वफादार, मददगार और रणनीतिकार...ऐसे थे कांग्रेस के ‘अहमद भाई’

By भाषा | Published: November 25, 2020 03:33 PM2020-11-25T15:33:00+5:302020-11-25T15:33:00+5:30

Loyalists, helpers and strategists ... Such were the 'Ahmad brothers' of the Congress | वफादार, मददगार और रणनीतिकार...ऐसे थे कांग्रेस के ‘अहमद भाई’

वफादार, मददगार और रणनीतिकार...ऐसे थे कांग्रेस के ‘अहमद भाई’

(अनवारुल हक)

नयी दिल्ली, 25 नवंबर अहमद पटेल सियासी नब्ज को बखूबी समझने और पर्दे के पीछे रहकर रणनीति बनाने में महारत रखने वाले एक ऐसा नेता थे जिन्होंने अपने चार दशकों से भी अधिक के राजनीतिक जीवन में कई बुलंदियों को छूने के बावजूद निजी तौर पर हमेशा सादगी को बनाए रखा। साथ ही,कांग्रेस के मामलों पर मजबूत पकड़ भी बनाए रखी और पिछले दो दशकों में पार्टी को कई संकटों से निकालने, मजबूत बनाने एवं सत्ता तक पहुंचाने में अहम किरदार निभाया।

मृदुभाषी, सरल स्वभाव, मिलनसार, वफादार, मददगार और बेहतरीन रणनीतिकार, पटेल के लिए ऐसी कई उपमाओं का उपयोग कांग्रेस के अधिकतर नेता और उनके करीबी करते हैं।

दोस्तों के बीच ‘बाबू भाई’ और ‘एपी’ तथा सहयोगियों के बीच ‘अहमद भाई’ के नाम से पुकारे जाने वाले पटेल का बुधवार को 71 साल की उम्र में निधन हो गया। वह अपने जीवन के आखिरी समय तक कांग्रेस की कश्ती के खेवनहार बने रहे।

संकट मोचन में कुशल और राजनीतिक सहमति बनाने में माहिर पटेल के मित्र तकरीबन सभी दलों में थे।

सबसे लंबे समय तक कांग्रेस अध्यक्ष रहने वाली सोनिया गांधी के सबसे भरोसेमंद सिपहसालार पटेल हर अच्छे-बुरे समय में अपनी नेता के साथ खड़े रहे। सोनिया ने उनके निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि पटेल एक ऐसे कामरेड, निष्ठावान सहयोगी और मित्र थे जिनकी जगह कोई नहीं ले सकता।

ठीक तीन महीने पहले अगस्त महीने में पटेल ने पार्टी के भीतर उठ रही बगावत की आग पर भी काबू पाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। 23 पार्टी नेताओं ने सोनिया गांधी के खिलाफ रुख अपनाया तो पटेल ने इस कोशिश को विफल करने में भी अपने रणनीतिक कौशल का इस्तेमाल कर संकट को टाल दिया था, जिसके बाद कांग्रेस कार्य समिति के माध्यम से पार्टी ने सोनिया के नेतृत्व में एक बार फिर विश्वास जताया।

पांच बार राज्यसभा और तीन बार लोकसभा के सदस्य रहे पटेल का जन्म 21 अगस्त, 1949 को गुजरात के भरूच में मोहम्मद इसहाकजी पटेल और हव्वाबेन पटेल के घर हुआ था। अहमद पटेल के पिता भी कांग्रेस में थे और एक समय भरूच तालुका पंचायत सदस्य थे। अहमद पटेल को राजनीतिक करियर बनाने में पिता से बहुत मदद मिली। हालांकि अहमद पटले के दोनों बच्चे फैसल और मुमताज राजनीति से दूर हैं।

पटेल ने 1976 में गुजरात से भरूच में स्थानीय निकाय में किस्मत आजमाने के साथ ही राजनीतिक पारी की शुरुआत की। फिर आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में जब इंदिरा गांधी की अगुवाई में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा तो पटेल 28 साल की उम्र में भरूच से पहली बार लोकसभा पहुंचे। इसके बाद वह इस सीट से 1980 और 1984 में भी निर्वाचित हुए।

अपनी राष्ट्रीय राजनीति के शुरुआती दिनों में ही वह इंदिरा गांधी के करीबी बन गए। बाद में वह राजीव गांधी के बेहद करीबी और खास रहे।

पटेल को 1980 के दशक में कांग्रेस का महासचिव बनाया गया। प्रधानमंत्री रहते हुए राजीव गांधी ने पटेल को अरुण सिंह और ऑस्कर फर्नांडीस के साथ संसदीय सचिव बनाया था जिन्हें उस वक्त ‘अमर, अकबर, एंथनी’ कहा गया था।

पटेल 1989 में लोकसभा चुनाव हार गए और फिर 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद उन्हें राजनीतिक जीवन में कठिन समय का सामना करना पड़ा। हालांकि 1993 में वह राज्यसभा में पहली बार पहुंचे और इसके बाद लगातार ऊपरी सदन के सदस्य बने रहे।

सोनिया गांधी के बतौर कांग्रेस अध्यक्ष सक्रिय राजनीति में कदम रखने के बाद पटेल का सियासी ग्राफ एक बार फिर बढ़ा और पार्टी के प्रमुख रणनीतिकारों में शामिल हो गए। फिर वह अंबिका सोनी के साथ सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव बने। बाद में अंबिका केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा बन गईं और पटेल अकेले राजनीतिक सचिव की भूमिका में रहे। सोनिया गांधी और कांग्रेस के फैसलों में उनकी स्पष्ट छाप होती थी।

साल 2004 में मनमोहन सिंह की अगुवाई में संप्रग सरकार बनने के बाद पटेल के कद एवं भूमिका में और भी इजाफा हो गया। उस वक्त उन्हें कांग्रेस संगठन, सहयोगी दलों और सरकार के बीच सेतु का काम करने वाला नेता माना जाता था।

पटेल ने अपने राजनीतिक जीवन में कई मौकों पर सरकार का हिस्सा बनने की पेशकशों को ठुकराया और कांग्रेस संगठन के लिए काम करने को तवज्जो दी।

कांग्रेस के 2014 में सत्ता से बाहर होने के बाद जब उसके लिए मुश्किल दौर शुरु हुआ तो भी पटेल पूरी मजबूती से पार्टी के साथ खड़े रहे और रणनीतिकार की अपनी भूमिका को बनाए रखा। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस फिर हारी तब भी उन्होंने अपनी भूमिका को निभाना जारी रखा। वह 2018 में कांग्रेस के कोषाध्यक्ष बने थे और आखिरी समय तक इस भूमिका में रहे।

अपनी पार्टी के लिए कई मौकों पर संकटमोचक की भूमिका निभाने वाले पटेल मीडिया की चकाचौंध से दूर रहे। 2017 के गुजरात के राज्यसभा चुनाव, फिर विधानसभा चुनाव और हालिया सचिन पायलट प्रकरण एवं 23 नेताओं के पत्र से जुड़े विवाद के समय तथा कई अन्य अवसरों पर भी पटेल ने खुद के बेहतरीन रणनीतिकार होने और संकटमोचक की भूमिका का बखूबी परिचय दिया।

पटेल सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय रहते थे। उनके सामाजिक कार्यों का मुख्य केंद्र गुजरात और खासकर भरूच में था। भरूच में उन्होंने एक बड़ा अस्पताल स्थापित किया।

उन्होंने गत एक अक्टूबर को ट्वीट के माध्यम से घोषणा की थी कि वह कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए हैं। इसके कुछ दिनों बाद उन्होंने केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन पर उनके पुत्र चिराग पासवान को शोक संदेश भेजा था। पासवान के निधन पर आठ अक्टूबर को ट्विटर पर पोस्ट शोक संदेश उनका आखिरी ट्वीट था।

एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि कोरोना से संक्रमित होने से पहले पटेल मीडियाकर्मियों समेत बहुत सारे लोगों को नियमित तौर पर फोन करते थे और उनकी खैरियत जानते थे।

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