कुढ़नी उपचुनाव: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा लगी दांव पर, ओवैसी और सहनी बिगाड़ सकते हैं खेल
By एस पी सिन्हा | Published: November 28, 2022 04:40 PM2022-11-28T16:40:34+5:302022-11-28T16:40:34+5:30
यहां मुख्य मुकाबला दो पुराने प्रतिद्वंदियों भाजपा के केदार प्रसाद गुप्ता और जदयू के मनोज कुशवाहा के बीच है। ये दोनों 2015 के विधानसभा चुनाव में भी आपस में भिड़ चुके हैं। उस चुनाव में केदार प्रसाद गुप्ता ने मनोज कुशवाहा को 11,570 वोटों से हराया था।
पटना: बिहार में कुढ़नी विधानसभा सीट के लिए 5 दिसंबर को होने जा रहे उपचुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा दाव पर लगी हुई है। 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां से राजद के अनिल सहनी जीते थे। इस कारण से राजद की यह सीटिंग सीट थी। उन्होंने भाजपा के केदार प्रसाद गुप्ता को हराया था। उस चुनाव में नीतीश कुमार भाजपा के साथ थे और बतौर मुख्यमंत्री एनडीए की सरकार चला रहे थे। लेकिन राज्य में सत्ता समीकरण बदलने और जदयू के राजद के साथ महागठबंधन में आने से परिस्थितियां बदली हुई हैं।
अब राजद विधायक अनिल सहनी को एक मामले में सजा होने के कारण उनकी सदस्यता रद्द हो गई। इसके वजह से यहां उपचुनाव की नौबत आ गई। अब बदले सियासी समीकरण के में उपचुनाव के बहाने नीतीश अपनी राजनीतिक ताकत दिखाना चाहते हैं। यही वजह है कि उन्होने राजद नेतृत्व से कुढ़नी सीट जदयू के लिए छोड़ने का आग्रह किया। राजद ने भी अपनी सीटिंग सीट होने के बावजूद गठबंधन धर्म निभाते हुये उनका सीट छोड़ने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इस बीच कुढ़नी उपचुनाव की तस्वीर अब कमोबेश साफ हो गई है।
यहां मुख्य मुकाबला दो पुराने प्रतिद्वंदियों भाजपा के केदार प्रसाद गुप्ता और जदयू के मनोज कुशवाहा के बीच है। ये दोनों 2015 के विधानसभा चुनाव में भी आपस में भिड़ चुके हैं। उस चुनाव में केदार प्रसाद गुप्ता ने मनोज कुशवाहा को 11,570 वोटों से हराया था। खास बात यह है कि उस चुनाव में भी राजद और जदयू साथ थे। इस उपचुनाव में भी दोनों दल साथ हैं। पर इस उपचुनाव में परिस्थितियां कुछ बदली हुई है। 2015 के विधानसभा चुनाव में गुप्ता और कुशवाहा के बीच सीधा मुकाबला था। लेकिन इस बार असदुद्दीन ओवैसी और मुकेश सहनी ने भी अपनी पार्टी का उम्मीदवार उतार दिया है।
एआईएमआईएम के प्रत्याशी गुलाम मुर्तजा अंसारी जिला पार्षद रहे हैं। ऐसे में क्षेत्र में उनका प्रभाव भी है। पार्टी के सामाजिक समीकरण को देखते हुये उनको मिलने वाले वोटों का खामियाजा महागठबंधन के उम्मीदवार मनोज कुशवाहा को ही भुगतना पड़ेगा। ओवैसी फैक्टर हाल ही में हुए गोपालगंज उपचुनाव में जलवा दिखा चुका है। सही मायने में एआईएमआईएम और वीआईपी की झपटमारी ही इस उपचुनाव का नतीजा तय करेगा। क्योंकि यहां जीत-हार का अंतर बहुत कम रहा है।
पिछले चुनाव मे भाजपा के केदार प्रसाद गुप्ता राजद के अनिल सहनी से सिर्फ 712 वोट से हारे थे। कुल मिलाकर कुढ़नी उपचुनाव काफी दिलचस्प हो गया है। भाजपा और महागठबंधन के नेता अपने अपने पक्ष में वोटरों को रिझाने में लगे हुये हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव दो दिसंबर को वहां चुनावी सभा को संबोधित करेंगे।
यह उपचुनाव इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि इसके नतीजे राज्य में आगामी चुनावों को प्रभावित कर सकता है। यही नही इसके नतीजे जाति की राजनीति करने वाले कुछ नेताओं की भी पोल खोलेंगे। किसी के पास जातीय समीकरण का बल है तो कोई सरकार की उपलब्धियों को गिना रहा है। इन सबके बीच मतदाता ने भी अपना मिजाज बना लिया है, लेकिन खुलकर किसी प्रत्याशी का नाम नहीं ले रहे।