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सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों के कई फैसलों पर जताई निराशा, कहा- 'अपर्याप्त या गलत सजा' के चलते आते हैं बड़ी संख्या में मामले

By भाषा | Updated: October 30, 2019 06:03 IST

शीर्ष अदालत ने कहा कि दोषी ठहराने या सजा देने की प्रक्रिया को गंभीरता से लिया जाना चाहिए क्योंकि आपराधिक न्याय तंत्र के इस हिस्से का समाज पर निर्णायक प्रभाव पड़ता है।

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ठळक मुद्देउच्चतम न्यायालय ने निचली अदालतों द्वारा “अपर्याप्त या गलत सजा दिए जाने” के कारण उसके समक्ष दायर होने वाले विभिन्न मामलों पर निराशा जाहिर की है। न्यायालय ने सजा के पहलू से “लापरवाह तरीके” से निपटने के खिलाफ बार-बार चेताया है।

उच्चतम न्यायालय ने निचली अदालतों द्वारा “अपर्याप्त या गलत सजा दिए जाने” के कारण उसके समक्ष दायर होने वाले विभिन्न मामलों पर निराशा जाहिर की है। न्यायालय ने सजा के पहलू से “लापरवाह तरीके” से निपटने के खिलाफ बार-बार चेताया है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि दोषी ठहराने या सजा देने की प्रक्रिया को गंभीरता से लिया जाना चाहिए क्योंकि आपराधिक न्याय तंत्र के इस हिस्से का समाज पर निर्णायक प्रभाव पड़ता है। ये टिप्पणियां न्यायमूर्ति एन वी रमण की अगुवाई वाली एक पीठ ने मध्य प्रदेश की ओर से दायर याचिका पर दिए अपने फैसले में की।

राज्य ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी जिसने निचली अदालत द्वारा चार व्यक्तियों को सुनाई गई तीन साल कैद की सजा को उस अवधि तक घटा दिया था जो वे पहले से ही जेल में काट चुके थे।

पीठ ने कहा, “हमारा मत है कि इस अदालत के समक्ष ज्यादातर मामले निचली अदालतों द्वारा अपर्याप्त या गलत सजा सुनाए जाने के कारण दायर किए जाते हैं। हमने बार-बार कुछ मामलों में सजा सुनाने के लापरवाह तरीके के खिलाफ चेताया है।”

पीठ में न्यायमूर्ति एम एम शांतानागौदर और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी भी शामिल थे। उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले में सुधार करते हुए तीन दोषियों को तीन महीने कैद की सजा सुनाई और प्रत्येक पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया। वहीं 80 वर्ष के आस-पास की उम्र के चौथे दोषी को दो महीने कैद की सजा सुनाई और 65,000 रुपये का जुर्माना लगाया।

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