कर्नाटक के कॉलेजों में पिछले एक महीने से अधिक समय से जारी हिजाब विवाद पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा है कि सभी छात्रों को ड्रेस कोड या यूनिफॉर्म का पालन करना चाहिए। हालांकि, उन्होंने कहा कि यह उनका निजी मत है और अदालत का फैसला आने पर सभी को उसे मानना होगा।
एक समाचार चैनल को दिए गए इंटरव्यू में जब उसने इस संबंध में सवाल किया गया तो उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री के रूप में कोई टिप्पणी करने के बजाय अपनी निजी राय जाहिर की और कहा कि सभी छात्रों को ड्रेस कोड या यूनिफॉर्म का पालन करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि मेरा व्यक्तिगत मानना है कि स्कूल के ड्रेस कोड को सभी धर्म के लोगों को अपनाना चाहिए। और मामला अब कोर्ट में है। कोर्ट ने स्टे लिया है और कोर्ट अब सुनवाई कर रही है। अदालत का जो फैसला है उसे सबको मानना चाहिए।
शाह ने आगे कहा कि देश को आखिरकार संविधान के आधार पर ही चलना है। मेरी व्यक्तिगत मान्यता तब तक ही रहती है, जब तक अदालत फैसला नहीं देती है। लेकिन अगर अदालत इस पर फैसला देती है तो मुझे भी इसको स्वीकार करनी चाहिए।
इस दौरान उन्होंने हिजाब विवाद में कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया का भूमिका पर कहा कि किसी भी मंशा सफल नहीं होगी। अदालत का फैसला आने के बाद देश की जनता उसको स्वीकार करेगी।
हिजाब का विरोध पिछले महीने उडुपी जिले के सरकारी गर्ल्स पीयू कॉलेज में शुरू हुआ, जब छह छात्रों ने आरोप लगाया कि उन्हें हेडस्कार्फ पहनने पर जोर देने के लिए कक्षाओं से रोक दिया गया था। उडुपी और चिक्कमगलुरु में दक्षिणपंथी समूहों ने मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने पर आपत्ति जताई है।
राज्य भर में यह विवादास्पद मुद्दा थमने का नाम नहीं ले रहा है। मुस्लिम लड़कियों का एक वर्ग कॉलेज में हिजाब पहनने पर अड़ा हुआ है, जबकि राज्य सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों के लिए वर्दी को अनिवार्य बनाने का निर्देश दिया है।
राज्य में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जहां मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनकर महाविद्यालयों में कक्षाओं में जाने की अनुमति नहीं दी जा रही है, जबकि हिजाब के जवाब में हिंदू छात्र भगवा शॉल लेकर शैक्षणिक संस्थान आ रहे हैं।
कर्नाटक हाईकोर्ट सरकारी कॉलेज, उडुपी की एक मुस्लिम छात्रा द्वारा कॉलेज में हिजाब पहनने की अनुमति मांगने वाली एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रहा है। मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि भावनाओं को किनारे रखें। तथ्यों और संविधान के हिसाब से चलना है। अटॉर्नी जनरल को भी भावनाओं को किनारे रखना चाहिए।