लोकसभा चुनावः छत्तीसगढ़ में 'नई भाजपा' और 'नई कांग्रेस' के बीच जंग, जानिए किसकी है लहर?

By हरीश गुप्ता | Published: April 22, 2019 07:50 AM2019-04-22T07:50:14+5:302019-04-22T07:50:14+5:30

'नई भाजपा' और 'नई कांग्रेस' के जंग में भाजपा के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मा को छोड़कर छोड़कर राज्य में कोई शक्तिशाली नेता नहीं है. ज्वार तब तक भाजपा के खिलाफ है, जब तक कि प्रधानमंत्री मोदी की लहर इसकी दिशा नहीं बदल देती.

lok sabha election 2019: fight between New BJP' and New Congress in Chhattisgarh | लोकसभा चुनावः छत्तीसगढ़ में 'नई भाजपा' और 'नई कांग्रेस' के बीच जंग, जानिए किसकी है लहर?

लोकसभा चुनावः छत्तीसगढ़ में 'नई भाजपा' और 'नई कांग्रेस' के बीच जंग, जानिए किसकी है लहर?

आभासी राजनीतिक क्रांति के गवाह छत्तीसगढ़ ने लोकसभा चुनाव के महाभारत में बहुत अधिक ध्यान आकर्षित नहीं किया है. भाजपा ने अपने सभी 10 मौजूदा लोकसभा सांसदों को दरकिनार कर दिया और पार्टी महासचिव सरोज पांडे को टिकट से वंचित कर दिया. यहां तक कि भाजपा ने तीन बार मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह के मौजूदा सांसद पुत्र अभिषेक सिंह को भी टिकट देने से इनकार कर दिया.

यह पार्टी महासचिव अनिल जैन और राज्य के वरिष्ठ नेता पवन सहाय के नेतृत्व में 'नई भाजपा' का उदय था. पार्टी के कद्दावर नेता रमेश बैंस को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. हकीकत में उनमें से किसी ने भी टिकट से इनकार नहीं किया और उन्हें पार्टी के लिए प्रचार करने के लिए कहा गया है. इसके पीछे वजह यह थी कि कांग्रेस ने भी सभी 11 लोकसभा क्षेत्रों में नए चेहरों को उतारा है. यह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पार्टी महासचिव पी. एल. पुनिया की अगुवाई में 'नई कांग्रेस' का उदय था, जिसने राज्य में चुपचाप पार्टी का चेहरा बदल दिया.

'नई भाजपा' और 'नई कांग्रेस' के जंग में भाजपा के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मा को छोड़कर छोड़कर राज्य में कोई शक्तिशाली नेता नहीं है. ज्वार तब तक भाजपा के खिलाफ है, जब तक कि प्रधानमंत्री मोदी की लहर इसकी दिशा नहीं बदल देती. राज्य में बाकी सात लोकसभा सीटों के लिए 23 अप्रैल को वोटिंग होगी. हकीकत में छत्तीसगढ़ शायद एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां कांग्रेस आलाकमान ने उम्मीदवारों के चयन और प्रचार अभियान की रणनीति के लिए खुली छूट दी.

दो दशकों के बाद छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की 2018 के विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत के बाद ऐसा किया गया. वहां पार्टी ने 90 सदस्यीय विधानसभा में 68 सीटें जीतीं और 43 प्रतिशत वोट हासिल की. वहीं, भाजपा को 15 सीटें और 33 प्रतिशत वोट लेकर करारी हार का सामना करना पड़ा. यदि भाजपा लोकसभा की 10सीटों को बरकरार रखना चाहती है, तो उसे 'नई कांग्रेस' के साथ कड़ी जंग लड़नी होगी, लेकिन पार्टी के लिए कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा है. उदाहरण के लिए अजीत जोगी जो कांग्रेस के वोट बैंक में भाजपा के लिए मुख्य आधार थे, वे पूरी तरह से दृश्य से हट गए हैं.

यहां तक कि उनके बेटे अमित जोगी भी कहीं नहीं दिख रहे हैं. उनकी पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जेसीसी) के कार्यकर्ता लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं. जेसीसी को विधानसभा चुनाव में 7.6 प्रतिशत वोट मिले थे. उनकी वापसी से कांग्रेस को फायदा मिलेगा. क्षेत्रीय पार्टी जीजीपी जो पहले कांग्रेस के वोट में सेंधमारी करती थी, उसने भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए राजनांदगांव से अपने उम्मीदवार को उतारा है.

राजनांदगांव रमन सिंह परिवार की पारंपरिक सीट रही है. भूपेश बघेल सरकार ने वादा के मुताबिक 80 लाख टन धान की खरीद की है. राज्य की अर्थव्यवस्था इस पर पर आधारित है. इससे उन्हें वोट पाने में मदद मिलेगी. बसपा ने लोकसभा की सभी 11 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. वैसे, पिछले कई चुनावों में पार्टी को महज 2 से 3 प्रतिशत वोट ही मिले. एक अन्य महत्वपूर्ण कारक यह था कि नक्सलियों ने आदिवासियों को स्वतंत्र रूप से मतदान करने की अनुमति दी थी. यही कारण था कि इस बार बस्तर में सर्वाधित 66 प्रतिशत वोटिंग हुई.

Web Title: lok sabha election 2019: fight between New BJP' and New Congress in Chhattisgarh