पीएम मोदी ने नेताजी के बहाने 'एक परिवार' पर किया वार, जानिए क्या कहता है इतिहास?

By आदित्य द्विवेदी | Published: October 22, 2018 01:00 PM2018-10-22T13:00:16+5:302018-10-22T13:00:16+5:30

आजाद हिंद सरकार की 75वीं वर्षगांठ पर पीएम मोदी ने लाल किले से तिरंगा फहराया। 21 अक्टूबर 1943 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में बनाई थी आजाद हिंद सरकार।

'Netaji's contribution has been forgotten to make a family greater', truth of PM Modi's claim? | पीएम मोदी ने नेताजी के बहाने 'एक परिवार' पर किया वार, जानिए क्या कहता है इतिहास?

पीएम मोदी ने नेताजी के बहाने 'एक परिवार' पर किया वार, जानिए क्या कहता है इतिहास?

21 अक्टूबर को देश भर में 'आजाद हिंद सरकार' की 75वीं वर्षगांठ मनाई गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले से तिरंगा फहराकर एक नई परंपरा की शुरुआत की। इस दौरान अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा, 'ये दुखद है कि एक परिवार को बड़ा बताने के लिए, देश के अनेक सपूतों, वो चाहें सरदार पटेल हों, बाबा साहेब आंबेडकर हों, उन्हीं की तरह ही, नेताजी के योगदान को भी भुलाने का प्रयास किया गया।' 

पीएम मोदी ने कहा, 'मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूं कि स्वतंत्र भारत के बाद के दशकों में अगर देश को सुभाष बाबू, सरदार पटेल जैसे व्यक्तित्वों का मार्गदर्शन मिला होता, भारत को देखने के लिए वो विदेशी चश्मा नहीं होता, तो स्थितियां बहुत भिन्न होती।' कांग्रेस पार्टी पर पीएम मोदी के इस अप्रत्यक्ष आरोप के बाद एक नई बहस शुरू हो गई है। आइए, जानने की कोशिश करते हैं कि पीएम मोदी के इन दावों में सच्चाई और सियासत का प्रतिशत?

गांधी-नेहरू और बोस के रिश्ते

सुभाष चंद्र बोस के महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू से घोर वैचारिक मतभेद थे। इसी वजह से उन्होंने कांग्रेस पार्टी का रास्ता छोड़कर अपनी अलग आजाद हिंद फौज बनाई। इसके बावजूद इन नेताओं का लक्ष्य एक था। दोनों सामूहिक रूप से आजाद भारत का सपना देख रहे थे और उनके बीच एक-दूसरे के लिए सम्मान की अटूट डोर थी। इस बात का प्रमाण इन दो तथ्यों से मिलता हैः

- बोस ने आजाद हिंद फौज के दो रेजीमेंट का नाम - ‘‘गांधी और नेहरू’’ के नाम पर रखा। 

- बोस ने 1944 में सिंगापुर से रोडियो पर गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि दी थी।

नेताजी की मृत्यु के बाद 'आजाद हिंद फौज'

सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिंद सरकार की स्थापना की थी। उनकी मृत्यु के बाद आजाद हिंद फौज के सेनानियों का भविष्य अंधकारमय हो गया। ब्रिटिश सरकार ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया। इसमें आजाद हिंद फौज के तीन कमांडर सहगल, ढिल्लन और शाहनवाज भी थे। अंग्रेज सरकार इन्हें देशद्रोही मानकर कुचल देना चाहती थी। ब्रिटेन के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप में इन्हें फांसी की सजा भी सुनाई गई।

इन्हें बचाने के लिए देश में 'आजाद हिंद फौज डिफेंस' का गठन किया गया, जिसके एक प्रमुख सदस्य पंडित जवाहर लाल नेहरू भी थे। इस कमेटी ने आजाद हिंद फौज के सैनिकों के लिए चंदा इकट्ठा किया। इस कमेटी में देश के नामी वकीलों को शामिल किया गया। उस वक्त देश में नार लग रहे थे- चालीस करोड़ की ये आवाज, सहगल-ढिल्लन-शाहनवाज!

4 जनवरी 1946 को कमांडर इन चीफ ने शाहनवाज, सहगल और ढिल्लों को कोर्ट मार्शल में सुनाई गई मौत की सजा को वापस ले लिया।

'नेहरू-बोस में काल्पनिक प्रतिद्वंदिता'

पीएम मोदी के दावे पर कांग्रेस पार्टी ने पलटवार किया है। कांग्रेस प्रवक्ता सिंघवी ने कहा कि नेहरू, आजाद हिंद फौज के सेनानियों पर चले मुकदमे के दौरान उनके वकीलों में शामिल थे। क्या आरएसएस से किसी व्यक्ति ने नेताजी का समर्थन किया था? भाजपा और प्रधानमंत्री हर राष्ट्रीय धरोहर को हथियाने की हताशापूर्ण कोशिश कर रहे हैं।

कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि जब नेताजी जापान में आजाद हिंद फौज को तैयार कर कर रहे थे और गांधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन का आह्ववान किया था, उस वक्त आरएसएस अंग्रेजों से घनिष्ठ संबंध बना रहा था। सिंघवी ने कहा कि राजनीतिक फायदा पाने के लिए भाजपा बोस को महात्मा गांधी से पीड़ित व्यक्ति और नेहरू के प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश कर रही है जबकि असल में नेताजी ने उन दोनों को हमेशा ही उच्चतम सम्मान दिया।

इस बारे में क्या है आपकी राय? हमें कमेंट या ई-मेल के जरिए बता सकते हैं। इंतजार रहेगा!

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