भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2013 में प्रचंड जीत दर्ज की थी। पार्टी ने प्रदेश की 230 सीटों में 165 सीटों पर धुआंधार जीत दर्ज की थी। दूसरे नंबर पर रही कांग्रेस महज 58 सीटों पर सिमट गई थी। तीसरे नंबर पर रहने वाली पार्टी बहुजन समाज पार्टी महज चार और तीन निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। लेकिन इस बीजेपी की प्रचंड जीत में एक सीट माथे पर धब्बा दे गई थी।
थांदला विधानसभा में जब्त हुई थी बीजेपी उम्मीदवार की जमानत
थांदला विधानसभा सीट पर 2013 विधानसभा चुनाव में कुल 208780 वोट पड़े थे। यहां निर्दलीय उम्मीदवार कलसिंह भाबर ने जीत दर्ज की थी। उन्हें कुल 63389 वोट मिले थे। यह कुल कुल पडे वोट का 37.66 फीसदी था।
इसके बाद दूसरे नंबर कांग्रेस उम्मीदवार गेंदलाल दामोर रहे थे। उन्हें कुल 58099 मिले थे। यह कुल पड़े वोट का 34.63 फीसदी था। इसके बाद इस विधानसभा से उतरे 11 में से 9 उम्मीदवारों की जमनत जब्त हो गई थी।
तीसरे नंबर पर बीजेपी प्रत्याशी गौरसिंह वासुनिया रहे थे। उन्हें कुल 26827 वो मिले थे। यह इस विधानसभा में पड़े कुल वोट का 15.87 फीसदी था। इसके बाद किसी भी पार्टी के उम्मीदवार को तीन फीसदी वोट तक भी वोट नहीं मिला था।
कब जब्त होती है जमानत
किसी भी विधानसभा सीट पर कुल पड़े वोट का छठा भाग प्राप्त ना कर पाने वाले उम्मीदवारों की जमानत जब्त कर ली जाती है। इसका आशय यह है कि अगर किसी विधानसभा सीट पर कुल 1 लाख वोट पड़ते हैं तो जो प्रत्याशी 16, 666 से कम वोट पाएगा उसकी जमानत जब्त कर ली जाएगी।
थांदला विधानसभा में कुल 208780 वोट पड़े थे। ऐसे में हर उस उम्मीदवार की जमानत जब्त कर ली गई थी, जो करीब 33,000 वोट से कम वोट पाए थे।
जमानत जब्त होने पर उम्मीदवारों क्या हानि होती है
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 34(1)(ख) के अनुसार किसी भी विधानसभा चुनाव में मैदान में उतरने के लिए सामान्य वर्ग के उम्मीदवार को 10,000 रुपये की जमानत राशि चुनाव आयोग को जमा करना होता है। यही अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को 5000 रुपये की जमानत राशि जमा करनी होती है।
चुनाव परिणाम बाद जो उम्मीदवार अपने विधानसभा में पड़े वोट का छठा हिस्सा नहीं प्राप्त कर पाता, उसकी जमानत राशि जब्त कर ली जाती है।
क्या है थांदला विधानसभा सीट का समीकरण
थांदला विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। यह मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में स्थित है। उल्लेखनीय है कि यह जिला मध्य प्रदेश को गुजरात और राजस्थान से जोड़ता है। लेकिन सीमांत होने के चलते ही इसका विकास नहीं हो पाया। इसके बावजूद यहां जमकर वोटिंग होती है और निरंतर विधायक बदलते रहते हैं। इस सीट के बीते 25 सालों के इतिहास में कोई भी पार्टी इस सीट को दोबारा नहीं जीत पाई है।