लोकसभा चुनावः यहां BSP बनाती है त्रिकोणीय मुकाबला, लेकिन बीजेपी मार जाती है बाजी

By राजेंद्र पाराशर | Published: May 3, 2019 11:34 AM2019-05-03T11:34:50+5:302019-05-03T11:34:50+5:30

मध्य प्रदेश लोकसभा चुनावः राज्य में 2009 में हुए परिसीमन के बाद अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हुई भिंड सीट पर भाजपा का 30 साल से कब्जा रहा है. परिसीमन के पहले यह सीट सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित थी.

lok sabha election: bhind parliament constituency BSP congress bjp triangular fight, but bjp win this seat | लोकसभा चुनावः यहां BSP बनाती है त्रिकोणीय मुकाबला, लेकिन बीजेपी मार जाती है बाजी

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Highlightsमध्यप्रदेश के भिंड संसदीय क्षेत्र में बसपा ने फिर से एक बार यहां मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने का प्रयास किया है. वर्ष 2009 में भाजपा ने अशोक अर्गल को मैदान में उतारा, फिर 2014 के चुनाव में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी भागीरथ प्रसाद को कांग्रेस से लाकर मैदान में उतारा और जीत हासिल की. इस सीट पर 1989 के बाद से भाजपा लगातार जीतती आ रही है. बसपा का यहां पर खासा प्रभाव रहा है.

मध्यप्रदेश के भिंड संसदीय क्षेत्र में हर बार त्रिकोणीय मुकाबले के बीच भाजपा जीत की बाजी मारती रही है. कांग्रेस को यहां पर कभी दूसरे तो कभी तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा. मगर इस बार कांग्रेस ने युवा इंजीनियर पर दांव खेलकर मुकाबले को रोचक बनाने का प्रयास किया है. वहीं बसपा ने फिर से एक बार यहां मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने का प्रयास किया है. विधानसभा चुनाव की तरह ही इस सीट पर फिर से एट्रोसिटी एक्ट का असर दिखाई देगा.

राज्य में 2009 में हुए परिसीमन के बाद अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हुई भिंड सीट पर भाजपा का 30 साल से कब्जा रहा है. परिसीमन के पहले यह सीट सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित थी. इस सीट पर परिसीमन के बाद भाजपा लगातार प्रयोग करती रही है. वर्ष 2009 में भाजपा ने अशोक अर्गल को मैदान में उतारा, फिर 2014 के चुनाव में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी भागीरथ प्रसाद को कांग्रेस से लाकर मैदान में उतारा और जीत हासिल की. 

इस सीट पर 1989 के बाद से भाजपा लगातार जीतती आ रही है. बसपा का यहां पर खासा प्रभाव रहा है. हर बार चुनाव में बसपा मुकाबला तो त्रिकोणीय बनाती है, मगर जीत हमेशा भाजपा की झोली में जाती है. 1952 से लेकर अब तक हुए 15 लोकसभा चुनावों में यहां पर भाजपा को 8 बार जीत मिली है, जबकि कांग्रेस यहां पर 7 बार और एक बार इस सीट पर भारतीय जनसंघ की विजया राजे सिंधिया 1977 के चुनाव में जीत चुकी हैं.

एट्रोसिटी एक्ट का दिखेगा प्रभाव

ग्वालियर-चंबल अंचल की इस सीट पर विधानसभा चुनाव की तरह ही इस बार लोकसभा चुनाव में भी एट्रोसिटी एक्ट का असर दिखाई देगा. सपाक्स संगठन सवर्ण समाज को फिर से यहां सक्रिय कर रहा है, वहीं कांग्रेस यहां पर इस मुद्दे के तहत अनुसूचित जाति वर्ग के बीच अपने पैठ जमा रही है. वहीं बसपा ने यहां पर एक बार फिर बाबूलाल जामौर को प्रत्याशी बनाकर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने का प्रयास किया है.

पूर्व और वर्तमान मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर

भिंड सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी देवाशीष जरारिया के पक्ष में सहकारिता मंत्री डा. गोविंद सिंह और भाजपा प्रत्याशी संध्या राय के पक्ष में पूर्व मंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा पूरी ताकत के साथ मैदान में हैं. यहां पर दोनों की प्रतिष्ठा दाव पर लगी है. युवा इंजीनियकर देवाशीष जरारया को टिकट दिलाने में अहम भूमिका भी डॉ. गोविंद सिंह की रही है.

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