गणतंत्र दिवस समारोह में सरकारी कर्मचारियों की उपस्थिति अनिवार्य करने का मामला, कश्मीर के लिए नया नहीं है विवाद
By सुरेश एस डुग्गर | Published: January 21, 2022 12:51 PM2022-01-21T12:51:29+5:302022-01-21T12:52:21+5:30
साल 1995 में जम्मू के एमए स्टेडियम में एक बम विस्फोट हुआ था। इसके बाद ही नागरिकों का ऐसे समारोहों में शामिल होना कम हो गया था।
जम्मू:गणतंत्र दिवस पर आतंकी खतरा किस कद्र सिर पर मंडरा रहा है अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सभी जिला मुख्यालयों में तैनात पुलिस अफसरों व अन्य कर्मियों की छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं।
सरकारी कर्मियों के लिए क्या कर दी गई है अनिवार्य
खतरे के बीच सरकारी कर्मियों को गणतंत्र दिवस परेड समारोहों में उपस्थिति अनिवार्य कर दी गई है और गणतंत्र दिवस पर समारोह स्थलों पर सरकारी कर्मियों की उपस्थिति अनिवार्य बनाए जाने संबंधी जारी सरकारी अध्यादेश कोई नया नहीं है। कश्मीर में आतंकवाद की शुरूआत के साथ ही यह विवाद आरंभ हुआ था जो आज भी जारी है।
दहशत और तनाव से नहीं हो पाएंगे नागरिक शामिल
दहशत और तनाव का परिणाम है कि प्रयासों के बावजूद प्रशासन को नहीं लग रहा है कि गणतंत्र दिवस समारोहों में शामिल होने के लिए अधिक नागरिक आ पाएंगे।। परिणामस्वरूप गणतंत्र दिवस समारोहों में अधिक भीड़ को दिखाने के लिए सरकारी कर्मचारियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के इरादों से एक सरकारी आदेश निकाल सभी सरकारी कर्मचरियों को किसी भी कीमत पर गणतंत्र दिवस समारोहों में उपस्थित होने के लिए कहा है।
इससे पहले भी ऐसी सख्ती लगाई गई थी
वैसे ऐसे आदेश को सख्ती से लागू करने का कार्य वर्ष 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की सरकार के दौरान हुआ था जिन्होंने तब स्थानीय विधायकों को भी सख्त ताकिद की थी कि अगर उनके इलाके के सरकारी कर्मचारी अनुपस्थित हुए तो उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी।
मुफ्त सरकारी बसों की व्यवस्था भी शुरू की गई थी
आजाद के ही मुख्यमंत्रित्व काल में ही आम नागरिकों को गणतंत्र व स्वतंत्रता दिवस सामारोहों की ओर आकर्षित करने के इरादों से मुफ्त सरकारी बसों की व्यवस्था आरंभ हुई थी और अखबारों तथा अन्य संचार माध्यमों में विज्ञापन देकर उनमें जोश भरने की कवायद भी।
आतंकियों ने दी है चेतावनियां
दरअसल कश्मीर में आतंकवाद की शुरूआत के साथ ही 15 अगस्त तथा 26 जनवरी को होने वाले सरकारी समारोह सिर्फ और सिर्फ सुरक्षाबलों के लिए बन कर रह गए थे क्योंकि आतंकी चेतावनियों और धमकियों के चलते आम नागरिकों के साथ ही सरकारी कर्मियों की मौजूदगी नगण्य ही थी जबकि जो नागरिक इसमें शामिल होने की इच्छा रखते थे उन्हें लंबे और भयानक सुरक्षा व्यवस्था के दौर से गुजरना पड़ता था।
इससे पहले भी हुए हैं हादसे
वर्ष 1995 में जम्मू के एमए स्टेडियम में तत्कालीन राज्यपाल केवी कृष्णाराव की मौजूदगी में हुए क्रमवार बम विस्फोटों के बाद तो ऐसे समारोहों की ओर नागरिकों का रूख ही पलट गया। सरकारी कर्मियों को समारोहस्थलों तक लाने की कवायद हमेशा ही औंधे मुंह गिरी थी।
वर्ष 2009 में तत्कालीन सरकार ने बकायदा आदेश जारी कर सरकारी कर्मियों की उपस्थिति अनिवार्य बनाने की कवायद तो की, पर नतीजा शून्य रहा था। तब कुछ सरकारी कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की खानापूर्ति जरूर की गई पर सरकारी कर्मियों को खासकर कश्मीर के समारोहस्थलों तक लाने में सरकार कामयाब नहीं हो पाई थी।