संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती को शनिवार (30 दिसंबर) को सीबीएफसी से हरी झंडी मिलने पर बोर्ड के पूर्व प्रमुख पहलाज निहलानी ने कहा कि फिल्म वोटबैंक की राजनीति का शिकार हुई है। सेंसर बोर्ड की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए निहलानी ने कहा कि ये काम सेंसर बोर्ड को पहले ही करना चाहिए था जिससे इसके निर्माताओं को घाटा नहीं होता। निहलानी ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा कि इतने विवाद के बाद पद्मवती को मंजूरी देने का कोई तुक समझ में नहीं आता। उन्होंने कहा कि सेंसर बोर्ड ने फिल्म को जानबूझकर अटका कर रखा ताकि कुछ राज्यों के चुनाव बीत जाएं।
निहालानी ने यह भी कहा कि सेंसर बोर्ड ने फिल्म में जितने भी कट्स लगाए हैं उससे फिल्म के प्रोड्यूसर को भारी नुकसान का समाना करना पड़ा। अगर यही काम बोर्ड पहले कर लेती तो फिल्ममेकर को इतना नुकसान नहीं होता। फिल्म को रिलीज की अनुमति नहीं देने के लिए मंत्रालय भी सेंसर बोर्ड पर दबाव बना रही थी।
सेंसर बोर्ड ने 28 दिसंबर को हुई एक रिव्यू कमेटी को फिल्म दिखाने के बाद इसे यूए सर्टिफिकेट देने का फैसला लिया। सेंसर बोर्ड ने रिव्यू कमेटी की कुछ आपत्तियों को मान लिया है। समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार फिल्म का नाम बदलना पड़ सकता है और शायद इसे 'पद्दामवत' नाम से रिलीज किया जा सकता है।
पद्मावत मलिक मोहम्मद जायसी का अवधी में लिखा महाकाव्य है। पद्मावत में दिल्ली के सुल्तान अल्लाहुद्दीन खिलजी द्वारा चित्तौड़ के राजा रतन सिंह की पत्नी रानी पद्मावती को हासिल करने के लिए किए गए युद्ध की कहानी है। इस कहानी का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। जायसी ने खिलजी की मौत के करीब 200 साल के बाद पद्मावत की रचना की थी। फिल्म में रानी पद्मावती का किरदार एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण निभा रही हैं। इसके अलावा रणवीर सिंह खिलजी और शाहिद कपूर राजा रतन सिंह का रोल कर रहे हैं।