त्रिपुरा की राजनीति में टीएमसी के आने से डरी भाजपा ने मीडिया को निशाना बनाया: एडिटर्स गिल्ड

By विशाल कुमार | Published: December 23, 2021 03:02 PM2021-12-23T15:02:19+5:302021-12-23T15:05:29+5:30

तीन सदस्यीय टीम की रिपोर्ट में कहा गया कि एक असुरक्षित राजनीतिक नेतृत्व ने (आतंकवाद विरोधी) यूएपीए जैसे कठोर कानूनों का इस्तेमाल किया और पुलिस और एक सशक्त न्यायपालिका की ताकत का इस्तेमाल नागरिक समाज को कुचलने के लिए किया जिसमें मीडिया भी शामिल है।

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त्रिपुरा की राजनीति में टीएमसी के आने से डरी भाजपा ने मीडिया को निशाना बनाया: एडिटर्स गिल्ड

Highlightsत्रिपुरा में सांप्रदायिक दंगों की रिपोर्टिंग करने गईं दो महिला पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया था।रिपोर्ट में कहा गया कि एक असुरक्षित राजनीतिक नेतृत्व ने यूएपीए जैसे कानून का इस्तेमाल किया।सशक्त न्यायपालिका की ताकत का इस्तेमाल मीडिया सहित नागरिक समाज को कुचलने के लिए किया।

नई दिल्ली:त्रिपुरा में सांप्रदायिक दंगों की रिपोर्टिंग करने गईं दो महिलापत्रकारों की गिरफ्तारी के बाद राज्य के दौरे पर गई एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की फैक्ट फाइंडिंग टीम ने कहा है कि कुछ हद तक राज्य की राजनीति में तृणमूल कांग्रेस के आने से पैदा हुए डर के कारण भाजपा की सरकार ने मीडिया पर कार्रवाई की।

बता दें कि, बीते 14 नवंबर को दो महिलापत्रकारों समृद्धि सकुनिया और स्वर्णा झा को सोशल मीडिया पर भड़काऊ और फर्जी खबरें पोस्ट करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। एक दिन बाद असम की स्थानीय अदालत ने उन्हें जमानत दे दी थी और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने पर रोक लगा दी है।

द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, तीन सदस्यीय टीम की रिपोर्ट में कहा गया कि एक असुरक्षित राजनीतिक नेतृत्व ने (आतंकवाद विरोधी) यूएपीए जैसे कठोर कानूनों का इस्तेमाल किया और पुलिस और एक सशक्त न्यायपालिका की ताकत का इस्तेमाल नागरिक समाज को कुचलने के लिए किया जिसमें मीडिया भी शामिल है।

बांग्लादेश में दुर्गा पूजा पंडालों पर हुए हमलों के विरोध में हुई सांप्रदायिक हिंसा पर रिपोर्ट करने से पत्रकारों और नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं को रोकने के लिए राज्य सरकार द्वारा कड़े कानून लागू करने के बाद टीम ने 28 नवंबर से 1 दिसंबर के बीच त्रिपुरा का दौरा किया था।

इस दौरान टीम ने पत्रकारों, नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं और मुख्यमंत्री बिप्लब देब, अन्य मंत्रियों और पुलिस महानिदेशक सहित राज्य सरकार के प्रतिनिधियों से मुलाकात की।

रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी के दौरान आलोचकों के खिलाफ पहले से ही सख्ती दिखा रही त्रिपुरा सरकार पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव के बाद कहीं अधिक सख्ती दिखाने लगी क्योंकि त्रिपुरा की 60 फीसदी आबादी बांग्ला भाषा बोलने वाली है।

फैक्ट फाइंडिंग टीम ने कहा कि त्रिपुरा पुलिस और प्रशासन ने सांप्रदायिक संघर्ष से निपटने और इस पर रिपोर्टिंग करने वालों के साथ पेशेवराना और नैतिकता की कमी दिखाई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि यह उन्हें बहुसंख्यकवाद को आगे बढ़ाने में सहभागी बनाता है जो लोकतांत्रिक संस्थानों को नष्ट कर देता है। संस्थानों की इस तोड़फोड़ का नतीजा हर जगह दिखाई दे रहा है.

टीम में पत्रकार भारत भूषण, गिल्ड के महासचिव संजय कपूर और इंफाल रिव्यू ऑफ आर्ट्स एंड पॉलिटिक्स के संपादक प्रदीप फांजौबम शामिल थे।

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