मानसून सत्र: राज्यसभा में भी पास हुआ SC/ST संशोधन बिल, पुराने स्वरूप में होगा लागू

By भाषा | Published: August 9, 2018 06:31 PM2018-08-09T18:31:55+5:302018-08-09T18:33:34+5:30

अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां अत्याचार निवारण संशोधन विधेयक 2018 लोकसभा में पहले ही पारित कर चुका है।

Parliament passes bill to restore SC/ST Act | मानसून सत्र: राज्यसभा में भी पास हुआ SC/ST संशोधन बिल, पुराने स्वरूप में होगा लागू

मानसून सत्र: राज्यसभा में भी पास हुआ SC/ST संशोधन बिल, पुराने स्वरूप में होगा लागू

नई दिल्ली, 9 अगस्त: संसद ने गुरुवार को अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां अत्याचार निवारण संशोधन विधेयक 2018 को मंजूरी दे दी। इस मौके पर सरकार ने कहा कि वह अच्छी नीयत, अच्छी नीति और अच्छी कार्ययोजना के साथ इन वर्गों के हकों के संरक्षण के लिए प्रयासरत है। विधेयक पर हुयी चर्चा का जवाब देते हुए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले ही संबोधन में स्पष्ट कर दिया था कि उनकी सरकार गरीबों, पिछड़े लोगों की सरकार होगी। उन्होंने कहा कि पिछले चार साल में हमने वैसा करके भी दिखाया है और इस संबंध में किसी को कोई आशंका नहीं करनी चाहिए।

मंत्री के जवाब के बाद उच्च सदन ने ध्वनिमत से विधेयक को पारित कर दिया। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है। गहलोत ने कहा कि वह अच्छी नीयत, अच्छी नीति और अच्छी कार्ययोजना के साथ कठोर प्रयास कर इन वर्गों के हकों के संरक्षण के लिए प्रयासरत है। इसमें उन्हें सफलता भी मिली है। चर्चा के दौरान कई सदस्यों ने विशेष अदालतों के गठन की मांग की थी। इस पर उन्होंने कहा कि विधेयक में विशेष अदालतों की स्थापना का प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि 14 राज्यों ने 195 विशेष अदालतें गठित की हैं।

उन्होंने विपक्षी सदस्यों के इस दावे को नकार दिया कि सरकार विभिन्न दबावों में यह विधेयक लायी है। उन्होंने कहा कि यह सरकार शुरू से ही इन वर्गों के लोगों के हकों के संरक्षण के लिए प्रयासरत रही है। उन्होंने कहा कि इस सरकार की शुरू से ही इन वर्गों के प्रति प्रतिबद्धता थी। उन्होंने उच्चतम न्यायालय के एक आदेश के बाद विधेयक लाए जाने की पृष्ठभूमि का भी जिक्र किया और कहा कि जिस मंशा से मूल कानून बनाया गया था, उसे बहाल करने के लिए यह विधेयक लाया गया है।

इससे पहले चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस की कुमारी शैलजा ने कहा कि देश में दलितों के खिलाफ अपराध में वृद्धि हो रही है और हर 15 मिनट पर दलितों के खिलाफ कोई ने कोई अपराध होता है। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि यह दलित हितैषी नहीं है औ इसकी कथनी व करनी में अंतर है। उन्होंने मांग की कि इस कानून को नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए, नहीं तो इसे बार बार अदालतों में चुनौतियां दी जाएगी। भाजपा के किरोड़ी लाल मीणा ने कहा कि संसद से पारित कानून को न्यायपालिका ने बदल दिया। उन्होंने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए स्थापित कालेजियम व्यस्था पर आपत्ति जताते हुए इसे खत्म करने की मांग की। 

उनकी एक टिप्पणी पर कांग्रेस सहित कई अन्य दलों ने आपत्ति जतायी और इस वजह से दोपहर करीब ढाई बजे बैठक 10 मिनट के लिए स्थगित करनी पड़ी। बैठक फिर शुरू होने पर सभापति एम वेंकैया नायडू ने उनकी टिप्पणी के एक हिस्से को कार्यवाही से निकाल दिया और फिर सदन सुचारू रूप से चला। सपा नेता रामगोपाल यादव ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि न्यायपालिका संसद का तीसरा सदन बन गया है। उन्होंने मांग की कि न्यायपालिका में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी वर्गों का भी प्रतिनिधित्व होना चाहिए।

जदयू के रामचंद्र प्रसाद सिंह ने न्यायिक सेवा शुरू करने की मांग की और कहा कि दलितों के अत्याचार से जुड़े मामलों की जांच करने वाले अधिकारियों को अलग से प्रशिक्षण मुहैया कराना चाहिए। राजद के मनोज कुमार झा ने चाक चौबंद व्यवस्था की जरूरत पर बल देते हुए सरकार से सवाल किया कि इस संबंध में अध्यादेश लाने में पांच महीने क्यों लगे। बसपा के राजाराम ने आरोप लगाया कि सरकार आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर यह विधेयक लायी है। शिवसेना के संजय राउत ने कहा कि किसी भी कानून का दुरूपयोग नहीं होना चाहिए। भाकपा के डी राजा ने भी मांग की कि न्यायपालिका में एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए।

चर्चा में अन्नाद्रमुक की विजिला सत्यानाथ, तृणमूल कांग्रेस के अबीर रंजन बिश्वास, बीजद की सरोजिनी हेम्ब्रम, टीआरएस के केशव राव, इनेलेाद के राम कुमार कश्यप, कांग्रेस की वानसुक सियाम, मनोनीत नरेंद्र जाधव, वाईएसआर कांग्रेस के विजय साई रेड्डी ने भी भाग लिया। गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने इस साल 20 मार्च के अपने एक फैसले में इस कानून के कई प्रावधानों में बदलाव करते हुए इस कानून के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। इतना ही नहीं फैसले में यह भी कहा गया था कि इस कानून के तहत डीएसपी स्तर के अधिकारी की जांच के बाद प्राथमिकी दर्ज की जा सकेगी। गिरफ्तारी एसएसपी स्तर के अधिकारी के आदेश के बाद ही की जा सकेगी।

शीर्ष न्यायालय ने सरकारी कर्मचारियों को गिरफ्तार करने से पहले उससे जुड़े विभाग के शीर्ष अधिकारी की अनुमति भी अनिवार्य कर दी थी। इसके बाद सरकार को दलित संगठनों के साथ ही अपने सहयोगी दलों और पार्टी के एससी-एसटी सांसदों के भी विरोध का सामना करना पड़ा था। उच्चतम न्यायालय में इस कानून के पक्ष में सही तरह से दलीलें नहीं रखने का सरकार पर आरोप लगाते हुए दलित संगठनों ने दो अप्रैल को देश बंद का आह्वान किया था। बंद के दौरान कुछ क्षेत्रों में हिंसा हुई तथा जानमाल को नुकसान पहुंचाया गया था।

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