लद्दाखवासियों को अब रास नहीं आ रहा है यूटी का दर्जा, राज्य की मान्यता के लिए आंदोलन होने वाला है तेज

By सुरेश एस डुग्गर | Published: October 27, 2022 05:00 PM2022-10-27T17:00:13+5:302022-10-27T17:10:53+5:30

आपको बता दें कि कुछ दिनों पहले लद्दाखी नेताओं की केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात हुई थी। इस मुलाकात में उन्होंने दो संसदीय क्षेत्र देने की बात को तो मान लिया था पर राज्य का दर्जा देकर विधानसभा न देने के पीछे कई कारण गिना दिए थे।

Ladakh people not liking status UT movement recognition state going intensify | लद्दाखवासियों को अब रास नहीं आ रहा है यूटी का दर्जा, राज्य की मान्यता के लिए आंदोलन होने वाला है तेज

फोटो सोर्स: ANI (प्रतिकात्मक फोटो)

Highlightsलद्दाखवासियों को लद्दाख को मिले यूटी का दर्जा अब रास नहीं आ रहा है। ऐसे में उनकी मांग है कि लद्दाख को जल्द से जल्द एक राज्य का मान्यता दी जाए। इसके लिए आने वाले दिनों में विरोध तेज होने वाला है।

जम्मू: करीब 30 सालों के आंदोलन के बाद लद्दाख ने केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा 5 अगस्त 2019 को पाया तो मन की मुराद पूरी होने की खुशी अब हवा होने लगी है। कारण स्पष्ट है। वे लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित कर दिए जाने के कारण अब राज्य का दर्जा पाने को छटपटा रहे हैं। 

केंद्र शसित प्रदेश लद्दाख के निवासियों ने क्षेत्र के हितों के संरक्षण की रणनीति के तहत वर्ष 2023 में राज्य दर्जे को लेकर आंदोलन तेज करने की तैयारी कर ली है। इसकी शुरूआत दो नवंबर को लद्दाख बंद के साथ होगी।

2 नवंबर को रहेगा लद्दाख बंद

लेह में लद्दाख एपेक्स बाडी व कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस की बैठक में दो नवंबर को लद्दाख बंद का फैसला किया गया। इसके साथ लद्दाख के मुद्दों को लेकर आंदोलन की रणनीति बनाने के लिए पूर्व मंत्री छेरिंग दोरजे की अध्यक्षता वाली कोर कमेटी का भी गठन किया गया है। 

कमेटी के सदस्यों में नसीर हुसैन मुंशी, पूर्व सांसद थुप्स्टन छेवांग, पदमा स्टेंजिन, थिनलेस आंगमो, कमर अली अखून, असगर अली करबलई व सज्जाद करगिली शामिल हैं।

केन्द्र उनकी मांगों को लेकर नहीं दिखा रहा गंभीरता-संगठन

एपेक्स बाडी और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस ने राजधानी शहर लेह में संयुक्त बैठक कर कोर कमेटी का गठन किया है। इसमें युवाओं को शामिल किया गया है। दोनों संगठनों ने साफ किया है कि केंद्र ने उनकी मांगों को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई है। 

ऐसे में उन्हें अपनी जमीन, रोजगार और पहचान को बचाने के लिए आंदोलन की ओर जाना पड़ रहा है। एपेक्स बाडी के अध्यक्ष थुप्सटन छेवांग ने कहा कि लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए तीन साल पूरे होने जा रहे हैं।

कोर कमेटी अपनी मांगों को लेकर है गंभीर

यूटी बनाए जाने के बाद से ही लद्दाख के लोग अपनी जमीन, रोजगार, संस्कृति, जलवायु और पहचान को बचाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। पूर्ण राज्य और संविधान की छठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर केंद्र से वार्ता जरूर हुईं लेकिन इसे लेकर टालमटोल ही किया गया। 

आपको अगस्त 2021 में लेह और करगिल के लोगों ने मिलकर संघर्ष करने का फैसला लिया है। अब कोर कमेटी का गठन किया गया है, जो दोनों प्रमुख मांगों को लेकर संघर्ष तेज करेगी।

सरकार नार्थ ईस्ट की तर्ज पर उससे ज्यादा अधिकार देने को तैयार, पर लद्दाखवासी नहीं मान रहे

दरअसल जो यूटी का दर्जा बिना विधानसभा के मिला वह अब लद्दाखवासियों को रास नहीं आ रहा है। यूटी मिलने के कुछ ही महीनों के बाद उन्होंने आंदोलन छेड़ दिया। हालांकि इस आंदोलन ने अभी उतनी हवा नहीं पकड़ी है जितनी आग यूटी पाने की मांग ने पकड़ी थी। एक बार अगस्त महीने में भी इस मांग को लेकर बंद का आयोजन किया जा चुका है।

पर इस मुद्दे पर पिछले तीन सालों में कई बार बुलाई गई हड़ताल के बाद केंद्र सरकार लद्दाख को धारा 371 के तहत नार्थ ईस्ट की तर्ज पर हद से बढ़कर अधिकार देने को तैयार है पर लद्दाखी मानने को राजी नहीं हैं। 

लद्दाखी नेताओं की अमित शाह से मुलाकात भी रहा विफल

हालांकि कुछ दिनों पहले लद्दाखी नेताओं की केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के दौरान, उन्होंने दो संसदीय क्षेत्र देने की बात को मान लिया पर राज्य का दर्जा देकर विधानसभा न देने के पीछे कई कारण गिना दिए गए थे।

लद्दाख में अब राज्य का दर्जा पाने के साथ ही विधानसभा पाने को जिस आंदोलन को हवा दी जा रही है उसका नेतृत्व लेह अपेक्स बाडी कर रही है जिसके चेयरमेन थुप्स्टन छेवांग बनाए गए हैं। नार्थ ब्लाक में अधिकारियों से मुलाकातों के बाद छेवांग को भी धारा 371 के तहत ही और अधिकार देने का आश्वान दिया गया है जिसे लेह अपेक्स बाडी तथा करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस मानने को राजी नहीं हैं।

ऐसे में राज्य का दर्जा पाने की राह पर चल रहे है दोनों जिला

ऐसे में लद्दाख से मिलने वाले संकेत यही कहते हैं कि लद्दाख के दोनों जिलों- लेह और करगिल में राज्य का दर्जा पाकर लोकतांत्रिक अधिकार पाने का लावा किसी भी समय फूट सकता है। तीन साल पहले जब करगिल को जम्मू कश्मीर से अलग किया गया था था तब भी उसने इसी चिंता को दर्शाते हुए कई दिनों तक बंद का आयोजन किया था। करगिलवासी भी लोकतांत्रिक अधिकारों की खातिर विधानसभा चाहते हैं।

Web Title: Ladakh people not liking status UT movement recognition state going intensify

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