लोकसभा चुनावः नेताजी के अतीत के अनुभव और अखिलेश यादव के भविष्य के सियासी सपनों के बीच उलझा सपा का वर्तमान!
By प्रदीप द्विवेदी | Published: March 3, 2019 08:01 AM2019-03-03T08:01:25+5:302019-03-03T10:25:49+5:30
वर्ष 2014 के बाद यूपी में कांग्रेस कमजोर हो चुकी थी और बसपा का सियासी आधार भी खिसक गया था, लिहाजा जब अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ मिलकर विस चुनाव लड़ा तो मुलायम सिंह को लगा कि कांग्रेस को फिर से खड़े होने का अवसर मिल जाएगा.
समाजवादी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने 16वीं लोकसभा की आखिरी कार्यवाही के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी को एक बार फिर प्रधानमंत्री बनने की शुभकामनाएं दी थी. इस दौरान मुलायम सिंह यादव के पास में बैठीं सोनिया गांधी सहित विपक्ष के कई नेता असहजता नजर आए, लेकिन नेताजी ने अपनी बात कह डाली.
यह पहला मौका नहीं था, जब नेताजी ने ऐसी कोई एकदम अलग बात कही हो, एकदम अलग राय रखी हो, वे यूपी विस चुनाव में अखिलेश यादव के कांग्रेस के साथ गठबंधन से नाराज थे, तो अभी मायावती की बसपा के साथ सपा के गठबंधन से भी खफा हैं.
पहली नजर में यह थोड़ा अजीब-सा है, लेकिन इसके पीछे नेताजी का अतीत का सियासी अनुभव जोर मारता रहा है. हालांकि, नेताजी के अतीत के अनुभव और अखिलेश यादव के भविष्य के सियासी सपनों के बीच सपा का वर्तमान उलझ गया है!
मुलायम सिंह यादव भारतीय राजनीति के ऐसे नेता हैं, जिनके हर एक शब्द में, हर राय में, हर बयान में सियासी दांव-पेच छिपे होते हैं. ऐसे में प्रश्न यही है कि मुलायम सिंह यादव बार-बार अलग तरह की राय क्यों व्यक्त कर रहे हैं? वजह है- वोट बैंक!
दरअसल, सपा के वोट बैंक का नेचर बसपा और कांग्रेस से मिलता है, जबकि बीजेपी से एकदम विपरीत है. वर्ष 2014 के बाद यूपी में कांग्रेस कमजोर हो चुकी थी और बसपा का सियासी आधार भी खिसक गया था, लिहाजा जब अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ मिलकर विस चुनाव लड़ा तो मुलायम सिंह को लगा कि कांग्रेस को फिर से खड़े होने का अवसर मिल जाएगा.
याद रहे, 2009 लोस चुनाव के मुकाबले 2014 में जहां प्रतिशत के हिसाब से कांग्रेस को मिले मुस्लिम मत आधे हो गए थे, वहीं सपा के दो गुने हो गए थे.
अभी सपा-बसपा गठबंधन भी नेताजी को इसलिए रास नहीं आ रहा है कि उन्हें लगता है कि इसके बाद बसपा का कमजोर पड़ा सियासी आधार यूपी में पुनः मजबूत होगा. यही नहीं, किसी विषम सियासी परिस्थिति में सपा के कंधों पर सवार हो कर मायावती पीएम बन सकती है.
किसी समय नेताजी पीएम पद के करीब पहुंच गए थे, लेकिन उन्हें किसी का साथ नहीं मिला, तो वे क्यों किसी को साथ दें? शायद नेताजी का मानना है कि ममता, मायावती या राहुल गांधी पीएम बने इससे अच्छा तो यह है कि नरेन्द्र मोदी ही फिर से प्रधानमंत्री बन जाएं!
उधर, अखिलेश यादव की नजर भविष्य पर हैं. उनके पास सियासी सीढ़ियां चढ़ने का अभी बहुत वक्त है, खासकर पीएम बनने के लिए यूपी पर तो पकड़ चाहिए ही, देश के अन्य राज्यों में भी पकड़ होना जरूरी है. जहां कांग्रेस पहले से ही राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी है, वहीं उसके पास राहुल गांधी का नेतृत्व भी है, जबकि बसपा में मायावती के बाद कोई सक्षम नेतृत्व नहीं है, मतलब- बसपा के साथ रहने से अखिलेश यादव को भविष्य में बहुत बड़े वोट बैंक का समर्थन-सहयोग मिल सकता है.
लेकिन, नेताजी और अखिलेश यादव की सोच में फर्क के कारण सपा का वर्तमान उलझ कर रह गया है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अखिलेश यादव की भविष्य की राजनीतिक गणित सही हो सकती है, लेकिन सही सियासी सोच तो नेताजी की ही है, क्योंकि राजनीति में जो सच है, वह आज ही है, न आने वाला कल और न ही बीता कल!