महाराष्ट्र: 15 दिन में भाजपा के लिए दूसरी दुखद खबर, मुक्ता तिलक के बाद विधायक लक्ष्मण जगताप नहीं रहे, मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने कहा- परिवार के किसी सदस्य को खोने जैसा
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 3, 2023 12:59 PM2023-01-03T12:59:06+5:302023-01-03T12:59:56+5:30
महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक लक्ष्मण जगताप पिछले साल मई और जून में हुए राज्यसभा तथा महाराष्ट्र विधान परिषद चुनाव में वोट डालने के लिए पुणे से मुंबई आए थे।
पुणेः महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक लक्ष्मण जगताप का मंगलवार को निधन हो गया। पार्टी सूत्रों ने यह जानकारी दी। परिवार के एक सदस्य ने बताया कि जगताप को कैंसर था और काफी समय से उनका इलाज चल रहा था। वह 59 वर्ष के थे।
सूत्रों ने बताया कि यहां एक निजी अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। जगताप चिंचवाड से तीन बार के विधायक थे। बीमारी के बावजूद, जगताप पिछले साल मई और जून में हुए राज्यसभा तथा महाराष्ट्र विधान परिषद चुनाव में वोट डालने के लिए पुणे से मुंबई आए थे। इसके लिए राजनीतिक हलकों में उनकी काफी प्रशंसा हुई थी।
इससे पहले, पुणे की कस्बा सीट से पार्टी विधायक मुक्ता तिलक का 22 दिसंबर को निधन हो गया था। जगताप के निधन पर महाराष्ट्र के मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने कहा कि 15 दिन में पार्टी के लिए यह दूसरी दुखद खबर है। उन्होंने कहा, ‘‘ तिलक के निधन के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए यह दूसरा झटका है। हम सभी एक परिवार की तरह रहते हैं और जगताप का जाना परिवार के किसी सदस्य को खोने जैसा है। ’’
भाजपा के वरिष्ठ नेता पीवी चलपति राव का 87 वर्ष की उम्र में निधन
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता और जाने-माने ट्रेड यूनियन नेता पीवी चलपति राव का लंबी बीमारी के बाद रविवार को निधन हो गया। वह 87 वर्ष के थे। उनके परिवार में पत्नी, एक बेटा और दो बेटियां हैं। उनके बेटे पीवीएन माधव उत्तर तटीय आंध्र स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से विधान पार्षद (एमएलसी) हैं।
छब्बीस जून, 1935 को जन्मे चलपति राव ने राजनीति में आने के लिए अपनी राज्य सरकार की नौकरी और बाद में कानूनी पेशा छोड़ दिया। उन्होंने 1967-1968 के विशाखा स्टील प्लांट आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और 1969 में गोदावरी नदी पर पोलावरम परियोजना के निर्माण के लिए आंदोलन चलाया।
वर्ष 1970 में वह वकालत पेशा छोड़कर जनसंघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए। उन्होंने 1972 से 1973 तक अलग आंध्र आंदोलन का नेतृत्व किया और इस दौरान उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया। वर्ष 1970 से 1974 तक उन्होंने भारतीय विद्या केंद्रम में निदेशक मंडल में सेवा की, जिसके तटीय क्षेत्रों में 40 से अधिक शैक्षणिक संस्थान हैं।