जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को रद्द करने के बाद नगालैंड के विशेष दर्जे को भी वापस लेने की आशंका से राज्य के लोग चिंतित हैं। इस पूर्वोत्तरी राज्य को अनुच्छेद 371 ‘ए’ के तहत विशेष दर्जा मिला हुआ है।
राजनीतिक पार्टियों और आदिवासी संगठनों ने कहा कि उन्हें यकीन है कि केंद्र सरकार राज्य के साथ यही कार्रवाई करने की ‘हिम्मत’ नहीं करेगी, क्योंकि इससे चल रही शांति प्रक्रिया को नुकसान होगा तथा नगा लोगों की भावनाएं आहत होंगी।
अनुच्छेद 371 ए कहता है कि नगा लोगों के धार्मिक या सामाजिक रिवाजों, उनके प्रथागत कानूनों और प्रक्रिया, नगा प्रथागत कानून के निर्णय के मुताबिक दीवानी और फौजदारी न्याय के प्रशासन, भूमि और इसके संसाधनों के स्थानांतरण में संसद का कोई भी कानून राज्य विधानसभा की मंजूरी के बिना लागू नहीं होगा।
नगा पीपल्स फ्रंट (एनपीएफ) ने कहा कि विपक्ष की पार्टी के तौर पर हमें भरोसा है कि केंद्र सरकार नगालैंड में जम्मू कश्मीर वाला रास्ता अपनाने की हिम्मत नहीं करेगी और नगा लोगों की भावनाओं को आहत नहीं करेगी, नहीं तो परिणाम गंभीर होंगे।’’
उन्होंने कहा कि नगालैंड और जम्मू कश्मीर की स्थिति अलग है, क्योंकि नगालैंड को एक समझौते के बाद पूर्ण राज्य का दर्जा मिला था। नगालैंड एक दिसंबर 1963 को देश का 16वां राज्य बना था।
किकॉन ने स्वीकार किया कि नगालैंड को अनुच्छेद 371 ए के तहत विशेष दर्जा प्राप्त है लेकिन इसने नागा राजनीतिक मुद्दे को कभी हल नहीं किया।
सत्तारूढ़, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेस पार्टी के प्रवक्ता एम आर जमीर ने कहा कि हम चिंतित हैं, लेकिन नगा राजनीतिक मुद्दे को हल करने के लिए बातचीत जारी है। हमें उम्मीद है कि केंद्र सरकार (अनुच्छेद 371 ए को) रद्द करने जैसा कदम नहीं उठाएगी।