पूण्य प्रसून का कॉलमः 'एक ढपली एक राग ' का मंत्र लिये खत्म हुआ शपथ ग्रहण समारोह

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: May 23, 2018 07:40 PM2018-05-23T19:40:25+5:302018-05-23T20:06:11+5:30

कर्नाटक में कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण की तस्वीर ने साफ कर दिया है कि 2019 में चुनावी लोकतंत्र की हवा यही होगी।

Kumarswami oath ceremony: United opposition in lok sabha 2019 | पूण्य प्रसून का कॉलमः 'एक ढपली एक राग ' का मंत्र लिये खत्म हुआ शपथ ग्रहण समारोह

पूण्य प्रसून का कॉलमः 'एक ढपली एक राग ' का मंत्र लिये खत्म हुआ शपथ ग्रहण समारोह

- पुण्य प्रसून वाजपेयी

तो विपक्ष की एकजूटता क्या 2019 में नरेन्द्र मोदी की घेराबंदी कर लेगी। क्योंकि कुमार स्वामी शपथ ग्रहण के दौरान की तस्वीरों के अक्स का सच समझे तो कांग्रेस उस धागे के तरह राज्य दर राज्य को जोड़ रही है या कहे राज्य दर राज्य मोदी सत्ता के खिलाफ जुड़ते चले जा रहे हैं। जहां का गणित छोटा होकर भी जुड़ने के साथ बड़ा होता चला जाता है।

राहुल गांधी / सोनिया गांधी / देवेगौड़ा / चन्द्रबाबू / ममता / चन्द्रशेखर राव / अखिलेश / मायावती / शरद पवार / शरद यादव / अजित सिंह / नवीन पटनायक / केजरीवाल / तेजस्वी यादव / हेमंत सोरेन /  विजयन / उमर अब्दुल्ला। तो कर्नाटक के सत्ता समीकरण ने 2014 के बाद बनते उस मिथ को तोड़ दिया है जहा सिर्फ कांग्रेस ही किसी क्षत्रप से मिलती रही और चुनावी मैदान में मुकाबला त्रिकोणिय बनता रहा। और जीत बीजेपी को मिलती रही। क्योंकि कर्नाटक के साथ क्षत्रपों की कतार में बिहार, यूपी, बंगाल, आध्र प्रदेश, तेलंगना, ओडिसा, झारखंड, केरल, कश्मीर, दिल्ली सभी तो है।

यानी विपक्ष 2019 के हालात उस दिशा में ले जाना चाह रहा है जहां कांग्रेस बड़ी पार्टी के तौर पर उभरेगी तो फिर राहुल गांधी का सपना जागेगा। जिसे उन्होंने कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान ये कह कर देखा कि कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी हुई तो वह पीएम बन सकते हैं। पर इसका अगला सवाल ये भी है कि कांग्रेस अगर सबसे बड़ी पार्टी ना हुई और कांग्रेस के सहयोग से क्षत्रपों की चल निकली तो फिर देवेगौड़ा सरीखे किसी क्षत्रप पर राहुल को ये कहते हुये मुहर लगानी होगी कि सत्ता जहर है।

पर सवाल पहली बार विपक्ष के लिये पीएम की कुर्सी तक पहुंचने से ज्यादा बड़ा यही हो चला है कि नरेन्द्र मोदी को विपक्ष पीएम की कुर्सी पर देखना नहीं चाहता। और यही से सियासत की दो लकीर खिंचती है। पहली, अगर समूचा विपक्ष एकजूट है तो मोदी मजबूत होंगे। दूसरा, अगर मोदी के खिलाफ कोई चेहरा ही नहीं होगा तो फिर परीक्षा मोदी के काम की होगी। क्योंकि चेहरे के तौर पर मोदी का विकल्प विपक्ष का कोई चेहरा है नहीं।

और मोदी इसीलिये बार बार राहुल गांधी के चेहरे को अपने खिलाफ खडा करते है। पर कर्नाटक से निकले हालातो ने राहुल के कद को छोटा किया है और विपक्ष के कद को बडा किया है। यानी विपक्ष का कोई चेहरा नही है सिर्फ नंबर गेम है। और चेहरा ना होने पर 2019 की दिशा मोदी सरकार के पांच बरस के कामकाज पर जनादेश देने निकलेगी। और ध्यान दें तो मोदी ने बेहद बारिकी से अधिकतर योजनाओ का टारगेट 2022 रखा है। और 2014 में साठ महीने की सत्ता की मांग को लगभग दबा दिया है। आधी हकीकत आदा फसाना यही है। मोदी चाहेंगे राहुल चेहरा हो या फिर 2022 का नारा बुलंद हो।

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विपक्ष चाहेगा कोई चेहरा ना हो और बात सिर्फ 5 साल मोदी कार्यकाल के हो। पर विपक्ष की एका के शोर हंगामे का असर सिर्फ नंबर गेम भर नहीं है। बल्कि राजनीति धारा बदल रही है। विचारधारा उड़न छू हो चली है। खासकर यूपी महाराष्ट्र और पं. बंगाल। क्योंकि यूपी में दलित कार्ड सिर्फ माायावती के हाथ में नहीं रहेगा। बंगाल में वामपंथी धारा मा माटी मानुष में समा जायेगी। या फिर काग्रेस, यूपी-बंगाल में अपनी अलग पहचान को क्षत्रपों के पिछे खड़ा कर सुकून की सांस लेगी।

और इस कतार में हिन्दुवादी होने का सबसे बड़ा तमगा लेकर चलने वाली शिवसेना भी क्या 2019 में पाला बदल लेगी। क्योंकि कुमारस्वामी की तरफ से उद्धव ठाकरे को भी न्यौता गया था। और उद्धव बीजेपी के खिलाफ ताल ठोंककर लगातार बोल रहे हैं। पालघर में बीजेपी के खिलाफ ही शिवसेना मैदान में है। तो सवाल दो है। पहला, 2019 में बचेगी मोदी वाली बीजेपी और मोदी विरोध वाला विपक्ष। दूसरा, मोदी विरोध की सियासत लेफ्ट राईट की थ्योरी को 1989 की तर्ज पर मिटा देगी।

जी हवा का रुख यही है। 1989 में वीपी सिंह की सरकार को बनाने के पीछे बीजेपी भी थी और वामपंथी भी थे। 2019 में मोदी विरोध के लिये राइट शिवसेना होगी तो लेफ्ट येचुरी भी होगें। तो क्या लेफ्ट राइट सेंटर का ध्रुवीकरण मोदी के दौर ने कुछ ऐसा कर दिया है जो मोदी माइनस बीजेपी को भविष्य दिखा रहा है। या फिर पहली बार संघ के सामने एक ऐसी शून्यता खड़ी हो रहा है जहा उसकी भूमिका ही भविष्य में गायब हो जायेगी।

क्योंकि मोदी बगैर बीजेपी की संघ सोचने को तैयार नहीं है। संघ की फिलास्फी को मोदी अपनाने को तैयार नहीं है। ऐसे में शिवसेना अगर बीजेपी के खिलाफ होती है तो फिर हिन्दु वोट के ध्रुवीकरण का जो जिक्र 2014 में वोट डालते वक्त संघ परिवारक कर रहा था वह 2019 में बिखर जायेगा। तो हालात 2019 में जो भी बने पर मौजूदा सच तो यही है कि मोदी काल ने देश की उस राजनीतिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया हो जो अपने अपने राग को लेकर अपनी अपनी ठपली बजाते थे। पर कैसे एक ही राग और एक ही ढपली हो गये। इसके लिये राज्यों में विधायक की संख्या से समझना होगा।

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देश के मानचित्र को सत्तानुकुल रंग में रंगियेगा तो भगवा रंग ही उभरेगा। पर कर्नाटक के खेल ने विपक्ष को सये समझ दे दी कि लोकतंत्र नंबरगेम है। और बीजेपी के नबरगेम का खेल  ने ही समूचे विपक्ष को सिखा दिया। क्योकि अब सभी जोड़कर यही कह रहे है कि देश के 4120 विधायकों में से बीजेपी के विधायकों की तादाद तो 1504 है। जो 36.5 फिसदी होते है। यानी विपक्ष समेत अन्य दल के पास 2616 विधायक हैं। जो 63.5 फीसदी होते हैं।

और यही वह हालात है जिसने विपक्ष को कर्नाटक के शपथ ग्रहण समारोह में एकजुट कर दिया है। और बीजेपी के साथ खड़ी शिवसेना भी अब समझ रही है कि हवा का रुख बदल रहा है तो वह पालघर उपचुनाव बीजेपी के खिलाफ लड़ रही है। और विपक्ष शिवसेना को साथ लेने के लिये कर्नाटक शपथ ग्रहण का न्योता भेजा गया तो क्या कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण की तस्वीर ने साफ कर दिया है कि 2019 में चुनावी लोकतंत्र की हवा यही होगी।

(पूण्य प्रसून वरिष्ठ पत्रकार हैं। इस वक्त एबीपी न्यूज में कार्यरत हैं।)

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Web Title: Kumarswami oath ceremony: United opposition in lok sabha 2019

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