मलंकारा आर्थोडाक्स सीरियन चर्च: न्यायालय ने केन्द्र और केरल सरकार से अनिवार्य स्वीकारोक्ति पर उनका रूख जानना चाहा

By भाषा | Updated: December 14, 2020 21:32 IST2020-12-14T21:32:40+5:302020-12-14T21:32:40+5:30

Malankara Orthodox Syrian Church: Court wants to know their stand on compulsory confession from Central and Kerala Government | मलंकारा आर्थोडाक्स सीरियन चर्च: न्यायालय ने केन्द्र और केरल सरकार से अनिवार्य स्वीकारोक्ति पर उनका रूख जानना चाहा

मलंकारा आर्थोडाक्स सीरियन चर्च: न्यायालय ने केन्द्र और केरल सरकार से अनिवार्य स्वीकारोक्ति पर उनका रूख जानना चाहा

नयी दिल्ली, 14 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने मलंकारा आर्थोडाक्स सीरियन चर्च में ‘ जबरन और अनिवार्य रूप से‘ पवित्र स्वीकारोक्ति की कथित परंपरा की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सोमवार को केन्द्र और केरल सरकार को नोटिस जारी किये।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रणमणियन की पीठ का शुरू में मत था कि धार्मिक परंपरा को चुनौती देने वाली इस याचिका की सुनवाई केरल उच्च न्यायलाय को करनी चाहिए लेकिन बाद में 2017 के शीर्ष अदालत के फैसले से अवगत कराये जाने पर उसने नोटिस जारी किये। शीर्ष अदालत ने 2017 के फैसले में मलंकारा एसोसिएशन के 1934 के संविधान से संबंधित किसी भी प्रकार के विवाद पर विचार करने से सभी दीवानी अदालतों और उच्च न्यायालय को रोक दिया था।

मलंकारा आर्थोडाक्स सीरियन चर्च के अनुयायी मैथ्यू टी. मथाचन और दो अन्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने भुगतान करके इस अनिवार्य पवित्र स्वीकारोक्ति की प्रथा का विरोध किया।

इस याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता भारत के नागरिक हैं और मलंकारा आर्थोडाक्स सीरियन चर्च के चिरकालिक सदस्य है। उन्होंने मलंकारा एसोसिएशन के 1934 के संविधान की धारा 7, 8 और 10 के तहत संबंधित पल्लीवासी गिरिजाघरों में धन देकर अनिवार्य रूप से स्वीकारोक्ति की परंपरा के खिलाफ अपनी मानव गरिमा सहित संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिये मजबूर होकर यह याचिका दायर की है।’’

याचिका में इस परंपरा को ‘दुखदाई’ बताते हुये कहा गया है कि प्रत्येक पुरूष और स्त्री से ‘जबरन, अनिवार्य रूप से स्वीकारोक्ति’ की यह प्रथा ‘महिलाओं के यौन शोषण और ब्लैकमेलिंग’ सहित कई तरह की समस्यायें पैदा कर रही है।

इसमें कहा गया है कि शीर्ष अदालत के 2017 के फैसले के मद्देनजर यह याचिका सीधे यहां दायर की गयी है। इस फैसले में न्यायालय ने मलंकारा एसोसिएशन के 1934 के संविधान से संबंधित किसी भी प्रकार के विवाद पर विचार करने से सभी दीवानी अदालतों और उच्च न्यायालय को रोक दिया है।

इस याचिका में केन्द्रीय गृह मंत्रालय और राज्य सरकार के साथ ही गिरिजाघरों को भी प्रतिवादी बनाया गया है। याचिका में इस मामले में अंतिम फैसला होने तक गिरिजाघरों को किसी भी पल्लीधारक की ‘स्वीकारोक्ति नहीं करने या गिरिजाघर को कोई पैसा नहीं देने ’ पर उसकी सदस्यता खत्म नहीं करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

याचिका में यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है कि इस मामले का निबटारा होने तक किसी भी पल्लधारी को चर्च से निकाला नहीं जायेगा और न ही समाज से बाहर किया जायेगा।

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Web Title: Malankara Orthodox Syrian Church: Court wants to know their stand on compulsory confession from Central and Kerala Government

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