मौत के बाद भी नसीब नहीं हुई जमीन, कश्मीर में 37 साल से एक कब्र को इंतजार है शव का

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: February 8, 2021 15:48 IST2021-02-08T15:46:49+5:302021-02-08T15:48:17+5:30

असल में जब मकबूल बट को तत्कालीन जज नीलकंठ गंजू ने फांसी की सजा सुनाई थी तो उसी समय श्रीनगर के ईदगाह में, जिसे अब शहीदी कब्रिस्तान के नाम से भी जाना जाता है, में एक कब्र को खुदवाया गया था।

Land not destined even after death, a grave is waiting for dead body in Kashmir for 37 years | मौत के बाद भी नसीब नहीं हुई जमीन, कश्मीर में 37 साल से एक कब्र को इंतजार है शव का

प्रतीकात्मक तस्वीर। (फाइल फोटो)

Highlightsमकबूल बट को फांसी देने के बाद उसके शव को तिहाड़ जेल के भीतर ही दफना दिया गया था।37 वर्ष पूर्व जब उसे फांसी दी गई थी तो तब कश्मीर में व्याप्क स्तर पर आंदोलन हुआ था।

जम्मू, 8 फरवरी। वादी-ए-कश्मीर के राजधानी शहर श्रीनगर के शहीदी ईदगाह में आज भी एक कब्र खुदी हुई रखी गई है और उसमें शव नहीं है। कब्र पर एक तख्ता टांगा गया है और वहां मकबूल बट का नाम लिखा गया है। उस कब्र को आज भी मकबूल के शव का इंतजार है। असल में 37 साल पहले जेकेएलएफ नामक आतंकी संगठन के संस्थापक सदस्य मकबूल बट को 11 फरवरी 1984 के दिन तिहाड़ जेल में फांसी दी गई थी। शहीदी कब्रिस्तान में उसके लिए कब्र लिए खोदी गई थी लेकिन उसका शव कश्मीर में लौटाया नहीं गया था जिसकी मांग आज भी की जा रही है।

मकबूल बट को फांसी देने के बाद उसके शव को तिहाड़ जेल के भीतर ही दफना दिया गया था। तब ऐसा इस डर के कारण किया गया था कि अगर उसके शव को कश्मीर घाटी में भिजवा दिया गया तो वहां भावनाएं भड़क सकती हैं। लेकिन बावजूद इसके भावनाओं को भड़कने से रोका नहीं जा सका था। स्थिति यह थी कि कश्मीर के लोगों की, खासकर मकबूल बट के सहयोगियों तथा जेकेएलएफ के सदस्यों की, भावनाओं को भड़कने से रोका नहीं जा सका था। 

37 वर्ष पूर्व जब उसे फांसी दी गई थी तो तब कश्मीर में व्याप्क स्तर पर आंदोलन हुआ था। तोड़फोड़ और हिंसा ने भी अपना उग्र रूप दर्शाया था। उसके उपरांत उसे जिस दिन फांसी दी गई थी उसे ‘शहीदी दिवस’ के रूप में मना कर आतंकवादियों की ओर से हड़ताल की जाती रही है। पिछले 23 सालों तक यह सिलसिला चलता रहा लेकिन 11 साल पहले साल इसने नया रूख धारण कर लिया था जब किसी भी आतंकी संगठन की ओर से हड़ताल का आह्वान नहीं किया था।

 ऐसा भी नहीं था कि आतंकी गुटों ने हड़तालें न करने का मन बना लिया था बल्कि जेकेएलएफ ने इसके प्रति फैसला लिया था कि इस ‘शहीदी दिवस’ को अब हड़ताल के रूप में नहीं मनाया जाएगा बल्कि एक आंदोलन के रूप में। और यह आंदोलन था मकबूल बट के शव को प्राप्त करना। लेकिन अलगाववादी अधिक दिनों तक इस फैसले पर नहीं टिक पाए और फिर उन्होंने हड़ताल का सहारा ले लिया था। नतीजतन मकबूल बट के शव को कश्मीर घाटी में लाकर ईदगाह में खुदी हुई उसके नाम की कब्र में उसे फिर से दफनाने का आंदोलन पिछले कुछ सालों से कश्मीर घाटी में चल रहा है। 

अलगाववादी संगठनों की ओर से इसे पूरा समर्थन भी दिया जा रहा है।  जेकेएलएफ के सदस्यों तथा मकूबल बट के परिजनों को उम्मीद यही थी कि फांसी के उपरांत उसके शव को उन्हें सौंप दिया जाएगा ताकि वे उसे इसी कब्र में दफन कर सकें। लेकिन मौत के बाद भी मकबूल बट को कश्मीर की वह धरती नसीब नहीं हुई जिसकी ‘आजादी’ की खातिर उसने तथाकथित आंदोलन छेड़ा था जो आज आतंकवाद का रूप ले चुका है।

Web Title: Land not destined even after death, a grave is waiting for dead body in Kashmir for 37 years

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