41 साल बाद प्रवासी मजदूरों की बदलेगी 'परिभाषा', मोदी सरकार नया कानून लाने की तैयारी में

By विनीत कुमार | Published: May 28, 2020 11:43 AM2020-05-28T11:43:37+5:302020-05-28T11:43:37+5:30

कोरोना संकट के कारण हुए लॉकडाउन की सबसे बड़ी मार प्रवासी मजदूरों पर पड़ी है। तमाम कोशिश के बावजूद उन तक पर्याप्त सुविधाएं नहीं पहुंच पा रही हैं। इसे देखते हुए केंद्र सरकार बड़ी पहल करने जा रही है।

Narendra Modi govt to redefine migrant workers after 41 years will register them to provide social security and benefit | 41 साल बाद प्रवासी मजदूरों की बदलेगी 'परिभाषा', मोदी सरकार नया कानून लाने की तैयारी में

41 साल बाद प्रवासी मजदूरों की बदलेगी 'परिभाषा' (फाइल फोटो)

Highlightsकेंद्र सरकार प्रवासी मजदूरों के लिए इसी साल लेकर आ सकती है नया कानूनसामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधाओं को सुनिश्चित करने सहित नेशनल डेटाबेस बनाने की तैयारी

कोरोना लॉकडाउन में प्रवासियों की बढ़ी हुई मुश्किलों के बीच केंद्र सरकार अहम कदम उठाने की तैयारी कर रही है। सरकार करीब 41 साल बाद 'प्रवासी मजदूरों' को फिर से परिभाषित कर सकती है। साथ ही सरकार उन्हें इम्प्लॉयीज स्टेट इंश्योरेस कॉर्पोरेशन के तहत पंजीकृत करने की योजना बना रही है ताकि भविष्य में सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़े फायदे मिल सकें।

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार लाखों की संख्या में संगठित और असंगठित दोनों ही क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों के लिए नए कानून की तैयारी सरकार की ओर से जा रही है। हाल में लॉकडाउन के दौरान इन मजदूरों का पलायन बड़े स्तर पर देखने को मिला है। रिपोर्ट के अनुसार श्रम मंत्रालय जल्द ही कैबिनेट को इस बारे में विस्तृत प्रस्ताव भेज सकता है। साथ ही केंद्र सरकार की योजना है कि इस मुद्दे पर कानून को इस साल के आखिर तक लागू करा दिया जाए।

श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने भी इस बात की पुष्टि की है कि कानूनी पहलुओं को मजबूत किया जा रहा है। प्रस्वावित कानून के उन कुछ प्रावधानों को जिन्हें बीजेडी सांसद भारत्रुहारी महताब की अध्यक्षता वाली संसद की स्थायी समिति की ओर से मंजूरी दी गई है, उसमें और भी कुछ बदलाव संभव हैं।

अगर नये कदम उठाये जाते हैं तो ये अहम साबित होंगे। दरअसल, मौजूदा प्रवासी संकट ने साबित किया है मौजूदा कानूनी ढांचा अपर्याप्त है। हाल के पलायन की घटनाओं से ये भी साबित हुआ कि उनके ठोस रिकॉर्ड भी मौजूद नहीं हैं। इंटर-स्टेट माइग्रैंट वर्कमेन ऐक्ट 1979 भी सिर्फ उन संस्थानों या कॉन्ट्रैक्टरों पर लागू होता है जहां 5 या उससे ज्यादा अंतरराज्यीय प्रवासी मजदूर काम करते हैं। एक अधिकारी के अनुसार, 'इसका मतलब ये है कि प्रवासी मजदूरों का एक बड़ा तबका इसके दायरे में आता ही नहीं है।' 

ऐसे में प्रस्तावित कानून हर उस प्रवासी कामगार पर लागू होगा जो एक निश्चित रकम कमाते हैं। इसमें डोमेस्टिक हेल्प भी शामिल हैं। प्रस्तावित कानून में ऐसे भी प्रावधान किए जाएंगे जिससे प्रवासी मजदूरों को देश में कहीं भी उनके लिए सरकार की तरफ से तय किए फायदे और मदद मिल सके।

इस योजना की सबसे अहम बात ये होगी कि असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे कामगारों को एक अनऑर्गनाइज्ड वर्कर आइडेंटिफिकेशन नंबर (U-WIN) मिल सकेगा। इस बारे में 2008 से ही चर्चा हो रही है लेकिन तब से योजना आगे नहीं बढ़ सकी है।

साथ ही इसे प्रवासी मजदूरों के आधार कार्ड से लिंक कर राष्ट्रीय स्तर पर एक डेटाबेस तैयार हो सकेगा। इस डेटाबेस तक केंद्र के साथ-साथ राज्यों की भी पहुंच होगी। इसे बनाने में राज्यों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण साबित होगी।

Web Title: Narendra Modi govt to redefine migrant workers after 41 years will register them to provide social security and benefit

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