लद्दाख: फिंगर 8 में 8 किलोमीटर अंदर गई चीनी सेना, फिंगर-4 से भी वापसी पर पहाड़ी चोटियों पर है काबिज
By सुरेश एस डुग्गर | Published: July 16, 2020 01:04 PM2020-07-16T13:04:34+5:302020-07-16T13:16:48+5:30
लद्दाख में चीन सेना के साथ लगातार बातचीत कर मामले को सुलझाने की कोशिश जारी है। भारत कुछ हद तक कामयाब भी हुआ है लेकिन चीनी सेना का कई जगहों के लिए जिद्दी रवैया जारी है।
जम्मू:लद्दाख सेक्टर में चीनी सेना के साथ चार दौर की उच्चस्तरीय बातचीत के बावजूद भारतीय पक्ष पैंगांग त्सो के फिंगर 8 और फिंगर 4 के इलाकों से लाल सेना की वापसी को सुनिश्चित नहीं बना पाया है। चीनी सैनिक अभी भी फिंगर 8 के पश्चिम इलाके में एलएसी के करीब 8 किमी भारतीय दावे वाले क्षेत्र के भीतर हैं।
हालांकि तीसरे दौर की वार्ता के उपरांत फिंगर चार के बेस एरिया को तो चीनी सैनिकों ने खाली कर दिया पर वे फिंगर चार की पहाड़ी चोटियों पर काबिज हो चुके हैं।
चौथे चरण की 15 घंटों तक चली बातचीत के उपरांत हालांकि भारतीय पक्ष इसके प्रति खुशी मना रहा था कि अंततः चीनी सेना फिंगर 8 के प्रति बातचीत के लिए राजी हुई है। इससे पहले वह पैंगांग त्सो के सभी फिंगर पर बातचीत से साफ इनकार करती आई थी।
7 से 8 किमी चौड़ी और करीब 150 किमी लंबी पैंगांग झील के दूसरी तरफ के किनारों पर जो पहाड़ी श्रृंखला है वह एक हाथ की अंगुलियों की तरह है। यह करीब 8 की संख्या में है और इन सभी पर चीनी सेना अपना दावा ठोंकते हुए पिछले कई महीनों से डेरा जमाए बैठी है।
पैंगांग झील का 70 से 80 प्रतिशत इलाके चीन के कब्जे में है। फिंगर 8 में दोनों सेनाएं आमने-सामने तो नहीं हैं पर वहां चीनी सैनिकों की उपस्थिति भारतीय सेना के लिए खतरे से कम नहीं है।
चीनी सेना फिंगर 8 के इलाके में भारी भरकम सैनिक साजो सामान के साथ तैनात है जिसमें उसने हल्के टैंक भी तैनात किए हुए हैं। रक्षाधिकारी कहते थे कि फिंगर 4 के बेस अर्थात कुछ मैदानी इलाके से चीनी सेना पीछे हटी तो है पर उसने पीछे हटने के बाद पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया है जो अब उन भारतीय सैनिकों के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गई हैं जो इलाके में गश्त के लिए जाना चाहते हैं।
अधिकारियों के अनुसार, अभी गलवान वैली के पीपी-14 एरिया में भी भारतीय सेना ने गश्त शुरू नहीं की है और इसी तरह से अगले आदेश तक फिंगर 4 के इलाके को भी गश्त से बाहर रखा गया है। भारतीय सेना को भी गलवान वैली से अपने ही इलाके में 2 किमी पीछे तम्बू गाड़ने पड़े हैं।