उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में इन मुद्दों पर बैठेगा चुनावी समीकरण, वोटर्स का विश्वास जीतना पार्टियों के लिए है टेढ़ी खीर

By भाषा | Published: May 9, 2019 02:38 PM2019-05-09T14:38:22+5:302019-05-09T14:38:22+5:30

उत्तर-पश्चिमी लोकसभा सीटः दिल्ली में सबसे ज्यादा मतदाता इसी संसदीय क्षेत्र में हैं, जबकि यहां उम्मीदवारों की संख्या सबसे कम है। 2008 में बनी यह संसदीय सीट सुरक्षित है। नरेला, बादली, रिठाला, बवाना, मुंडका, किराड़ी, सुल्तानपुर माजरा, नांगलोई, मंगोलपुरी और रोहिणी विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर बने इस संसदीय क्षेत्र में 23,78,984 मतदाता पंजीकृत हैं।

lok sabha election 2019: Issues of North East Delhi Lok Sabha constituency, bjp, congress, aam aadmi party | उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में इन मुद्दों पर बैठेगा चुनावी समीकरण, वोटर्स का विश्वास जीतना पार्टियों के लिए है टेढ़ी खीर

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Highlights उत्तर-पश्चिमी लोकसभा सीटः दिल्ली में सबसे ज्यादा मतदाता इसी संसदीय क्षेत्र में हैं, जबकि यहां उम्मीदवारों की संख्या सबसे कम है। 2008 में बनी यह संसदीय सीट सुरक्षित है। इस संसदीय क्षेत्र में राजधानी दिल्ली का बड़ा ग्रामीण इलाका आता हैं यहां तीन तरह के लोग रहते हैं।हाऊसिंग सोसायटी में रहने वालों को आसपास होने वाली आपराधिक घटनाओं, झपटमारी/छिनैती से दिक्कत है।

दिल्ली की सभी सात लोकसभा सीटों पर कई समान मुद्दे हैं, लेकिन सबके अपने-अपने स्थानीय मुद्दे भी बहुत महत्वपूर्ण है। उत्तर-पश्चिमी लोकसभा सीट की बात करें तो यहां चुनाव में स्वच्छता, रोजगार के अवसरों की कमी, अनधिकृत कलोनियां, कानून-व्यवस्था से जुड़ी दिक्कतें और प्रवासियों की आबादी बड़े मुद्दे हैं। उत्तर-पश्चिम दिल्ली सीट पर लोकसभा चुनाव 2019 के लिए 12 मई को मतदान होना है।

दिल्ली में सबसे ज्यादा मतदाता इसी संसदीय क्षेत्र में हैं, जबकि यहां उम्मीदवारों की संख्या सबसे कम है। 2008 में बनी यह संसदीय सीट सुरक्षित है। नरेला, बादली, रिठाला, बवाना, मुंडका, किराड़ी, सुल्तानपुर माजरा, नांगलोई, मंगोलपुरी और रोहिणी विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर बने इस संसदीय क्षेत्र में 23,78,984 मतदाता पंजीकृत हैं।

इस संसदीय क्षेत्र में राजधानी दिल्ली का बड़ा ग्रामीण इलाका आता हैं यहां तीन तरह के लोग रहते हैं... स्थानीय मूल निवासी जिनका काम खेती और मवेशी पालन है, प्रवासी आबादी जिनमें ज्यादातर रिक्शा चालक और फैक्टरियों में काम करने वाले मजदूर हैं। और तीसरा वर्ग है पिछले कुछ वर्षों में रोहिणी में बनी हाऊसिंग सोसायटियों में रहने वालों का। इन तीनों तबकों की परेशानियां भी अलग-अलग हैं। प्रवासी मजदूरों की शिकायत है कि उनके पास काम/रोजगार, बच्चों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है।

हाऊसिंग सोसायटी में रहने वालों को आसपास होने वाली आपराधिक घटनाओं, झपटमारी/छिनैती से दिक्कत है। वहीं स्थानीय मूल निवासी आसपास तेजी से बदल रहे माहौल और खुद को मेट्रोपॉलिटन लाइफस्टाइल में ढालने की जद्दोजहद में जुटे हैं। इसके लिए वे ना सिर्फ अपनी जमीनें बेच रहे हैं बल्कि उनके बच्चे अपराध का रास्ता भी पकड़ रहे हैं। तमाम कारणों से यहां कानून-व्यवस्था की हालत खराब है।

दिल्ली में सबसे ज्यादा अपराध इसी क्षेत्र में होते हैं। लेकिन, पुलिस उपायुक्त (बाहरी उत्तर) गौरव शर्मा का कहना है, ‘‘हम शराब की आपूर्ति और हथियारों का इस्तेमाल करने वाले अपराधियों के खिलाफ बहुत सख्त हैं। शराब और मादक पदार्थों की तस्करी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो रही है। हमारे प्रयासों से लूट-पाट की घटनाओं में 45 प्रतिशत की कमी आयी है।’’

रोहिणी सेक्टर 14 में रहने वाले मीडियाकर्मी उमेश शर्मा कहते हैं, ‘‘साफ पानी की दिक्कत है। यहां अकसर खराब पानी आता है। कई बार तो नलके से आने वाला पानी खाना बनाने लायक भी नहीं होता है। घर में आरओ के बगैर आप पानी तक नहीं पी सकते हैं। सड़कें खराब हैं, झपटमारी की वारदात बहुत ज्यादा है।’’

उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में नरेला और बवाना दो औद्योगिक क्षेत्र हैं जहां राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार से आने वाले लाखों लोग फैक्टरियों में काम करते हैं। श्यामा प्रसाद मुखर्जी इंडस्ट्रीयल वेलफेयर एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष मुकेश अग्रवाल का कहना है, ‘‘बवाना में करीब 1,600 छोटी-बड़ी फक्टरियां हैं। लेकिन हाईवे तक कोई संपर्क रोड नहीं है, ट्रकों को गांवों से होकर जाना पड़ता है। खुदा-न-खास्ता फैक्टरी में किसी के साथ दुर्घअना हो जाए तो, यहां कोई डिस्पेंसरी भी नहीं है। सबसे करीबी डिस्पेंसरी 15 किलोमीटर दूर रोहिणी सेक्टर 15 में हैं और वहां जाने में ट्रैफिक बहुत ज्यादा है।’’

उनका कहना है कि आप सरकार ने फैक्टरी कामगारों के हित के लिए कुछ नहीं किया है। हम उस पार्टी के लिए वोट करना चाहते हैं जिसने कम से कम राष्ट्रीय स्तर पर तो कुछ काम किया है। फैक्टरी कामगार रमेश का कहना है कि यहां पीने को पानी तक उपलब्ध नहीं है।

बिहार से आए प्रवासी मजदूर मनोज कुमार का कहना है, ‘‘दिल्ली सरकार सिर्फ ई-रिक्शा वालों के भले का सोचती है। उसे हमारी कोई परवाह नहीं। मैं एक छोटे कमरे में रहता हूं जिसका किराया 2,500 रुपये है। रिक्शे का भी मुझे रोज 50 रुपये किराया देना होता है। हाल ही में मैंने 1,000 रुपये में रिक्शा खरीदा था, लेकिन वह चोरी हो गया। मैं दिल्ली कमाने आया था, लेकिन यहां तो जीना भी मुश्किल हो रहा है।’’ इस सुरक्षित सीट से कुल 11 उम्मीदवार मैदान में हैं लेकिन असली मुकाबला भाजपा के हंस राज, कांग्रेस के राजेश लिलौठिया और आप के गगन सिंह के बीच है। 

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