एशिया प्रशांत में लगभग 50 करोड़ लोग अब भी कुपोषण के शिकार: संयुक्त राष्ट्र
By भाषा | Published: December 11, 2019 07:43 PM2019-12-11T19:43:32+5:302019-12-11T19:43:32+5:30
विश्व निकाय द्वारा जुटाए गए आंकड़ों से पता चलता है कि कुपोषण के चलते उम्र और लंबाई के हिसाब से बच्चों में कम वजन और बौनेपन तथा अन्य समस्याओं से निपटने जैसे क्षेत्रों में प्रगति की गति धीमी है और कई मामलों में तो यह पीछे की तरफ चली गई है।
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों द्वारा बुधवार को जारी की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया प्रशांत में लगभग 50 करोड़ लोग अब भी कुपोषण के शिकार हैं और 2030 तक भुखमरी को मिटाने के लिए हर महीने खाद्य असुरक्षा से लाखों लोगों को बाहर निकालने की जरूरत है।
विश्व निकाय द्वारा जुटाए गए आंकड़ों से पता चलता है कि कुपोषण के चलते उम्र और लंबाई के हिसाब से बच्चों में कम वजन और बौनेपन तथा अन्य समस्याओं से निपटने जैसे क्षेत्रों में प्रगति की गति धीमी है और कई मामलों में तो यह पीछे की तरफ चली गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि असमानता की खराब होती स्थिति का मतलब यह है कि क्षेत्र में अपेक्षाकृत तेज आर्थिक वृद्धि और आय लाखों लोगों के लिए पर्याप्त और पोषक आहार सुनिश्चित करने में मदद के वास्ते पर्याप्त साबित नहीं हो पा रही है तथा लाखों लोग अब भी गरीबी में जी रहे हैं। रिपोर्ट में आग्रह किया गया है कि सरकारों को गरीबी उन्मूलन के अपने प्रयासों को आहार, स्वास्थ्य और शिक्षा संबंधी नीतियों से जोड़ना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र के 2030 के सतत विकास लक्ष्यों में भुखमरी के खात्मे और सभी लोगों के लिए वर्षभर पर्याप्त भोजन सुनिश्चित करने का आह्वान किया गया है। खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) में क्षेत्रीय प्रतिनिधि कुंधावी कादिरेसन ने कहा, ‘‘हम सही रास्ते पर नहीं हैं। अल्पपोषण में कमी लाने के कार्य में पिछले कई वर्षों में प्रगति धीमी देखी गई है।’’
इसमें कहा गया है कि एशिया प्रशांत में कुल आबादी का पांचवें से अधिक हिस्सा हल्की से लेकर गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहा है। खाद्य एवं कृषि संगठन, यूनिसेफ, विश्व खाद्य कार्यक्रम और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार क्षेत्र में अल्पपोषित 47.9 करोड़ लोगों में आधे से ज्यादा दक्षिण एशिया में रहते हैं जहां एक तिहाई से अधिक बच्चे जीवनभर के लिए कुपोषण के शिकार हैं। भारत में लगभग 21 प्रतिशत बच्चे उम्र और लंबाई के हिसाब से कम वजन की समस्या से पीड़ित हैं जो कुपोषण का परिणाम है।