पेगासस विवाद: विस्तृत हलफनामा दाखिल करने से केंद्र का मना करना ‘अविश्वसनीय’, याचिकाकर्ता ने कहा

By भाषा | Updated: September 13, 2021 19:56 IST2021-09-13T19:56:06+5:302021-09-13T19:56:06+5:30

Pegasus controversy: Center's refusal to file detailed affidavit 'unbelievable', says petitioner | पेगासस विवाद: विस्तृत हलफनामा दाखिल करने से केंद्र का मना करना ‘अविश्वसनीय’, याचिकाकर्ता ने कहा

पेगासस विवाद: विस्तृत हलफनामा दाखिल करने से केंद्र का मना करना ‘अविश्वसनीय’, याचिकाकर्ता ने कहा

नयी दिल्ली, 13 सितंबर उच्चतम न्यायालय में सोमवार को एक याचिकाकर्ता ने दलील दी कि यह ‘अविश्वसनीय’ है कि केंद्र कथित पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जांच के अनुरोध वाली याचिकाओं पर एक विस्तृत हलफनामा दाखिल करने से इनकार कर रहा है।

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ के समक्ष वरिष्ठ पत्रकार एन राम और शशि कुमार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि सरकार शीर्ष अदालत को ‘‘अपनी आंखें बंद करने’’ के लिए नहीं कह सकती। सिब्बल ने पीठ से कहा, ‘‘यह अविश्वसनीय है कि केंद्र सरकार कहती है कि हम अदालत को नहीं बताएंगे।’’

सिब्बल ने कहा, ‘‘सरकार अदालत को अपनी आंखें बंद करने के लिए नहीं कह सकती है। ऐसा नहीं कह सकती है कि हम वही करेंगे जो हम चाहते हैं और हम इसे आंतरिक जांच के माध्यम से करेंगे।’’ साथ ही कहा कि सरकार का कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों को मुद्दे की तथ्यात्मक स्थिति से अवगत कराए।

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार याचिकाओं पर ‘‘व्यापक राष्ट्रीय हित’’ में एक विस्तृत हलफनामा दाखिल नहीं करना चाहती है क्योंकि ऐसे मुद्दे सार्वजनिक चर्चा का विषय नहीं हो सकते हैं।

सिब्बल ने कहा कि याचिकाकर्ता जानना चाहते हैं कि क्या कुछ प्रतिष्ठित भारतीयों की कथित निगरानी में इजराइल की कंपनी एनएसओ के स्पाइवेयर पेगासस का इस्तेमाल किया गया था, और क्या यह राज्य के किसी भी गोपनीय जानकारी को उजागर नहीं करता है या राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित नहीं करता है।

सिब्बल ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने कहा है कि स्पाइवेयर ने भारतीयों को निशाना बनाया और कल जर्मनी ने भी स्वीकार किया कि पेगासस का इस्तेमाल आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए किया गया था।

याचिकाकर्ताओं में से एक अन्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि जासूसी ‘‘लोकतंत्र पर हमला’’ है और स्पाइवेयर न केवल जासूसी करता है, बल्कि यह निगरानी किए जा रहे उपकरणों में कुछ सामग्री भी डाल सकता है। राकेश द्विवेदी, दिनेश द्विवेदी, कॉलिन गोंजाल्विस और मीनाक्षी अरोड़ा जैसे कई वरिष्ठ वकीलों ने भी मामले में दलीलें रखीं और जासूसी के आरोपों की विश्वसनीय और स्वतंत्र जांच कराने का अनुरोध किया।

दलीलें रखे जाने के दौरान याचिकाकर्ताओं में से एक, अधिवक्ता एमएल शर्मा के ‘‘आपके सहयोगी न्यायाधीश’’ संबोधन पर अदालत ने नाराजगी जताई। प्रधान न्यायाधीश ने शर्मा से पूछा, ‘‘यह आपका सहयोगी न्यायाधीश (संबोधन) क्या है? क्या यह अदालत को संबोधित करने का तरीका है?’’

सॉलिसिटर जनरल ने भी शर्मा के इस तरह संबोधित करने पर आपत्ति जताई और कहा कि वह इस तरह अदालत को संबोधित नहीं कर सकते। शर्मा ने कहा कि वह कुछ और कहना चाहते थे लेकिन उन्हें लगता है कि गलत अर्थ निकल गया।

पीठ ने दलीलें सुनने के बाद कहा कि वह इस मामले में अंतरिम आदेश पारित करेगी। केंद्र ने पूर्व में शीर्ष अदालत में एक संक्षिप्त हलफनामा दाखिल किया था जिसमें कहा गया था कि पेगासस जासूसी आरोपों की स्वतंत्र जांच के अनुरोध वाली याचिकाएं ‘‘अनुमानों और अन्य अप्रमाणित मीडिया रिपोर्टों या अपुष्ट सामग्री पर आधारित हैं।’’

एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संघ ने पेगासस स्पाइवेयर के जरिए भारत के 300 से ज्यादा मोबाइल नंबरों की जासूसी सूची में होने का दावा किया था।

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Web Title: Pegasus controversy: Center's refusal to file detailed affidavit 'unbelievable', says petitioner

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