लोकसभा चुनाव: ‘मिनी मॉस्को’ बेगूसराय में गिरिराज-कन्हैया की चुनावी जंग को तनवीर ने बनाया दिलचस्प!

By भाषा | Published: April 18, 2019 04:48 PM2019-04-18T16:48:10+5:302019-04-18T16:48:10+5:30

लोकसभा चुनाव 2019: साल 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में बेगूसराय सीट जदयू के खाते में रही जबकि 2014 में इस पर भाजपा के भोला सिंह विजयी हुए थे। इस सीट पर कांग्रेस आठ बार जीत दर्ज कर चुकी है। साल 1999 के लोकसभा चुनाव में यह सीट राजद के खाते में गई थी।

loksabha elections 2019: Tanveer made interesting election battle of Giriraj, Kanhaiya in 'Mini Mosco' Begusarai | लोकसभा चुनाव: ‘मिनी मॉस्को’ बेगूसराय में गिरिराज-कन्हैया की चुनावी जंग को तनवीर ने बनाया दिलचस्प!

साल 2008 से पहले वाली बेगूसराय सीट पर मुख्यत: कांग्रेस का प्रभुत्व रहा था।

‘‘लड़का बोलने वाला है, बात रखने वाला है, अच्छी बातें करता है, लेकिन इसकी ही जाति के लोग इसे वोट दें तब ना…।’’ बेगूसराय लोकसभा सीट से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के बहुचर्चित उम्मीदवार कन्हैया कुमार के बारे में यह टिप्पणी जिले के सिंघौल पंचायत के मोहम्मद सईद अब्बास की ही नहीं है बल्कि बछवाड़ा, मटिहानी से लेकर बरौनी तक मुस्लिम समुदाय के बड़े तबके की राय कुछ ऐसी ही है।

कई राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस सीट पर भाकपा के ‘पोस्टर बॉय’ कहे जा रहे कन्हैया और केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा नेता गिरिराज सिंह के बीच ‘‘‘सीधी टक्कर’’ है। कुछ जानकारों का दावा है कि दरअसल यह मुक़ाबला त्रिकोणीय है, जिसमें राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के उम्मीदवार तनवीर हसन की प्रभावी मौजूदगी है। बेगूसराय लोकसभा सीट पर 29 अप्रैल को मतदान होगा।

यह पूछे जाने पर कि किसे वोट देंगे, बछवाड़ा के मोहम्मद अब्बास और मोहम्मद रमजानी ने बताया, ‘‘वह तो हम बूथ पर जाकर ही सोचेंगे। लेकिन इतना तय है कि जो भाजपा को हराएगा, हमारा वोट उसी को जाएगा।’’ ‘बिहार का लेनिनग्राद’ और ‘मिनी मॉस्को’ कहलाने वाली, बिहार की बेगूसराय सीट पर भूमिहार, यादव और मुसलमान मतदाताओं की अच्छी-खासी संख्या बताई जा रही है।

कुर्मी तथा अन्य पिछड़ी जतियों के साथ अनुसूचित जाति के मतदाता भी इस सीट पर काफी दखल रखते हैं। साल 2008 में हुए परिसीमन से पहले बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र दो हिस्सों - बेगूसराय और बलिया में बंटा हुआ था।

साल 2008 से पहले वाली बेगूसराय सीट पर मुख्यत: कांग्रेस का प्रभुत्व रहा था। कांग्रेस आठ बार इस सीट पर जीत दर्ज करने में सफल रही। यही स्थिति बलिया में वामपंथियों की थी। लेकिन परिसीमन के बाद बनी बेगूसराय सीट पर इन दोनों दलों की स्थिति कमजोर हुई। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में जदयू उम्मीदवार ने भाकपा के दिग्गज नेता शत्रुघ्न प्रसाद सिंह को हरा दिया था, जबकि 2014 के आम चुनावों में भाजपा के भोला सिंह विजयी रहे थे।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस बार भूमिहार एवं मुस्लिम मतदाताओं का रुझान इस सीट के चुनावी नतीजों के लिए काफी अहम रहेगा। लखनपट्टी के मनोज सिंह कहते हैं, ‘‘कन्हैया अभी लड़का है, पूरी जिंदगी पड़ी है...इस बार भूमिहार लोग सीनियर (गिरिराज सिंह) के पक्ष में दिखते हैं, इसे (कन्हैया को) अगली बार देखा जाएगा।’’

बेगूसराय सीट पर जहां भाजपा उम्मीदवार गिरिराज सिंह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के मुद्दे को उठा रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय सुरक्षा के विषय पर मुखर हैं, वहीं कन्हैया स्थानीय मुद्दों एवं लोकतंत्र की रक्षा की जरूरत पर जोर दे रहे हैं। राजद उम्मीदवार तनवीर हसन सुर्खियों में नहीं हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर उनकी उपस्थिति आसानी से देखी जा सकती है। हसन अलग-अलग इलाकों में छोटी-छोटी जनसभाओं पर जोर दे रहे हैं। हसन को बेगूसराय में राजद का क़द्दावर और लोकप्रिय नेता माना जाता है।

पिछली बार उनके और भाजपा के दिवंगत नेता भोला सिंह के बीच कांटे का मुक़ाबला हुआ था और सिंह ने हसन को क़रीब 58,000 वोटों से हराया था। भाकपा इस सीट से सिर्फ एक बार 1967 में लोकसभा चुनाव जीती है। तब भाकपा उम्मीदवार योगेंद्र शर्मा ने चुनाव जीता था। हालांकि, भाकपा से जुड़े रहे रमेंद्र कुमार 1996 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर बेगूसराय सीट से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे।

साल 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में बेगूसराय सीट जदयू के खाते में रही जबकि 2014 में इस पर भाजपा के भोला सिंह विजयी हुए थे। इस सीट पर कांग्रेस आठ बार जीत दर्ज कर चुकी है। साल 1999 के लोकसभा चुनाव में यह सीट राजद के खाते में गई थी। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, असल में यहां वामपंथी विचारधारा से जुड़े लोगों का एक खास तरह का कैडर है जिसमें छात्रों-अध्यापकों, मंचीय कलाकारों-नाटककारों के समूह राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं। इनमें हर जाति-धर्म के लोग शामिल हैं। मटिहानी क्षेत्र में रामचंद्र साव पेशे से शिक्षक हैं और उन्हें पूरा भरोसा है कि कन्हैया चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करेंगे।

इस संसदीय क्षेत्र में कुल सात विधानसभा सीटें हैं। इनके नाम हैं - चेरिया बरियारपुर, मटिहानी, बखरी, बछवाड़ा, साहेबपुर कमाल, तेघड़ा और बेगूसराय। बखरी सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त महागठबंधन के रूप में राजद, जदयू और कांग्रेस एक साथ थे जबकि भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी थी। इन सभी सात विधानसभा सीटों में से छह पर महागठबंधन के हाथों भाजपा की हार हुई। दो सीटों पर जदयू, दो सीटों पर राजद, दो सीटों पर कांग्रेस और एक सीट पर राजपा की जीत हुई थी। 

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