लोकसभा चुनाव 2019: पाटिलपुत्र में हार का सिलसिला तोड़ना चाहेगा लालू परिवार, रामकृपाल यादव-मीसा भारती में कड़ी टक्कर
By निखिल वर्मा | Published: May 17, 2019 11:50 AM2019-05-17T11:50:57+5:302019-05-17T12:20:18+5:30
2008 में हुए परिसीमन के बाद पटना जिले के छह विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर पाटलिपुत्र संसदीय सीट बनाया गया था। लोकसभा चुनाव 2009 में इस सीट पर जेडीयू के रंजन प्रसाद यादव ने लालू यादव को करीब 24 हजार वोटों से हराया था।
लोकसभा चुनाव 2019 के आखिरी और सातवें चरण में बिहार की पाटलिपुत्र संसदीय सीट पर लालू परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर है। आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की बड़ी बेटी मीसा भारती दूसरी बार यहां से चुनावी मैदान हैं। लोकसभा चुनाव 2014 में मीसा को हराने वाले रामकृपाल यादव पर बीजेपी ने फिर से भरोसा जताया है।
RJD पाटलिपुत्र में लगातार दो बार हारी
2008 में हुए परिसीमन के बाद पटना जिले के छह विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर पाटलिपुत्र संसदीय सीट बनाया गया था। लोकसभा चुनाव 2009 में इस सीट पर जेडीयू के रंजन प्रसाद यादव ने लालू यादव को करीब 24 हजार वोटों से हराया था। लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी के टिकट पर लालू के पुराने सिपहसालार रामकृपाल ने मीसा भारती को करीब 41 हजार वोटों से हराया।
मीसा को माले से आस
आरजेडी ने पटना की बगल सीट आरा अपने कोटे से भाकपा-माले को दी है। इस सीट पर भाकपा-माले के उम्मीदवार राजू यादव लड़ रहे हैं। इसके बदले पाटलिपुत्र सीट पर माले मीसा का समर्थन कर रही है। भाकपा-माले के पटना ऑफिस इंचार्ज कुमार परवेज कहते हैं, पालीगंज और मसौढ़ी में पार्टी का जनाधार है। इन दोनों सीटों पर माले का विधायक रह चुका है। 2005 में माले ने पालीगंज विधानसभा सीट जीत हासिल की थी। माले का दावा है कि पाटलिपुत्र में करीब उसके 80 हजार कैडर वोट हैं जो मीसा का समर्थन करेंगे। आरजेडी को माले से काफी उम्मीदें हैं।
रामकृपाल से कड़ी टक्कर
पटना में ही जन्मे रामकृपाल यादव का अपना जनाधार है। लालजी टोला के रहने वाले हरेंद्र यादव कहते हैं, "सीडीए बिल्डिंग और स्टेशन के आस-पास के यादवों का समर्थन हमेशा से ही रामकृपाल के साथ रहा है। हालांकि परिसीमन के बाद यह इलाका अब पटना साहिब संसदीय सीट में आता है। पटना स्टेशन के ठीक बगल में गोरिया टोली में रामकृपाल का पुश्तैनी मकान है। सांसद बनने से पहले वह इसी मकान में रहते थे। यहां के लोगों के हर सुख-दुख में रामकृपाल खड़े रहते हैं।" वह कहते हैं शहरी क्षेत्र के व्यवसायी यादव शुरू से बीजेपी के साथ जुड़े हुए हैं।
नियोजित शिक्षकों में गुस्सा
बिहार में करीब 4 लाख नियोजित शिक्षकों को वेतन बढ़ने की उम्मीद थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में फैसला उनके खिलाफ आया है। सड़क, बिजली और शिक्षकों की बहाली के बदौलत ही नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव 2009 और विधानसभा चुनाव 2010 में बंपर जीत हासिल की थी। इस बार कोर्ट के फैसले के बाद शिक्षकों में नाराजगी दिख रही है।
पटना में पढ़ाने वाले शिक्षक संजय ठाकुर कहते हैं, भले ही हमें नौकरी नीतीश सरकार ने दी है लेकिन हमारी स्थितियां बुरी हैं। ना हमारा पीएफ कटता है ना ही मेडिकल की कोई सुविधा है। वह कहते हैं कि एनडीए उम्मीदवारों को शिक्षकों की नाराजगी झेलनी पड़ी है। बिहार ये मामला इतना गर्म है कि मीसा भारती ने चुनावी सभाओं में कहा है कि सत्ता में आने पर शिक्षकों का वेतनमान बढ़ाया जाएगा।
लव-कुश समीकरण में लग सकती हैं सेंध
पाटलिपुत्र संसदीय सीट पर एक अच्छी खासी आबादी कुर्मी-कुशवाहा की है। बिहार में इनका वोट नीतीश कुमार और एनडीए को मिलता रहा है। कहा जा रहा है कि इस बार महागठबंधन में उपेंद्र कुशवाहा की इंट्री से एनडीए को कुशवाहा वोटों का नुकसान हो सकता है। इसके अलावा पालीगंज से जीतने वाले माले के पूर्व विधायक नंद कुमार नंदा भी कुशवाहा जाति से ही आते हैं।
पालीगंज में बीजेपी की स्थिति मजबूत करने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मैदान में उतर चुके हैं। 15 मई को पीएम मोदी ने पालीगंज में एक चुनावी सभा को संबोधित किया। मसौढ़ी विधानसभा खराट गांव के रहने वाले आशीष प्रकाश कहते हैं, यादवों के अलावा रामकृपाल का अन्य पिछड़ी जातियों में आधार हैं। आरजेडी से अलग होने के बावजूद उनके परिवार पिछले चुनाव में रामकृपाल यादव को वोट दिया था।
नोटबंदी से नाराजगी
पटना के ही रहने वाले अमोल रंजन कहते हैं, नोटबंदी के बाद बीजेपी के वोट करने वाले व्यापारी वर्ग के बीच जरा नाराजगी है। इस इलाके में कई यादव व्यापारी भी हैं, जो नोटबंदी के बाद बीजेपी से नाराज हो गए थे। रामकृपाल यादव को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।