लोकसभा चुनाव: बीजेपी के सर्वे ने पासवान को उलझन में डाला, हाजीपुर सीट को लेकर पार्टी को सता रहा है ये डर

By एस पी सिन्हा | Published: March 14, 2019 04:03 PM2019-03-14T16:03:31+5:302019-03-14T16:03:31+5:30

एक सर्वे के अनुसार राम विलास पासवान के अलावा उनके परिवार का कोई और क्यों ना लोजपा से खडा हो जाए, यह परंपरागत सीट लोजपा के हाथ से निकल सकती है।

lok sabha election 2019 bjp survey hajipur seat ram vilas paswan may rethink to contest polls | लोकसभा चुनाव: बीजेपी के सर्वे ने पासवान को उलझन में डाला, हाजीपुर सीट को लेकर पार्टी को सता रहा है ये डर

राम विलास पासवान (फाइल फोटो)

Highlightsहाजीपुर सीट से राम विलास पासवान फिर उतर सकते हैं चुनावी मैदान मेंबीजेपी के एक सर्वे के अनुसार पासवान के अलावा कोई और खड़ा हुआ तो हार का खतरा राम विलास पासवान भी उलझन में, पासवान यहां से रिकॉर्ड मतों से जीत चुके हैं

चुनावी बिगुल बज चुका है और बिसातें बिछने लगी हैं। हाजीपुर लोकसभा सीट को लेकर हालांकि एनडीए उलझन में है। भाजपा और जदयू की समझ है कि रामविलास पासवान यहां से एनडीए के उम्मीदवार हुए तो जीत पक्की है। लिहाजा रामविलास पासवान यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि वो खुद लड़ें या अपने भाई को मैदान में उतारें।

मिली जानकारी के अनुसार भाजपा ने एक सर्वे कराया है, उसमें हाजीपुर सीट से रामविलास पासवान को ही जीतने वाला उम्मीदवार माना जा रहा है। इसके अलावा भले ही पासवान के परिवार का कोई और क्यों ना एलजेपी से खडा हो जाए, यह परंपरागत सीट लोजपा के हाथ से निकल सकती है। इस सीट से कभी पासवान रिकॉर्ड मत से जीत चुके हैं। ऐसे में हाजीपुर सीट को खोने का डर पासवान को सताने लगा है और ऐसे आलम में भाजपा के शीर्ष नेताओं उन पर हाजीपुर से चुनाव लड़ने का दबाव बनाना शुरू कर दिया है। 

दरअसल, यह संकट इसलिए खडा हो गया है क्योंकि एनडीए में लोकसभा सीट बंटवारे के वक्त जो फॉर्मूला तय हुआ था, उसमें एक राज्यसभा की सीट लोजपा को देने के लिए भाजपा सहमत हुई थी। उस वक्त यह बात साफ हो गई थी कि पार्टी प्रमुख रामविलास पासवान चुनाव नहीं लड़ेंगे और राज्यसभा की जो सबसे पहले सीट खाली होगी, उससे उन्हें राज्यसभा भेजा जाएगा। इसके अलावा लोजपा को छह लोकसभा सीटें दी जाएंगी। 

हाजीपुर सीट को लेकर माथापच्ची

सीट बंटवारे के वक्त भी वही हुआ। लोजपा को चुनाव लडने के लिए छह सीट मिल गई लेकिन अब भाजपा ने रामविलास पासवान पर चुनाव लडने का दबाव बनाना शुरू कर दिया है। पासवान परिवार हालांकि एनडीए की राय से सहमत नहीं है। परिवार का तर्क है कि रामविलास पासवान स्वास्थ्य कारणों से हाजीपुर से उम्मीदवार नही होंगे। उनकी जगह छोटे भाई और प्रदेश अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस को उम्मीदवार बनाया जाये तो भी जीत तय होगी।  
 
वहीं, लोजपा प्रमुख की इस तटस्थता और भाजपा की चिंता के कारण यह सवाल खडा हो गया है कि हाजीपुर में एनडीए का चेहरा कौन होगा? 1977 से हाजीपुर का लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर रहे रामविलास पासवान 2019 में लोकसभा की जगह राज्यसभा में बैठने की घोषणा कर चुके हैं। इसी कड़ी में एनडीए के सीट बंटवारे में लोजपा को लोकसभा की छह और राज्यसभा की एक सीट मिली है। 

लोजपा का कहना है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह वाली राज्यसभा सीट खाली होने जा रही है, पासवान को यह सीट मिलनी चाहिये। बुधवार को पशुपति पारस ने हाजीपुर में टीम के साथ डेरा डाल दिया। ऐसे में लोजपा के लोगों का मानना है कि पार्टी यदि भाजपा की सलाह मान लेती है और रामविलास चुनाव लडने को तैयार हो जाते हैं तो उसे राज्यसभा की सीट को लेकर नये सिरे से सोचना होगा। यही वजह है कि केंद्रीय मंत्री और लोजपा रामविलास पासवान अपनी परंपरागत सीट पर यह तय नहीं कर पाए हैं कि वह खुद किस्मत आजमाएंगे या फिर अपने भाई लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष और बिहार सरकार में मंत्री पशुपति कुमार पारस को चुनाव लडवाएंगे। 

बीजेपी के दबाव पर क्या फिर पासवान उतरेंगे चुनावी मैदान में?

इस बीच सर्वे के आने के बाद पशुपति कुमार पारस के अंदर भी खौफ हो गया है कि अगर चुनाव लड़े और हाजीपुर से हार गए तो बिहार सरकार में बैठे मंत्री पद पर भी खतरा आ सकता है। ऐसे में वह भी खुल कर कुछ बोल नहीं पा रहे हैं। वैसे इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता है कि भाजपा का दबाव बढा तो रामविलास चुनाव मैदान में आ जाएं और वायदे के हिसाब से राज्यसभा के एक सीट से वह अपनी पार्टी या परिवार के किसी सदस्य को राज्यसभा भेज दें। 

उल्लेखनीय है कि राम विलास पासवान का यह लोकसभा सदस्य के रूप में नौवां कार्यकाल है और वह बिहार विधानसभा के लिए पहली बार 1969 में चुने गए थे। पासवान विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं के छह प्रधानमंत्रियों के अधीन केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। वह वी.पी. सिंह सरकार का हिस्सा थे और एच.डी. देवेगौडा, आई.के.गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं। पासवान ने भाजपा-नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पहले कार्यकाल में 2002 गुजरात दंगों के विरोध में इससे नाता तोड़ लिया था। उन्होंने उसके बाद कांग्रेस से हाथ मिला लिया और संप्रग सरकार में शामिल हो गए। 

वह 2009 लोकसभा चुनाव हार गए और 2014 चुनाव से पहले, कांग्रेस नीत संप्रग सरकार के चुनाव हारने की संभावना व परिस्थिति की वजह से फिर से राजग में शामिल हो गए और अब मौजूदा मोदी सरकार में मंत्री रहे हैं। वरिष्ठ नेता पासवान 2019 लोकसभा चुनाव के लिए राजग के साथ बने हुए हैं और सत्तारूढ गठबंधन पाकिस्तान के आतंकी शिविरों पर हमला करने के बाद अच्छी स्थिति में दिख रही है।

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