राजद-जदयू विलय विवाद: प्रशांत किशोर ने दी लालू यादव को चुनौती, कहा- जब चाहें मेरे साथ मीडिया के सामने बैठ जाएं
By भाषा | Published: April 13, 2019 05:21 PM2019-04-13T17:21:43+5:302019-04-13T17:22:31+5:30
प्रशांत किशोर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाते हैं। प्रशांत किशोर साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी की प्रचार टीम का हिस्सा रहे थे। प्रशांत किशोर फिलहाल जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं।
चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने राबड़ी देवी के उस दावे का शनिवार को खंडन किया कि वह जद(यू) और राजद के विलय के प्रस्ताव के साथ नीतीश कुमार का दूत बन कर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद से मिले थे। उन्होंने राजद अध्यक्ष को चुनौती दी कि वह मीडिया को बताए कि दोनों के बीच क्या बातचीत हुई थी।
जनता दल (यूनाइडेट) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किशोर प्रसाद पर “झूठे दावे” करने के लिए भी जम कर बरसे और यह कहते हुए ट्वीट किया, ‘‘जो पद एवं धन के दुरुपयोग के आरोपों का सामना कर रहे हैं या दोषी साबित हुए हैं, वह सचाई के सरंक्षक होने का दावा कर रहे हैं।” उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सुप्रीमो को मीडिया के सामने उनके साथ बैठने और हर किसी को यह बताने की चुनौती दी कि उनकी मुलाकात में क्या बात हुई और किसने क्या प्रस्ताव दिया।
किशोर ने ट्वीट किया, “जब कभी लालू जी चाहें उन्हें मेरे साथ मीडिया के सामने बैठना चाहिए क्योंकि इससे सबको पता चल जाएगा कि मेरे और उनके बीच क्या बात हुई और किसने किसको प्रस्ताव दिया।”
राबड़ी देवी ने शुक्रवार को यह दावा कर सनसनी मचा दी थी कि किशोर ने राजद एवं नीतीश कुमार की जद(यू) के विलय के प्रस्ताव के साथ उनके पति से मुलाकात की थी और पेशकश की थी कि विलय से बनी नयी पार्टी लोकसभा चुनावों से पहले “प्रधानमंत्री पद के अपने उम्मीदवार” की घोषणा करेगी। उन्होंने कहा था कि अगर किशोर इस प्रस्ताव के साथ प्रसाद से हुई मुलाकात से इनकार करते हैं तो वह “सफेद झूठ” बोल रहे हैं।
राजद की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राज्य विधान परिषद में विपक्ष की नेता ने यहां एक क्षेत्रीय समाचार चैनल से कहा, “मैं क्रोधित हो गई और उनसे जाने को कहा क्योंकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विश्वासघात के बाद मुझे उन पर कोई भरोसा नहीं रह गया था।”
तेजस्वी यादव ने भी लगाया था आरोप
इससे पहले राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा था कि कई लोगों ने नीतीश कुमार की तरफ से उनसे मुलाकात करने के साथ ही सुलह के प्रस्ताव लेकर कांग्रेस का भी रुख किया। राबड़ी देवी का यह खुलासा प्रसाद की हाल ही में प्रकाशित आत्मकथा में किए गए दावे के बाद हुआ है जिसमें कहा गया कि कुमार अपनी पार्टी को महागठबंधन में फिर से शामिल कराना चाहते हैं जिसके लिए उन्होंने किशोर को राजद सुप्रीमो के पास अपना दूत बना कर भेजा था। इस दावे के बाद से बिहार की राजनीति में खलबली मच गई है।
कुमार 2017 में महागठबंधन से बाहर हो गए थे और भाजपा नीत राजग में फिर से शामिल हो गए थे। किशोर ने इससे पहले प्रसाद की आत्मकथा में किए गए दावे को “बकवास” बताया था। प्रसाद ने दावा किया था कि कुमार महागठबंधन में लौटना चाहते हैं जिसके लिए उन्होंने किशोर को राजद सुप्रीमो के पास अपना दूत बना कर भेजा था।
किशोर ने 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान कुमार और प्रसाद के साथ रणनीतिकार के तौर पर काम किया था। वह पिछले साल सितंबर में औपचारिक रूप से जद(यू) में शामिल हुए थे।
पटना विश्वविद्यालय की राजनीति के दिनों से साथी रहे प्रसाद और कुमार 90 के मध्य में अलग होने से पहले लंबे समय तक साथ रहे। प्रमुख रणनीतिकार के तौर पर कुमार “लालू के चाणक्य” के तौर पर जाने जाते थे जब लालू 1989 में बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता बने थे। उन्होंने 1990 में प्रसाद को मुख्यमंत्री बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लेकिन 1994 तक मंडल अभियान के दो शीर्ष नेताओं के बीच मतभेद पनपने लगे थे।
जब अलग हुए लालू और नीतीश के रास्ते
कुमार जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिल कर समता पार्टी का गठन करने के लिए जनता दल से बाहर हो गए थे। तीन साल बाद लालू ने पार्टी से राहें जुदा कर 1997 में राजद का गठन किया। इसी साल लालू को चारा घोटाले में कथित संलिप्तता के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी से हाथ धोना पड़ा था लेकिन अप्रत्याशित कदम उठाते हुए उन्होंने पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया था।
कुमार की समता पार्टी ने 1996 के आम चुनावों में भाजपा के साथ गठबंधन किया था। एक लंबी जंग के बाद कुमार अंतत: 2005 में राजद को सत्ता से बेदखल करने में कामयाब रहे। तब से कुमार मुख्यमंत्री के पद पर बने हुए हैं सिवाए 2014 में कुछ समय के लिए जब उन्होंने अपनी पार्टी को नरेंद्र मोदी की भाजपा के हाथों मिली हार के बाद इस्तीफा दे दिया था। इस दौरान जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया गया था।
कुमार और प्रसाद ने 2015 में हाथ मिला लिया था और बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराया था। लेकिन राजद सुप्रीमो के बेटे तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद जुलाई 2017 में वे फिर अलग हो गए थे।
Those convicted or facing charges of abuse of public office and misappropriation of funds are claiming to be the custodians of truth.@laluprasadrjd जी जब चाहें, मेरे साथ मीडिया के सामने बैठ जाएं, सबको पता चल जाएगा कि मेरे और उनके बीच क्या बात हुई और किसने किसको क्या ऑफर दिया।
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) April 13, 2019