झारखंड में पहली बार महाधिवक्ता के खिलाफ अदालत की अवमानना का मुकदमा चलाने के लिए नोटिस जारी

By भाषा | Published: September 1, 2021 11:30 PM2021-09-01T23:30:26+5:302021-09-01T23:30:26+5:30

Notice issued for the first time in Jharkhand for prosecuting contempt of court against Advocate General | झारखंड में पहली बार महाधिवक्ता के खिलाफ अदालत की अवमानना का मुकदमा चलाने के लिए नोटिस जारी

झारखंड में पहली बार महाधिवक्ता के खिलाफ अदालत की अवमानना का मुकदमा चलाने के लिए नोटिस जारी

झारखंड उच्च न्यायालय ने राज्य के इतिहास में पहली बार राज्य के महाधिवक्ता और अपर महाधिवक्ता के खिलाफ अदालत की अवमानना के संबंध में स्वत: संज्ञान लेते हुए मुकदमा चलाने के लिए बुधवार को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया। अदालत ने झारखंड के साहिबगंज की महिला थाना प्रभारी रूपा तिर्की की मौत के मामले की सुनवाई के दौरान अदालत का कथित रूप से ‘‘अपमान एवं अवमानना’’ करने के मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए आपराधिक अवमानना का मुकदमा प्रारंभ किया है और इस सिलसिले में महाधिवक्ता राजीव रंजन और अपर महाधिवक्ता सचिन कुमार के खिलाफ नोटिस जारी किया है। न्यायमूर्ति संजय कुमार द्विवेदी की पीठ ने बुधवार को इस मामले में फैसला सुनाते हुए रंजन एवं कुमार के खिलाफ अदालत की अवमानना का मुकदमा चलाने के लिए नोटिस जारी करने के निर्देश दिये। इससे पहले रूपा तिर्की की मौत के मामले की अदालत में सुनवाई की पिछली तारीख पर कथित रूप से ‘मर्यादा के प्रतिकूल व्यवहार’ करने को लेकर राज्य सरकार के महाधिवक्ता और अपर महाधिवक्ता के खिलाफ अवमानना का मामला चलाने का अनुरोध करते हुए तिर्की के पिता ने याचिका दायर की थी। पीठ ने बृहस्पतिवार को इस मामले पर सुनवाई के दौरान तिर्की के पिता की याचिका को मुख्य रूप से इस आधार पर खारिज कर दिया कि उसमें महाधिवक्ता एवं अपर महाधिवक्ता के नाम नहीं हैं, लेकिन इसके तुरंत बाद अदालत ने मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए दोनों अधिकारियों के खिलाफ अदालत की आपराधिक अवमानना का मुकदमा चलाने के लिए नोटिस जारी करने के आदेश दिए। झारखंड के पूर्व महाधिवक्ता अजीत कुमार ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि उनकी जानकारी में झारखंड एवं बिहार में यह अब तक का पहला मामला है, जिसमें अदालत ने स्वत: संज्ञान लेते हुए पदस्थापित महाधिवक्ता के खिलाफ अदालत की आपराधिक अवमानना का मुकदमा चलाने का नोटिस जारी किया है। इससे पूर्व मंगलवार को न्यायमूर्ति संजय कुमार द्विवेदी की पीठ ने मामले में सुनवाई पूरी कर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने राज्य के महाधिवक्ता और अपर महाधिवक्ता की पैरवी करते हुए कहा था कि ‘‘प्रार्थी का आवेदन सुनवाई योग्य नहीं है। आवेदन में महाधिवक्ता और अपर महाधिवक्ता का नाम नहीं लिखा गया है, जो कि उच्च न्यायालय के नियमों के अनुसार उचित नहीं है। वहीं, किसी भी आपराधिक अवमानना मामले में महाधिवक्ता की सहमति जरूरी है, लेकिन इस मामले में महाधिवक्ता पर ही आरोप है, इसलिए अब अदालत के पास सिर्फ स्वतः संज्ञान लेते हुए अवमानना चलाने का ही विकल्प बचता’’ है, दिवंगत रूपा तिर्की के मामले की पिछली सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता रंजन ने न्यायमूर्ति एस के द्विवेदी से कहा था कि उन्हें अब इस मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए। महाधिवक्ता ने अदालत को बताया था कि 11 अगस्त को मामले की सुनवाई समाप्त होने के बाद प्रार्थी के अधिवक्ता का माइक्रोफोन ऑन रह गया था और वह अपने मुवक्किल से कह रहे थे कि इस मामले का फैसला उनके पक्ष में आना तय है और इस मामले की सीबीआई जांच दो सौ प्रतिशत तय है। उन्होंने दलील दी कि जब प्रार्थी के वकील इस तरह का दावा कर रहे हैं, तो पीठ से आग्रह होगा कि वह इस मामले की सुनवाई नहीं करें। अदालत ने महाधिवक्ता से कहा था कि जो बात आप कह रहें हैं उसे शपथपत्र के माध्यम से अदालत में पेश करें, लेकिन महाधिवक्ता ने शपथपत्र दाखिल करने से इनकार कर दिया और कहा कि उनका मौखिक बयान ही पर्याप्त है। इसके बाद पीठ ने महाधिवक्ता के बयान को रिकॉर्ड करते हुए इस मामले को मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया। इस दौरान पीठ ने कहा कि एक आम आदमी भी अदालत पर सवाल खड़ा करे तो यह न्यायपालिका के गरिमा के अनुरूप नहीं है। उन्होंने कहा था कि जब यह सवाल उठ गया है तो मुख्य न्यायाधीश को ही निर्धारित करना चाहिए कि इस मामले की सुनवाई किस पीठ में होगी। मुख्य न्यायाधीश डा रवि रंजन ने इस मामले को सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति एस के द्विवेदी की पीठ में ही दोबारा भेजा है। रूपा तिर्की के पिता देवानंद उरांव ने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर इस मामले की सीबीआई जांच की मांग की है। उनका कहना है कि रूपा तिर्की ने आत्महत्या नहीं की है, बल्कि उनकी हत्या की गई है।

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Web Title: Notice issued for the first time in Jharkhand for prosecuting contempt of court against Advocate General

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