मोदी सरकार के 'अब की बार 400 पार' के नारे में बहुत चुनौतियां हैं, अब की बार कैसे होगा बेड़ा पार?
By विकास कुमार | Published: February 2, 2019 05:09 PM2019-02-02T17:09:51+5:302019-02-02T17:09:51+5:30
इस बार के लोकसभा चुनाव में पॉलिटिकल परसेप्शन की लड़ाई दिख रही है. जनता के बीच सबसे ज्यादा हितकारी और राष्ट्रवादी दिखने की होड़ शुरू हो गई है. how is the josh अब देश के राजनेताओं के जोश को नापने का पैमाना बन गया है. इस लड़ाई में भी जीतने के बाद बीजेपी के सामने कई चुनौतियां हैं.
भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2019 को जीतने के लिए अपना राजनीति नारा पेश कर दिया है. अब की बार फिर से मोदी सरकार के नारे के समानांतर यह नारा चुनातियों से भरा हुआ दिख रहा है. हाल में आये तमाम चुनावी सर्वे के मुताबिक इस बार एनडीए गठबंधन को एक साथ मिला देने के बाद भी पूर्ण बहुमत प्राप्त होता हुआ नहीं दिख रहा है. खैर, इस तरह के नारे ऐसे भी जमीनी हकीक़त से दूर और कार्यकर्ताओं में जोश का संचार करने के लिए ज्यादा होते हैं. लेकिन बीजेपी के इस राजनीतिक स्वप्न के पीछे की पड़ताल जरूरी है.
आखिर वो कौन सी चुनतियां हैं जो भारतीय जनता पार्टी के इस प्रचंड बहुमत प्राप्त करने के रास्ते में सबसे सबसे बड़ी बाधाएं बनेंगी. सबसे पहले तो पिछले तीन दशक की राजनीति में किसी भी पार्टी को इतना बड़ा बहुमत नहीं प्राप्त हुआ है. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को 414 सीटें प्राप्त हुई थीं. लेकिन उसके बाद देश में तीन दशक तक किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला. 2014 में प्रचंड मोदी लहर होने के बावजूद बीजेपी को 282 सीटें ही मिली थी, इसलिए बीजेपी के 400 सीटों का टारगेट एक राजनीतिक प्रयास से ज्यादा कुछ है नहीं.
राहुल गांधी बने चुनौती
तीन राज्यों में कांग्रेस की जीत के बाद आज राहुल गांधी आज नरेन्द्र मोदी के समानांतर खड़े होते हुए दिख रहे हैं. देश की जनता उन्हें सुनना चाह रही है. नरेन्द्र मोदी के मुकाबले राहुल गांधी का नैरेटिव खड़ा करने वाली बीजेपी आज खुद इस तुलना से बचना चाह रही है. लेकिन एक बात ये भी है कि अभी तक राहुल गांधी की स्वीकार्यता महागठबंधन के अन्य दलों के बीच दिख नहीं रही है, इसलिए हाल के दिनों में राहुल गांधी ने महागठबंधन के मंचों पर जाना कम कर दिया है, ताकि देश की जनता के बीच ये सन्देश नहीं जाये कि अगर कांग्रेस को वोट देने का मतलब महागठबंधन को वोट देने जैसा ना हो जाये.
यूपी में बड़े नेताओं के सामने हार का खतरा
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं. मायावती और अखिलेश यादव के बीच गठबंधन के बाद भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलें बढ़ती जा रही है. और पार्टी के बड़े नेताओं के सामने 2019 में हार का खतरा मंडरा रहा है. मोदी लहर में जीतने वाले नेताओं को एक बार फिर से कसी लहर का इंतजार है, जिसकी अभी तक कोई गुंजाईश नहीं दिख रही है. राम लहर के रास्ते में कई अवरोध दिख रहे हैं. विश्व हिन्दू परिषद के धर्म संसद में मोहन भागवत का होने वाला विरोध बीजेपी और संघ के लिए आंखें खोलने वाला हादसा है.
इसके बाद युवाओं के बीच बेरोजगारी और किसानों के मुद्दे पर भी मोदी सरकार की हालत कुछ ज्यादा अच्छी नहीं है. बीते दिन जिस तरह से सरकार द्वारा पेश किए गए बजट में किसानों और मिडिल क्लास को राहत दी गई है, जिससे बहुत हद तक डैमेज कण्ट्रोल करने की कोशिश की गई है. 12 करोड़ किसान, 3 करोड़ मिडिल क्लास को आयकर छूट की सीमा में बढ़ोतरी और असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे 10 करोड़ मजदूरों को बजट में तोहफा दिया गया है. 2014 में बीजेपी को कूल 17 करोड़ वोट मिले थे, इस बार के बजट में मोदी सरकार ने 25 करोड़ लोगों को सीधे लाभान्वित किया है.
'how is the josh'
इस बार के लोकसभा चुनाव में पॉलिटिकल परसेप्शन की लड़ाई दिख रही है. जनता के बीच उनका सबसे ज्यादा हितकारी और राष्ट्रवादी दिखने की होड़ शुरू हो गई है. how is the josh अब देश के राजनेताओं के जोश को नापने का पैमाना बन गया है. इस लड़ाई में भी जीतने के बाद बीजेपी के सामने कई चुनौतियां हैं. और सभी चुनौतियों से जीतने के बाद 400 का आंकड़ा अपने आप में चुनौती है.