लोकसभा चुनावः कठिन सीटों पर चेहरों का टोटा, जिताऊ प्रत्याशी के लिए जूझ रही BJP भी

By राजेंद्र पाराशर | Published: March 27, 2019 06:25 AM2019-03-27T06:25:13+5:302019-03-27T06:25:13+5:30

लोकसभा चुनाव को लेकर प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया दोनों ही दलों भाजपा और कांग्रेस में चल रही है. दोनों ही दल इस बार चुनाव में कठिन सीटों पर जिताऊ प्रत्याशी उतारना चाह रहे हैं, मगर दोनों के सामने कठिन सीटों पर वे प्रत्याशी नहीं मिल रहे हैं, जो जीत के भरोसा इन दलों को दे सकें. 

lok sabha elections bjp and congress are searching winning candidates in madhya pradesh | लोकसभा चुनावः कठिन सीटों पर चेहरों का टोटा, जिताऊ प्रत्याशी के लिए जूझ रही BJP भी

लोकसभा चुनावः कठिन सीटों पर चेहरों का टोटा, जिताऊ प्रत्याशी के लिए जूझ रही BJP भी

मध्यप्रदेश में कांग्रेस के सामने कठिन सीटों पर जिताऊ प्रत्याशियों का संकट खड़ा हो गया है. भोपाल संसदीय सीट से दिग्विजय सिंह को उतारने के बाद उसके सामने विदिशा, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर और सागर, भिंड जैसी सीटों पर जिताऊ प्रत्याशी नहीं मिल रहे हैं. वहीं भाजपा को भी छिंदवाड़ा, गुना और रतलाम-झाबुआ जैसी सीटों पर संघर्ष करना पड़ रहा है.

लोकसभा चुनाव को लेकर प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया दोनों ही दलों भाजपा और कांग्रेस में चल रही है. दोनों ही दल इस बार चुनाव में कठिन सीटों पर जिताऊ प्रत्याशी उतारना चाह रहे हैं, मगर दोनों के सामने कठिन सीटों पर वे प्रत्याशी नहीं मिल रहे हैं, जो जीत के भरोसा इन दलों को दे सकें. 

भोपाल में दिग्विजय सिंह को कांग्रेस ने उतारकर भाजपा को चुनौती दे दी है. अब कांग्रेस के लिए विदिशा, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, सागर और भिंड जैसी कठिन सीटों के लिए वे चेहरे नहीं मिल रहे हैं, जिन पर वह जीत का भरोसा करे. ग्वालियर से जरुर सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की पत्नी प्रियदर्शनी का नाम चला, मगर अभी तक उनके नाम की घोषणा नहीं हुई है. 

इसके अलावा अन्य सीटों पर कांग्रेस के पास ऐसे नेता नहीं है, जो कठिन सीटों पर भाजपा को चुनौती देकर कांग्रेस को जीत दिला सकें. अब कांग्रेस दूसरे दलों के नाराज नेताओं को अपने पाले में लाकर यहां से लाकर चुनाव मैदान में उतारने की रणनीति बना रही है. कांग्रेस के पास सुरेश पचौरी, राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा, रामेश्वर नीखरा जैसे नेता भी हैं, मगर इन नेताओं को मैदान में उतारकर कांग्रेस जीत के प्रति आश्वस्त नहीं है. पचौरी और नीखरा का इतिहास हार का बनता जा रहा है, वहीं विवेक तन्खा मैदानी जमावट में कमजोर साबित हुए हैं.

भाजपा के लिए भी है संकट

कांग्रेस के अलावा भाजपा के सामने भी यही संकट बना हुआ है. भाजपा छिंदवाड़ा, गुना और रतलाम-झाबुआ के अलावा राजगढ़ संसदीय क्षेत्र को कठिन सीट मानती है, मगर वर्षों बीत गए, भाजपा को यहां पर जिताऊ चेहरा नहीं मिल पा रहा है. इस चुनाव में भी भाजपा लगातार ऐसे प्रत्याशी की खोज कर रही है, जो यहां से जीत दिला सकें, मगर अब तक उसे कोई नेता नहीं मिला है, इसके चलते भाजपा ने छिंदवाड़ा में भारतीय गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के मनमोहन शाह बट्टी पर डोरे डाले हैं, मगर उनके नाम पर भाजपा में विरोध तेज हो गया है. इसके अलावा गुना और रतलाम-झाबुआ में भाजपा की खोज अब भी जारी है. राजगढ़ सीट पर भाजपा जरुर जीती है, मगर वह तब जब दिग्विजय सिंह परिवार का सदस्य वहां से चुनाव मैदान में नहीं उतरा है. इस बार दिग्विजय सिंह तो भोपाल से मैदान में हैं, मगर वे राजगढ़ संसदीय सीट पर भी पूरा जोर लगा रहे हैं.

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