बिहारः कांग्रेस रैली की सफलता से खुश अब महागठबंधन के प्रत्याशियों के लिए उठाया जा रहा ये कदम

By एस पी सिन्हा | Published: February 5, 2019 08:42 PM2019-02-05T20:42:53+5:302019-02-05T20:42:53+5:30

लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटी कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वह किसी भी सूरत में सात सीटें अपने सहयोगी दलों के लिए नहीं छोड़ेगी. पार्टी ने इशारा किया है कि उसके लिए लोकसभा की औरंगाबाद, किशनगंज, सासाराम, सुपौल, कटिहार, समस्तीपुर और दरभंगा सीटें सांस की तरह हैं. 

lok sabha election 2019 congress rally in bihar mahagathbandhan seat sharing candidate selection | बिहारः कांग्रेस रैली की सफलता से खुश अब महागठबंधन के प्रत्याशियों के लिए उठाया जा रहा ये कदम

बिहारः कांग्रेस रैली की सफलता से खुश अब महागठबंधन के प्रत्याशियों के लिए उठाया जा रहा ये कदम

कांग्रेस की रैली में आई भीड़ से उत्साहित और राहुल गांधी के इस ऐलान के बाद कि बिहार में भी कांग्रेस फ्रंटफुट पर खेलेगी. इसके बाद नेता इतने उत्साहित हैं कि उन्होंने यहां तक कह दिया है कि महागठबंधन के सभी घटक दलों के उम्मीदवारों के चयन में कांग्रेस की अहम् भूमिका रहेगी. कांग्रेस महागठबंधन के प्रत्याशियों के चाल चलन और रिकार्ड्स को चेक करेगी. यानी कांग्रेस बिहार में लीड रोल में रहना चाहती है. 

इसी फार्मूले पर कांग्रेंस अपनी सीटों की तलाश और सभी 40 सीटों की स्थिति का आकलन करने को स्वतंत्र एजेंसी से सर्वे कराने का काम कर रही है. सर्वे के रिपोर्ट पर ही बहुत कुछ निर्धारित हो जायेगा. प्रदेश कांग्रेस प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल भी खुलकर नहीं तो दबे जुबान से यह मानते है कि कांग्रेस के लिए सीट नहीं जीत आवश्यक है. 

लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटी कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वह किसी भी सूरत में सात सीटें अपने सहयोगी दलों के लिए नहीं छोड़ेगी. पार्टी ने इशारा किया है कि उसके लिए लोकसभा की औरंगाबाद, किशनगंज, सासाराम, सुपौल, कटिहार, समस्तीपुर और दरभंगा सीटें सांस की तरह हैं. 

कांग्रेस सीटों को लेकर चुनावी वास्तविकता को नजरअंदाज नहीं कर रही है. हाल के दिनों में कांग्रेस के स्वर्णिम दिन 1984 का आम चुनाव था, जिसमें अविभाजित बिहार की 54 में 49 सीटें पार्टी की झोली में आई थी. इसके बाद पार्टी का ग्राफ लगातार नीचे जाता रहा. 

1989 में मात्र किशनगंज से एमजे अकबर और नालंदा से राम स्वरूप प्रसाद, 1991 में बेगूसराय, कटिहार, 1998 के चुनाव में मधुबनी से डा. शकील अहमद, कटिहार से तारिक अनवर, बेगूसराय से राजो सिंह की जीत हासिल हुई थी. 1999 में पूर्णिया से राजेश रंजन, औरंगाबाद में श्यामा सिंह और बेगूसराय में राजो सिंह को जीत मिली थी.  

वहीं, 2004 चुनाव में मधुबनी सीट से डा. शकील अहमद, सासाराम से मीरा कुमार और औरंगाबाद में निखिल कुमार को जीत मिली. 2009 के चुनाव में किशनगंज से असरारूल हक और सासाराम से मीरा कुमार चुनाव जीतीं. 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को किशनगंज से असरारूल हक और सुपौल से रंजीत रंजन को जीत मिली. 

पार्टी का मानना है कि इन सीटों को छोडने का मतलब है कि पार्टी का बिहार में कोई चेहरा ही नहीं रहेगा. ऐसे नेता विरासत से ही इन सीटों पर कांग्रेस की राजनीति करते हैं. पार्टी इसके अलावा सामाजिक समीकरण के तहत भी अलग से सीटों के गांठ खोलने में जुटी है. कांग्रेस के लिए बिहार में विपरीत परिस्थितियों में भी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने वाली सीटों में सासाराम की सीट है. यह सीट मीरा कुमार के नाम पूर्व से ही निर्धारित हैं. 

इसी तरह से औरंगाबाद की सीट निखिल कुमार को हर हाल में मिलेगी. सुपौल की सीट से रंजीत रंजन को टिकट मिलना तय है, तो किशनगंज कांग्रेस की परंपरागत सीट है. यह सीट कांग्रेस के सांसद असरारूल हक के निधन से रिक्त हुई है. पार्टी में शामिल होने के बाद कटिहार की सीट तारिक अनवर के लिए आवंटित मानी जा रही है, तो समस्तीपुर की सीट डा. अशोक कुमार को दिया जाना तय है. 

Web Title: lok sabha election 2019 congress rally in bihar mahagathbandhan seat sharing candidate selection