मैदान से हिमालय की पर्वतमालाएं दिखने के नये और पुराने दावों को भौतिकी के प्रोफेसर ने दी चुनौती

By भाषा | Published: June 10, 2021 08:59 PM2021-06-10T20:59:50+5:302021-06-10T20:59:50+5:30

Physics professor challenges new and old claims of seeing Himalayan ranges from plain | मैदान से हिमालय की पर्वतमालाएं दिखने के नये और पुराने दावों को भौतिकी के प्रोफेसर ने दी चुनौती

मैदान से हिमालय की पर्वतमालाएं दिखने के नये और पुराने दावों को भौतिकी के प्रोफेसर ने दी चुनौती

पुणे, 10 जून पिछले साल लॉकडाउन के दौरान उत्तर भारत के कुछ शहरों से सैकड़ों किलोमीटर दूर हिमालय की चोटियां दिखने के सोशल मीडिया पर किये गये दावों को भौतिकी के एक प्रोफेसर और उनके 17 वर्षीय छात्र ने चुनौती दी है।

पिछले वर्ष मार्च में कोरोना वायरस महामारी की वजह से लॉकडाउन लगने के बाद आर्थिक और परिवहन गतिविधियां रुक गयी थीं और प्रदूषण कम होने के बीच सोशल मीडिया पर कई ऐसी तस्वीरें डाली गयीं जिनमें मैदान के शहरों से पर्वतमालाओं के सुंदर दृश्य दिखने का दावा किया गया।

गुरु-शिष्य की इस जोड़ी ने इन दावों को ही नहीं बल्कि एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल के संस्थापक सर विलियम जॉन्स द्वारा ऐसे दृश्य देखने के दो सदी से अधिक समय पुराने दावों को भी चुनौती दी है।

विजय सिंह (71) और अर्णव सिंह (17) ने अपनी रिपोर्ट ‘मैदानों से हिमालय देखने पर’ (ऑन व्यूइंग द हिमालयाज फ्रॉम द प्लेन्स) में कहा है कि सर जॉन्स का दावा गलत हो सकता है। यह रिपोर्ट ‘अमेरिकन जर्नल ऑफ फिजिक्स’ में प्रकाशित हुई है।

जॉन्स ने 1785 में बिहार के भागलपुर से 366 किलोमीटर दूर पूर्वी हिमालय के माउंट जोमोल्हारी को देखने का दावा किया था। पांच साल बाद उनके उत्तराधिकारी हेनरी कोलब्रुक ने भागलपुर से 80 किलोमीटर दूर पूर्णिया से हिमालय की चोटी देखने का दावा किया था।

आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर रहे विजय सिंह के अनुसार भागलपुर से माउंट जोमोल्हारी को देख पाना असंभव है जिसे ‘कंचनजंघा की दुल्हन’ भी कहा जाता है।

सिंह ने बृहस्पतिवार को ‘पीटीआई भाषा’ से कहा कि जब पिछले साल पंजाब के जालंधर से और बिहार के पूर्णिया से हिमालय की चोटियां दिखने की खबरें आईं तो उन्हें जॉन्स और कोलब्रूक के दावे याद आए और उन्होंने छात्र अर्णव के साथ इन दावों का अध्ययन करने का फैसला किया।

उन्होंने कहा, ‘‘ये नजारे दिखना अनूठा है, लेकिन जाहिर तौर पर कुछ सवाल उठते हैं। पृथ्वी की वक्रता के साथ ही पर्वतीय चोटी और देखने के बिंदु के बीच अधिक दूरी को देखते हुए क्या यह नजारा संभव है? अगर ऐसा है तो चोटी की कितनी ऊंचाई हो सकती है जिसे एक दूरी से देखा गया?’’

सिंह ने तर्क दिया कि पृथ्वी की वक्रता या गोलाई को देखते हुए सर जॉन्स का पहाड़ देखने का दावा सही होना संभव नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘‘मान लीजिए भागलपुर किसी बड़े टॉवर या बुर्ज खलीफा जैसी मीनार जैसा है तो कोई इसे केवल माउंट जोमोल्हारी की चोटी से तभी देख सकता है जब हवा बिल्कुल शुद्ध और साफ हो।’’

जब पूछा गया तो फिर जॉन्स ने हकीकत में क्या देखा होगा, तो उन्होंने कहा, ‘‘यह वह माउंट कंचनजंघा हो सकता है जो माउंट जोमोल्हारी से निकट दूरी पर है और इसे सर जॉन्स ने देखा हो क्योंकि यह भागलपुर से अपेक्षाकृत करीब है।’’

सिंह ने कहा, ‘‘भागलपुर से आप किसी पर्वत को नहीं देख सकते क्योंकि शहर गंगा के प्रवाह मार्ग में दक्षिण में है। पूर्णिया से पर्वत चोटी देखी जा सकती हैं, बशर्ते हवा बहुत साफ हो। महामारी की वजह से हवा जितनी साफ हुई, उसमें पूर्णिया से भी पहाड़ दिखना लगभग नामुमकिन है।’’

जालंधर से पहाड़ की झलक दिखने के दावे के बारे में पूछे जाने पर सिंह ने कहा कि पंजाब के शहर से पर्वतमाला धौलाधार की चोटियों को देखा जा सकता है।

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Web Title: Physics professor challenges new and old claims of seeing Himalayan ranges from plain

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