जन्मदिन विशेष: लोकसभा चुनाव में गेमचेंजर साबित हो सकती हैं मायावती, मोदी-शाह को ऐसे देंगी चुनौती
By विकास कुमार | Published: January 15, 2019 11:32 AM2019-01-15T11:32:57+5:302019-01-15T11:32:57+5:30
मायावती एक पैन इंडिया की क्षेत्रीय पार्टी होने के नाते प्रधानमंत्री पद पर अपना दावा कर सकती हैं, क्योंकि राहुल गांधी का मकसद खुद प्रधानमंत्री बनने से ज्यादा नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोकना दिख रहा है.
भारतीय दलित राजनीति की सिरमौर और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री बहन जी उर्फ़ मायावती का आज जन्मदिन है. जन्मदिन से पहले बड़ा एलान हो चुका है और प्रदेश में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को कड़ी चुनौती देने के लिए बुआ और बबुआ का गठबंधन चट्टान की तरह खड़ा हो गया है. मायावती के साथ सबसे बड़ी बात है कि जब भी उनके विरोधी और देश के पॉलिटिकल पंडित उनकी राजनीति के अंत की घोषणा करते हैं, वो और मजबूती के साथ उभरकर सामने आती हैं.
2014 के लोकसभा चुनाव में जब उनकी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई तो उनके राजनीति की समाप्ति की घोषणा कर दी गई लेकिन बीते सालों में जिस तरह से मायावती ने कई राज्यों में किंगमेकर की भूमिका निभाई है उससे ये बात स्पष्ट हो गई है कि लहर और सुनामी चाहे किसी की भी हो लेकिन मायावती की राजनीति को फिनिश नहीं किया जा सकता. और मायावती की सबसे बड़ी खासियत रही है कि ये अपने शर्तों पर राजनीति करती हैं. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस से चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं हुआ लेकिन मायवती अपनी शर्तों से नहीं हिलीं.
मायावती अपनी शर्तों पर करती हैं राजनीति
मायावती ने इसका बदला उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को सपा और बसपा से दूर रख के ले लिया है. लेकिन इसके साथ ही मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस सरकार को समर्थन भी दिया है. कर्नाटक में भी मायावती ने एक फोन पर कांग्रेस और जेडीएस की सरकार बनवा दी. और इस तरह से उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को कर्नाटक में तोड़-फोड़ मचाने से पहले ही कुमारस्वामी के मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ कर दिया.
मायावती को मिलेगा दलित चेहरा होने का फायदा
2014 लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरह से भाजपा ने मायावती को हलके में लेना शुरू कर दिया था उससे लग रहा था कि अब वाकई में इनकी राजनीति का सूर्य अस्त हो चुका है. प्रदेश में हुए 2017 विधानसभा चुनाव के नतीजे भी इस बात की तस्दीक कर रहे थे, क्योंकि मायावती की पार्टी 19 सीटों पर सिमट गई थी. ऐसा लगने लगा था कि दलितों ने मायावती को अपने नेता के रूप में खारिज कर दिया है. लेकिन जलवा अभी बाकी था. और कुछ ही समय में बहन जी अपने पुराने अंदाज में दिखने लगी. मायावती का राजनीतिक वोटबैंक हमेशा से दलित और ब्राह्मण रहे हैं. जो एक बार फिर से संगठित दिख रहे हैं. क्योंकि सवर्ण आरक्षण की घूटी भी भाजपा के प्रति उनकी नाराजगी में कोई कमी नहीं किया है, क्योंकि राम मंदिर का मुद्दा अभी भी पशोपेश में फंसा हुआ है.
मायावती ने कांग्रेस को गठबंधन से दूर रख कर ये इशारा दे दिया है कि उन्होंने अपने प्रधानमंत्री बनने की लालसा को मृत नहीं होने दिया है. और उनका सोचना भी गलत नहीं है क्योंकि जिस तरह कर्नाटक में 39 सीटों के साथ कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बन गए तो फिर लोकसभा चुनाव में जलवा दिखा कर मायावती क्यों नहीं अपने स्वपन को हकीकत में बदल सकती हैं. कांग्रेस की भी हालात ये है कि भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए वो किसी भी तरह का समझौता कर सकती है.
हाल-फिलहाल में ऐसे तमाम सर्वे सामने आये हैं जिसमें किसी भी पार्टी को बहुमत मिलता हुआ नहीं दिख रहा है. इंडिया टीवी औए सीएनएक्स के सर्वे में एनडीए गठबंधन को 257 सीटें मिलने का संकेत दिया है. इस स्थिति में मायावती एक पैन इंडिया की क्षेत्रीय पार्टी होने के नाते अपना दावा कर सकती हैं, क्योंकि राहुल गांधी का मकसद खुद प्रधानमंत्री बनने से ज्यादा नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोकना दिख रहा है.