महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री बने अजित पवार, बीजेपी को चकमा देने का मिला इनाम, ऐसा रहा है अब तक का सफर
By आदित्य द्विवेदी | Published: December 30, 2019 01:03 PM2019-12-30T13:03:40+5:302019-12-30T14:10:56+5:30
अजित पवार की छवि एक सख्त प्रशासक की है। पवार अपने पारंपरिक विधानसभा क्षेत्र बारामती में बेहद लोकप्रिय हैं। दादा के नाम से मशहूर अजित ने 1980 के दशक में शरद पवार के सानिध्य में जमीनी राजनीति के गुर सीखे।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता अजीत पवार ने 40 दिनों के अंदर अंदर दूसरी बार महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। महाराष्ट्र की बारामती सीट से विधायक अजित पवार इससे पहले 23 नवंबर को भी शपथ ले चुके हैं। वो एनसीपी से अलग होकर बीजेपी की देवेंद्र फड़नवीस सरकार में उप-मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन यह सरकार महज 80 घंटे ही चल पाई थी और वो अपने मार्गदर्शक शरद पवार के पास वापस लौट आए थे।
अजित पवार की छवि एक सख्त प्रशासक की है। पवार अपने पारंपरिक विधानसभा क्षेत्र बारामती में बेहद लोकप्रिय हैं। दादा के नाम से मशहूर अजित ने 1980 के दशक में शरद पवार के सानिध्य में जमीनी राजनीति के गुर सीखे।
उन्होंने 1991 में बारामती विधानसभा सीट से उपचुनाव लड़कर चुनावी राजनीति में कदम रखा और तब से वह लगातार सात बार इस सीट से जीत का परचम लहरा चुके हैं। इस बार विधानसभा चुनाव में वह सबसे अधिक 1.65 लाख वोटों के अंतर से जीतने में कामयाब रहे। इस तरह उन्होंने क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ को एक बार फिर साबित किया।
अजित पवार का राजनीतिक सफरनामा और कुछ रोचक बातेंः-
- अजित पवार का जन्म 22 जुलाई 1959 को देवलाली में हुआ था। वो एनसीपी मुखिया शरद पवार के बड़े भाई अनंतराव पवार के बेटे हैं।
- अजित पवार का विवाह सुनेत्रा पवार से हुआ है। उनके दो बेटे हैं- जय और पार्थ पवार।
- अजित पवार ने 1982 में राजनीति में पदार्पण किया था जब उन्होंने चीनी सहकारी समिति का चुनाव लड़ा। इसके 9 साल बाद उन्होंने बारमति से लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन अपने चारा शरद पवार के लिए वो सीट खाली कर दी। शरद पवार नरसिम्हा राव सरकार में रक्षामंत्री बने थे।
- 1992 में ही वो विधानसभा चुनाव जीते और कृषि और ऊर्जा राज्यमंत्री बना दिए गए। इसके बाद उन्होंने 1993, 1995, 1999, 2004, 2009 और 2014 में उसी सीट से विधानसभा चुनाव जीता।
- 23 नवंबर 2019 को अजित पवार एनसीपी से अलग होकर बीजेपी की देवेंद्र फड़नवीस सरकार में उप-मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन यह सरकार महज 80 घंटे ही चल पाई थी और वो अपने मार्गदर्शक शरद पवार के पास वापस लौट आए थे।
- अजित पवार के करीबी सूत्रों का कहना है कि उन्हें कला, संस्कृति, फिल्म और तकनीकि में ज्यादा रुचि नहीं हैं। हालांकि उन्हें महंगी घड़ी और पेन का शौक है।
- अजित पवार को खांडी मराठी भाषी हैं। उन्हें अन्य किसी भाषा में असहजता होती है।
- अजित पवार अक्सर अपने बयानों की वजह से भी चर्चित रहते हैं।
अजित पवार का विवादों से पुराना नाता रहा है। 7 अप्रैल 2013 को पुणे के पास इंदापुर में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि अगर बांध में पानी नहीं है तो क्या पेशाब करके भरें? उनके इस बयान को लेकर काफी आलोचना की गई थी।
2014 लोकसभा चुनावों के दौरान उन पर मतदाताओं को धमकाने के आरोप भी लगे थे। कहा गया कि उन्होंने गांववालों को धमकी भी दी थी। बोला था कि अगर सुप्रिया सुले को वोट नहीं दिया तो वो गांववालों का पानी बंद कर देंगे।
अजित पवार पर भ्रष्टाचार के भी कई आरोप लगे। जल संसाधन मंत्री रहते हुए लवासा लेक सिटी प्रोजेक्ट के विकास में अनुचित रूप से सहायता प्रदान करने का आरोप उनके ऊपर लगा। इसके अलावा पद के दुरुपयोग के कुछ और आरोप भी लगे हैं।