भारतीय जनता पार्टी के आजकल बुरे दिन चल रहे हैं। एक तरफ तो पार्टी तीन राज्यों में सत्ता गवा बैठी, वहीं दूसरी तरफ एक के बाद एक सहयोगी एनडीए से छिटकते जा रहे हैं। टीडीपी और रालेसपा के बाद अब लोजपा ने भी आंखें दिखानी शुरू कर दी है। अभी तो फिलहाल भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात के बाद रामविलास पासवान के तेवर थोड़े कम होते हुए दिख रहे हैं लेकिन बीते दिनों उनके सुपुत्र चिराग पासवान ने जिस तरह से ट्वीट कर भाजपा पर निशाना साधा था, उससे मौसम वैज्ञानिक के फिर से पलटी मारने की संभावनाएं बढ़ गई थी। ऐसे भी उनके ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए चुनावी साल में उनके पलटने की खबरें मीडिया में तैरने लगती है। देश के लोग इन्हें प्यार से 'मौसम वैज्ञानिक' कहते हैं।
रामविलास पासवान एक ऐसे नेता हैं, जिनसे सुविधाजनक राजनीति की बारीकियों को सीखा जा सकता है। कुछ सांसदों के दम पर केंद्रीय सत्ता में महत्त्वपूर्ण मंत्री पद पाने का गुर आज के नेताओं को रामविलास पासवान से लेना चाहिए। 2002 के गुजरात दंगों के बाद पासवान इकलौते नेता थे, जो दंगों के विरोध में एनडीए से अलग हो गए थे। लेकिन ऐसा कहा जाता है कि रामविलास पासवान की राजनीति के हमेशा से दो स्तम्भ रहे हैं, पसमांदा मुस्लिम और दलित। अपने मुस्लिम वोटबैंक की रक्षा के लिए उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था।
'मौसम वैज्ञानिक' का पूर्वानुमान
2004 में यूपीए सरकार बनने के बाद रामविलास पासवान ने अपने नए राजनीतिक ठिकाने को जल्द ही तलाश लिया। मनमोहन सरकार में मंत्री बने। लेकिन उन्हें जल्द ही एक बड़ा झटका लगने वाला था। 2009 के लोकसभा चुनाव में रामविलास पासवान हाजीपुर सीट से खुद लोकसभा का चुनाव हार गए। कभी इसी सीट से उन्होंने रिकॉर्ड वोट से जीत दर्ज की थी। पासवान का राजनीतिक करियर उतार-चढ़ाव भरा रहा है, लेकिन सत्ता में इनकी छोटी सहभागिता के बावजूद इन्हें मंत्री पद का वरदान मिलता रहा है।
रामविलास पासवान दलित और पसमांदा मुस्लिम के वोटों के साथ राजनीति करते रहे हैं। लेकिन बदलते राजनीतिक समीकरणों के बीच आज रामविलास पासवान ये दावा नहीं कर सकते कि बिहार में दलितों के वोट पर उनका एकाधिकार है। पसमांदा मुसलमानों के वोट पर नीतीश कुमार कब का कब्जा जमा चुके हैं। लोजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा था। लोजपा को 7 सीटें दी गई थी, जिसमें 6 सीटों पर उसने दर्ज की थी। रामविलास पासवान को इसी बात का भ्रम हो गया है कि उन्हें 2014 लोकसभा चुनाव में उनके प्रदर्शन को देखते हुए और सीटें मिलनी चाहिए। इस बार उपेन्द्र कुशवाहा के एनडीए छोड़ने के बाद पासवान की पार्टी को 6 सीटें दी जा रही है।
रामविलास पासवान का राजनीतिक अनुभव बहुत लंबा है। उन्हें इस बात का अंदाजा जरुर होगा कि 2014 में 6 सीटों पर प्राप्त जीत उनकी पार्टी का करिश्मा नहीं बल्कि जबरदस्त मोदी लहर का नतीजा था। लोजपा के राजनीतिक इतिहास में इससे ज्यादा सीट पार्टी को कभी नहीं मिली थी। खैर, भारतीय जनता पार्टी हाल ही में तीन राज्यों में बुरी तरह चुनाव हारी है, इसलिए हो सकता है कि राजनीति के मौसम वैज्ञानिक बदलती हवाओं के रूख को भांप रहे होंगे। रामविलास पासवान अपने राजनीति के अंतिम चरण पर हैं और उनका मकसद अब अपने बेटे चिराग पासवान को राजनीति में स्थापित करना है। चिराग पासवान बिहार के जमुई सीट से लोकसभा के सांसद हैं।