ऑपरेशन सागर: समुद्र के अंदर पहली बार भारत ने दुरुस्त की सबमरीन केबल
By संतोष ठाकुर | Published: September 1, 2019 07:48 AM2019-09-01T07:48:13+5:302019-09-01T07:49:05+5:30
जनवरी में शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट अगस्त में पूरा हुआ. जिसमें दिन-रात 8 महीने तक करीब 200 से 300 लोगों ने अलग समय पर कार्य किया. इसमें विदेशी इंजीनियर-एक्सपर्ट शामिल है. हमनें सरकार को अनुरोध किया है कि देश के सभी समुद्र और नदियों के अंदर केबल डालकर इंटरनेट को मजबूत किया जाए.
अगस्त चीन और अन्य विदशी कंपनियों के दबदबे को खत्म करते हुए पहली बार किसी भारतीय कंपनी ने समुद्र के अंदर सब-मरीन केबल को दुरुस्त करने का कार्य किया है. रोचक यह है कि बीएसएनएल और श्रीलंका की टेलीकॉम कंपनी के इस संयुक्त कार्य को भारतीय कंपनी ने वैश्विक कंपनियों के मुकाबले एक चौथाई कम दाम और आधे से कम समय में पूरा किया है. इससे श्रीलंका में संचार सेवाएं ध्वस्त होने से भी बची है.
बीएसएनएल के एक अधिकारी ने कहा कि उन्होंने पैरामाउंट कंपनी को यह कार्य दिया था. जिसने रिकॉर्ड समय में काम करके भारतीय प्रतिभा और दक्षता दिखाई है. इससे बिलकुल एक नए क्षेत्र में भारतीय कंपनी का उदय भी हुआ है. इससे विदेशी कंपनियों पर देश की निर्भरता कम हो जाएगी.
बंगाल की खाड़ी में चेन्नई से आगे तूतीकोरिन में समुद्र में करीब 5 किलोमीटर अंदर भारत-श्रीलंका के बीच जाने वाली समुद्री या सब-मरीन केबल क्षतिग्रस्त हो गई थी. इससे श्रीलंका में व्हाट्सऐप्प, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम सहित कई अन्य सोशल साइट और अन्य संचार सेवाएं ध्वस्त होने की आशंका उत्पन्न हो गई. उनकी इंटरनेट की स्पीड कम हो गई. जिससे डाउनलोड और अपलोड की स्पीड कछुआ गति पर पहुंच गई. सिंगापुर से संचालित होने वाले समस्त सोशल मीडिया कंपनियों का लगभग सभी डाटा भारत के इस समुद्र के अंदर बिछी सब-मरीन केबल के सहारे ही श्रीलंका पहुंचता है.
ऐसे में दुनिया से संचार सेवाओं से कटने और इंटरनेट की स्पीड कम होने की आशंका होने पर श्रीलंका ने भारत की बीएसएनएल से क्षतिग्रस्त हुई केबल को दुरुस्त करने को लेकर संपर्क किया. इसके बाद बीएसएनएल और श्रीलंका टेलीकॉम की 50-50 प्रतिशत साझेदारी वाली कंपनी भारत-लंका केबल सिस्टम ने भारतीय कंपनी पैरामाउंट केबल को निविदा के आधार पर इस कार्य को करने के लिए नामित किया.
जुड़ी थी देश की प्रतिष्ठा
बीएसएनएल के एक अधिकारी ने कहा कि हमनें पैरामाउंट केबल्स के एमडी ध्रुव अग्रवाल को निविदा देते समय स्पष्ट रूप से कहा कि यह पहली बार है जब कोई भारतीय कंपनी इस कार्य के लिए आगे आई है. ऐसे में उन पर काम करने के साथ ही भारतीय प्रतिष्ठा को स्थापित करने का भी उत्तरदायित्व रहेगा. अगर वह सफल रहेंगे तो इस क्षेत्र में देश की चीन और अन्य देशों पर निर्भरता कम होगी. यह देश की सुरक्षा के लिहाज से भी संवेदनशील कार्य है.
5 किलोमीटर की गहराई में उतार दी जेसीबी
पैरामाउंट केबल के एमडी ध्रुव अग्रवाल ने लोकमत समाचार से बातचीत में कहा कि यह क्योंकि देश की प्रतिष्ठा से जुड़ा प्रोजेक्ट था और पहली बार कोई भारतीय कंपनी यह कार्य कर रही थी इसलिए हमनें कहीं भी कोई जोखिम नहीं लिया. विदेशों से एक्सपर्ट बुलाएं. उन्हें प्रतिदिन 5000 डॉलर तक अदा किए गए. समुद्र के अंदर जेसीबी मशीन उतारकर 5 किलोमीटर तक ले जाई गई. समुद्र की तलहटी या तल में केबल को उतारकर उसे ढकने के लिए सीमेंट का डक्ट (नाला) बनाया गया. उसमें केबल को दबाया गया.
जनवरी में शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट अगस्त में पूरा हुआ. जिसमें दिन-रात 8 महीने तक करीब 200 से 300 लोगों ने अलग समय पर कार्य किया. इसमें विदेशी इंजीनियर-एक्सपर्ट शामिल है. हमनें सरकार को अनुरोध किया है कि देश के सभी समुद्र और नदियों के अंदर केबल डालकर इंटरनेट को मजबूत किया जाए.
इससे देश की संचार सेवाएं दुरुस्त होंगी. सरकार यह कार्य शुरू करे. उन्हें उम्मीद है कि कई अन्य भारतीय कंपनियां इसमें आगे आएंगी. उन्होंने कहा कि भारत-श्रीलंका के बीच समुद्र में करीब 330 किलोमीटर केबल है. जिसे बीएसएनएल और श्रीलंका टेलीकॉम की संयुक्त कंपनी भारत-लंका केबल सिस्टम चलाती है. वही सभी कंपनियों को डाटा संचालन के लिए इसे किराये पर देती है.