ओबीसी को सामाजिक पृष्ठभूमि और जनसंख्या के आधार पर आरक्षण मिले : न्यायमूर्ति ईश्वरैया

By भाषा | Published: August 1, 2021 03:08 PM2021-08-01T15:08:42+5:302021-08-01T15:08:42+5:30

OBCs should get reservation on the basis of social background and population: Justice Easwaraiah | ओबीसी को सामाजिक पृष्ठभूमि और जनसंख्या के आधार पर आरक्षण मिले : न्यायमूर्ति ईश्वरैया

ओबीसी को सामाजिक पृष्ठभूमि और जनसंख्या के आधार पर आरक्षण मिले : न्यायमूर्ति ईश्वरैया

नयी दिल्ली, एक अगस्त सरकार ने चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण फैसला करते हुए अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों को 27 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को 10 प्रतिशत आरक्षण लाभ देने की घोषणा की है। सरकार की इस घोषणा के साथ ही पिछड़ा वर्ग की पृथक गणना कराने तथा जनसंख्या के अनुरूप शिक्षा एवं नौकरी में आरक्षण देने की मांग तेज हो गई है।

इस संबंध में पेश हैं राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष एवं आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी ईश्वरैया से भाषा के पांच सवाल और उनके जवाब :

सवाल : आरक्षण को लेकर दो तरह के विचार हैं जिसमें एक वर्ग पिछड़े वर्ग के लोगों को ऐतिहासिक-सामाजिक पृष्ठभूमि के आधार पर आरक्षण देने की वकालत करता है जबकि दूसरा आर्थिक आधार पर। आपके अनुसार मानदंड क्या होना चाहिए।

जवाब : भारतीय संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत भारत के राष्ट्रपति सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति की जाँच करने के लिए आयोग गठित कर सकते हैं। अनुच्छेद 340 इस बात को स्पष्ट करता है कि कोई भी आयोग सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (जिसे अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में जाना जाता है) की स्थिति की उचित पड़ताल के बाद ही सिफारिशें कर सकता है।

आज भी पिछड़े वर्ग के लोगों को अस्पृश्यता, भेदभाव, मानव तस्करी, जबरन मजदूरी, बाल मजदूरी का सामना करना पड़ता है। ऐसे में जब तक इन वर्गों को उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जाएगा तब तक संविधान के प्रावधानों का पालन नहीं किया जा सकेगा। इस स्थिति में अनुसूचित जाति, जनजाति सहित पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण का आधार हमेशा सामाजिक पृष्ठभूमि का होना चाहिए, नहीं।

सवाल : अन्य पिछड़ा वर्ग में क्रीमी लेयर का मानदंड तय करने की मांग हाल के दिनों में काफी तेज हो गई है। इसपर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?

जवाब : आज क्रीमी लेयर की नीति जिस ढंग से लागू की जा रही है, वह 1993 में प्रस्तुत विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट, मद्रास एवं दिल्ली उच्च न्यायालयों के निर्णयों और ओबीसी कल्याण पर संसदीय समिति की सिफारिशों के विपरीत है। उदाहण के लिए, ओबीसी वर्ग के ऐसे बच्चे, जिनके दोनों अभिभावक स्कूल शिक्षक हैं और जिनका कुल वार्षिक वेतन आठ लाख रुपये से ज्यादा है, उन्हें भी क्रीमी लेयर में माना जाता है और वे आरक्षण का लाभ उठाने के पात्र नहीं होते। वास्तव में ये आर्थिक दृष्टि से कमजोर हैं, उन्हें आरक्षण नहीं मिल रहा है जबकि धनी लोग जोड़-तोड़ से पात्रता प्रमाणपत्र हासिल कर रहे हैं। ओबीसी के साथ न्याय होना चाहिए। उनके साथ धोखा नहीं होना चाहिए। उन्हें उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

सवाल : अन्य पिछड़ा वर्ग के उप वर्गीकरण का क्या महत्व है और इसकी क्या जरूरत है ?

जवाब : ओबीसी की केंद्रीय सूची में भी वर्गीकरण नहीं किया गया है। इसका नतीजा यह है कि में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की निर्धन जातियां आरक्षण के लाभ से वंचित हैं। ओबीसी सहित अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग का भी वर्गीकरण होना चाहिए, परन्तु उससे इन समुदायों के लिए निर्धारित कुल कोटे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। मैंने तब राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष के रूप में ओबीसी को तीन समूहों में विभाजित करने का सुझाव दिया था। समूह 'क' अत्यंत पिछड़ा वर्ग, समूह ‘ख’ अधिक पिछड़ा वर्ग और समूह ‘ग’ में पिछड़ा वर्ग था। समूह 'क' या अत्यंत पिछड़े वर्गों में आदिवासी जनजातियाँ, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजातियाँ, घुमक्कड़ जातियाँ जैसे कि भीख माँगना, साँप पकड़ना आदि शामिल किए थे। समूह 'ख' अधिक पिछड़े वर्गों में बुनकर, नाई, कुम्हार जैसे व्यावसायिक समूह वाली जातियों को रखा था। समूह 'ग' में पिछड़े वर्ग में ऐसे लोगों को रखा था जिनके पास जमीन या व्यवसाय हो।

सवाल : जाति आधारित जनगणना के विषय पर हाल के दिनों में देश में काफी चर्चा है। सरकार ने कुछ ही दिन पहले संसद में एक सवाल के जवाब में ओबीसी पृथक गणना की बात को खारिज किया था। आपकी इसपर क्या प्रतिक्रिया है?

जवाब : राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष के रूप में अपने अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि शिक्षा, राजनीति और रोजगार के क्षेत्रों में पिछड़े वर्गों की विमुक्त जनजातियों की भागीदारी शून्य है और ओबीसी की भागीदारी उनकी आबादी का 50 प्रतिशत भी नहीं है। जनगणना में जाति आधारित आंकड़े भी एकत्र किए जाएं ताकि विभिन्न क्षेत्रों में सभी पात्र समुदायों को आरक्षण का उचित लाभ मिल सके।

सवाल : निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग पिछले कुछ समय में तेज हो गई है? क्या आप इस मांग को उचित मानते हैं ?

जवाब : संविधान की प्रस्तावना सभी नागरिकों को न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक-समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व की गारंटी देती है। सरकार निजी क्षेत्र को छूट के आधार पर जमीन देती है, बैंकों से निजी क्षेत्र को रियायती रिण सुविधा मिलती है। ऐसे में उन्हें भी आरक्षण की व्यवस्था का पालन करना चाहिए।

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Web Title: OBCs should get reservation on the basis of social background and population: Justice Easwaraiah

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