लोकसभा चुनावः जम्मू कश्मीर में सिर्फ दो महिलाएं ही चुनावी मैदान में, दलों ने नहीं जताया भरोसा

By सुरेश डुग्गर | Published: April 5, 2019 01:38 PM2019-04-05T13:38:56+5:302019-04-05T13:38:56+5:30

जम्मू कश्मीर में कुल 78.50 लाख मतदाताओं में आधे के करीब महिला मतदाता हैं। परंतु उनके स्वर को अनसुना कर राज्य में किसी भी राजनीतिक दल ने महिला प्रत्याशियों तरजीह देने की जहमत नहीं उठाई है।

Lok Sabha elections: Only two women candidate in Jammu and Kashmir | लोकसभा चुनावः जम्मू कश्मीर में सिर्फ दो महिलाएं ही चुनावी मैदान में, दलों ने नहीं जताया भरोसा

लोकसभा चुनावः जम्मू कश्मीर में सिर्फ दो महिलाएं ही चुनावी मैदान में, दलों ने नहीं जताया भरोसा

जम्मू कश्मीर के चुनाव मैदान में इस बार मात्र दो महिलाएं ही चुनाव मैदान में है। पिछले लोकसभा चुनाव में मात्र एक ही महिला उम्मीदवार मैदान में थीं। चौंकाने वाली बात यह है कि पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती के अतिरिक्त शिवसेना ने उधमपुर से मनिषा साहनी को मैदान में उतारा है। 

यह बात अलग है कि राज्य की किसी भी सीट पर शिवसेना कोई दमखम नहीं रखती है। महिलाओं को टिकटें न दिए जाने से राज्य की महिलाओं में नाराजगी भी है जिनके मतों की संख्यां में पुरुषों के मतों की संख्यां से सिर्फ उन्नीस-बीस का ही अंतर है। राज्य में महिला मतदाता महिलाओं की उम्मीदवारी की पक्षधर हैं मगर उनकी आवाज को नजरअंदाज किया गया है।

राज्य में कुल 78.50 लाख मतदाताओं में आधे के करीब महिला मतदाता हैं। परंतु उनके स्वर को अनसुना कर राज्य में किसी भी राजनीतिक दल ने महिला प्रत्याशियों तरजीह देने की जहमत नहीं उठाई है। महिला अधिकारों की बात करने वाली कांग्रेस व भाजपा ने भी इस बार किसी महिला को टिकट नहीं दी है।

माना कि संसद में जम्मू कश्मीर की महिलाएं 4 बार राज्य का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं पर उनमें से 3 अपने पतिओं के नामों के कारण ही ऐसा कर पाने में सफल रही थीं। जम्मू कश्मीर का अबका रिकार्ड है कि मात्र एक दल को छोड़ किसी भी राजनीतिक दल ने किसी महिला प्रत्याशी को मैदान में नहीं उतारा है इस सच्चाई के बावजूद कि अपने पतिओं की मृत्यु के बाद पूर्व मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला की विधवा अकबर जहान बेगम 1984 तथा 1977 में संसदीय चुनावों के लिए मैदान में उतरी थीं और उन्होंने क्रमशःदो-दो लाख से अधिक मत प्राप्त किए थे।

इसी प्रकार 1977 के चुनावों में ही प्रथम बार कांग्रेस ने भी अपने एक नेता की विधवा श्रीमती पार्वती देवी को इसलिए मैदान में उतारा था क्योंकि नेकां ने भी महिला उम्मीदवार खड़ा किया था। दोनों ही उम्मीदवारों को श्रीनगर व लद्दाख की सीटों पर सिर्फ महिला मतदाताओं के वोट हासिल हुए थे। इससे उनकी जीत सुनिश्चित हुई थी। इसमें सच्चाई यह थी कि दोनों को टिकट मजबूरी में दिया गया था न कि खुशी से।

इससे पहले या बाद में किसी दल ने किसी महिला प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया,1996 तथा 1998 के चुनावों में भाजपा की ओर से क्रमशः अनंतनाग व लेह की सीट पर महिला प्रत्याशी को खड़ा किया गया था, मगर इस बार उसने भी पुरूष प्रत्याशी को ही चुना है जो महिला अधिकारों की बात बढ़ चढ़ कर करते हैं। जबकि वे इस बात को भी नजरअंदाज करते रहे हैं कि राज्य में महिला मतदाताओं की संख्यां पचास प्रतिशत है। चुनाव क्षेत्र में कदम रखने के लिए महिलाओं को उत्साहित भी नहीं किया गया है। यही कारण है कि सभी राजनीतिक दलों के महिला विंग बहुत ही कमजोर हैं और वे सिर्फ पुरूषों के बल पर अपने आप को घसीट रहे हैं। कमजोर होने का कारण उनमें तालमेल की कमी भी है जिसके कारण पुरूष नेता उन पर हावी होते जा रहे हैं।

Web Title: Lok Sabha elections: Only two women candidate in Jammu and Kashmir