश्वास को शक्ति दी कि यह मुकदमा देश का ध्यान बोलने की आजादी और न्यायिक जवाबदेही और सुधार के प्रति आकर्षित कर सकता है। उन्होंने कहा, “मेरा विश्वास अब इस बात को लेकर पहले से कहीं ज्यादा है कि सत्य की जीत होगी। लोकतंत्र जिंदाबाद। सत्यमेव जयते।” उच्चतम न्यायालय ने 14 अगस्त को भूषण को न्यायपालिका के खिलाफ उनके दो ट्वीटों के लिये आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया था। 

भूषण पर शीर्ष अदालत ने एक रुपए का सांकेतिक जुर्माना लगाया

न्यायालय ने फैसले में कहा कि न सिर्फ पीठ ने भूषण को अपने कृत्य पर खेद प्रकट करने के लिये कहा बल्कि अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल की भी राय थी कि अवमाननाकर्ता को खेद प्रकट कर देना चाहिए। पीठ ने यह भी कहा कि भूषण ने न्यायालय में दाखिल किये गये बयानों को रिकार्ड पर आने से पहले ही इन्हें मीडिया को जारी कर दिया। इससे पहले की सुनवाई के दौरान पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की थी कि भूषण को अगर कोई सजा सुनाई जाती है तो अवमानना के इस मामले में उन्हें दोषी ठहराने के फैसले पर पुनर्विचार की उनकी याचिका पर निर्णय होने तक अमल नहीं किया जायेगा।

न्यायालय ने 14 अगस्त को कार्यकर्ता अधिवक्ता प्रशांत भूषण को न्यायपालिका के खिलाफ दो अपमानजनक ट्वीट के लिये आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराते हुये कहा था कि इन्हें जनहित में न्यापालिका के कामकाज की स्वस्थ आलोचना नहीं कहा जा सकता।

भूषण ने इन ट्वीट के लिये उच्चतम न्यायालय से क्षमा याचना करने से इंकार करते हुये अपने बयान में कहा था कि उन्होंने वही कहा जिस पर उनका भरोसा है। इस मामले में 25 अगस्त को भूषण की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने न्यायालय से अनुरोध किया था कि वह ‘‘न्यायिक स्टेट्समैन जैसा संदेश’’ दे और सजा देकर भूषण को ‘शहीद’ नहीं बनाये।

धवन ने 14 अगस्त का निर्णय वापस लेने और भूषण को कोई सजा नहीं देने का सुझाव न्यायालय को दिया था। उन्होंने न्यायालय से इस मामले को न सिर्फ बंद करने बल्कि इस विवाद को खत्म करने का भी अनुरोध किया था।

वेणुगोपाल ने भी न्यायालय से अनुरोध किया था कि वह भूषण को इस संदेश के साथ माफ कर दे कि भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति नहीं होगी। उन्होंने यह भी कहा था कि भूषण को अपने सारे बयान वापस लेते हुये इन पर खेद व्यक्त करना चाहिए। भूषण ने अपने ट्वीट के लिये बिना शर्त माफी मांगने से इंकार कर दिया था। पीठ ने भूषण को न्यायालय में दिये गये अपने बयान वापस लेने पर सोचने के लिये समय भी दिया था।

Web Title: Prashant Bhushan said - tweets were not made with the intention of disrespecting Supreme Court, Chief Justice

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