पश्चिम बंगाल: कोरोना संक्रमित मरीजों की अधिक मृत्युदर के कारण हैं सामाजिक लांछन और कम जांच

By भाषा | Published: May 8, 2020 04:49 PM2020-05-08T16:49:05+5:302020-05-08T16:49:05+5:30

विशेषज्ञों का कहना है कि सामाजिक कलंक लगने का भय और कम जांच ही पश्चिम बंगाल में कोविड-19 मरीजों की अधिक मृत्युदर के प्रमुख कारण हैं।

less investigation and social stigma are the cause of corona positive patients in west bengal | पश्चिम बंगाल: कोरोना संक्रमित मरीजों की अधिक मृत्युदर के कारण हैं सामाजिक लांछन और कम जांच

कोविड-19 मामलों एवं मौत की संख्या कम बताने के आरोप लगाए जा रहे हैं।  (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Highlights7 मई तक, राज्य में कोविड-19 के 1,548 मामले थे और संक्रमण से ग्रस्त 151 लोगों की मौत हुई।केंद्र ने कहा है कि आबादी के अनुपात में यहां बहुत कम जांच की गई है।

कोलकाता: विशेषज्ञों का कहना है कि पश्चिम बंगाल में कोविड-19 मरीजों की अधिक मृत्युदर के लिए सामाजिक कलंक लगने का भय और कम जांच प्रमुख कारण हैं। उनके अनुसार देश के अन्य हिस्सों की ही तरह इसे शहर में होने वाली घटना ही माना जा रहा है। राज्य की तृणमूल कांग्रेस सरकार वैश्विक महामारी से निपटने के अपने तरीके को लेकर केंद्र और विपक्षी पार्टियों की आलोचना झेल रही है और उसपर कोविड-19 मामलों एवं मौत की संख्या कम बताने के आरोप लगाए जा रहे हैं। 

सात मई तक, राज्य में कोविड-19 के 1,548 मामले थे और संक्रमण से ग्रस्त 151 लोगों की मौत हुई। राज्य के जन स्वास्थ्य अधिकारियों ने संक्रमण से केवल 79 मौत की बात मानी है और बाकी मौत संक्रमण के साथ-साथ रही अन्य गंभीर बीमारियों के कारण बताई है। केंद्र ने कोविड-19 प्रबंधन को लेकर हाल में राज्य सरकार की आलोचना की है। केंद्र ने कहा है कि आबादी के अनुपात में यहां बहुत कम जांच की गई है। यहां मृत्य दर 13.2 प्रतिशत है जो देश में सबसे ज्यादा है। 

पश्चिम बंगाल ने 18 मार्च तक हर दिन 400 नमूनों की दर से 4,400 नमूनों की जांच की थी लेकिन अब वह हर दिन 2,500 से ज्यादा नमूनों की जांच की जा रही है। राज्य के अधिकारियों के मुताबिक अब 30,000 से अधिक जांच कर ली गई है। क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि ज्यादातर मामले कोलकाता, हावड़ा, हुगली, उत्तर 24 परगना और दक्षिण 24 परगना से सामने आ रहे हैं। 

इसलिए इसे अब भी ‘शहरी घटना’ माना जा रहा है लेकिन यह जल्द ही या कुछ समय बाद ग्रामीण इलाकों तक फैल सकता है। बीमारी के खिलाफ जंग में अग्रिम मोर्चे पर काम कर रहे चिकित्सा पेशेवरों और जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक मरीजों की सामाजिक लांछना एवं समाज से उनका तथा उनके परिवार का निष्कासन जैसी समस्याओं का सामना करना इस वैश्विक महामारी से निपटने के प्रभावी तरीके में बाधा बन रहे हैं।

एसएसकेएम अस्पताल के प्राध्यापक एवं वरिष्ठ सर्जन दीप्तेंद्र सरकार ने पीटीआई-भाषा से कहा कि सामाजिक कलंक कोविड-19 के मरीज की पहचान में बड़ी समस्या है। मामलों की संख्या बढ़ने के बाद से लोगों ने सामाजिक कलंक एवं उनके इलाकों में उन्हें शर्मसार किए जाने से बचने के लिए अस्पताल आना बंद कर दिया है और वे घर पर ही रहना पसंद कर रहे हैं। और जब वे अस्पताल आते हैं, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

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