राजस्थानः क्या कर्नाटक के नतीजों से सबक लेगा बीजेपी का केन्द्रीय नेतृत्व?

By प्रदीप द्विवेदी | Published: December 11, 2019 05:31 AM2019-12-11T05:31:28+5:302019-12-11T05:31:28+5:30

राजस्थान में करीब दो दशक से केवल पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ही बीजेपी का चेहरा हैं, जिन्हें पूरे प्रदेश के लोग जानते हैं. यही वजह है कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को सियासी तौर पर नजरअंदाज करने के बाद से राजस्थान में लोकसभा चुनाव को छोड़ कर किसी उपचुनाव में बीजेपी को बड़ी कामयाबी नहीं मिली है.

Karnataka bypolls: Rajasthan BJP central leadership narendra modi, vasundhara raje | राजस्थानः क्या कर्नाटक के नतीजों से सबक लेगा बीजेपी का केन्द्रीय नेतृत्व?

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Highlightsकर्नाटक के चुनावी नतीजों ने यह साफ कर दिया है कि क्षेत्रीय क्षत्रपों को किनारे करके एकाधिकार की सियासत से बीजेपी केन्द्र में भले ही कामयाब हो जाए, राज्यों में कामयाबी हांसिल नहीं कर सकती है. जिन राज्यों में बीजेपी की नई एंट्री हुई है, वहां तो बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व का एकाधिकार चल सकता है.

कर्नाटक के चुनावी नतीजों ने यह साफ कर दिया है कि क्षेत्रीय क्षत्रपों को किनारे करके एकाधिकार की सियासत से बीजेपी केन्द्र में भले ही कामयाब हो जाए, राज्यों में कामयाबी हांसिल नहीं कर सकती है. जिन राज्यों में बीजेपी की नई एंट्री हुई है, वहां तो बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व का एकाधिकार चल सकता है, लेकिन राजस्थान जैसे राज्यों में, जहां पहले से ही येदियुरप्पा जैसे ताकतवर प्रादेशिक नेता मौजूद हैं, उन्हें नजरअंदाज करके प्रादेशिक चुनावों में जीत हांसिल करना बीजेपी के लिए आसान नहीं है.

राजस्थान में करीब दो दशक से केवल पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ही बीजेपी का चेहरा हैं, जिन्हें पूरे प्रदेश के लोग जानते हैं. यही वजह है कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को सियासी तौर पर नजरअंदाज करने के बाद से राजस्थान में लोकसभा चुनाव को छोड़ कर किसी उपचुनाव में बीजेपी को बड़ी कामयाबी नहीं मिली है.

यही नहीं, नगर निकाय चुनाव तो बीजेपी हार ही चुकी है, अगले वर्ष की शुरूआत में होने जा रहे पंचायत राज चुनाव में भी बीजेपी की कामयाबी संदेह के घेरे में है.

पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के वसुंधरा राजे से सियासी रिश्ते जगजाहिर हैं. वसुंधरा राजे की नाराजगी की परवाह किए बगैर जहां केन्द्रीय नेतृत्व ने हनुमान बेनीवाल जैसे राजे विरोधियों को एनडीए में साथ ले लिया, तो राजे को प्रदेश की राजनीति से दूर करने के प्रयास भी जारी हैं. हालांकि, उन्हें केन्द्र में उपाध्यक्ष बना कर दिल्ली ले जाने की सियासी योजना बेअसर रही है. उनकी दिलचस्पी केवल प्रादेशिक राजनीति में है और सियासी नजरें सीएम की कुर्सी पर हैं.

सियासी जोड़तोड़ के खिलाड़ी येदियुरप्पा को स्वीकार करना बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व की मजबूरी रही है, क्योंकि उनके बगैर कर्नाटक में बीजेपी कामयाब नहीं हो सकती है. इसी कारण से बीएस येदियुरप्पा सक्रिय राजनीति से अलग हट जाने के लिए मोदी-शाह की लागू की हुई 75 वर्ष की आयुसीमा को तो पार कर ही चुके हैं, अपनी शर्तों और तौर-तरीकों से मुख्यमंत्री भी बने हैं.

याद रहे, वर्ष 2012 में येदियुरप्पा ने बीजेपी छोड़ भी दी थी, लेकिन जनवरी, 2014 में पुनः बीजेपी में लौट आए थे. कर्नाटक में न तो येदियुरप्पा, बीजेपी के बगैर मुख्यमंत्री बन सकते हैं और न ही येदियुरप्पा के बगैर बीजेपी को कर्नाटक की सत्ता मिल सकती है.

कुछ ऐसी ही सियासी स्थिति राजस्थान में भी है, लिहाजा यदि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को बीजेपी का केन्द्रीय नेतृत्व राजस्थान में महत्व नहीं देता है तो अगले साल- 2020 की शुरूआत में होने जा रहे पंचायत राज चुनाव में भी बीजेपी की जीत पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा. इसीलिए बड़ा सवाल है कि- क्या कर्नाटक के नतीजों से सबक लेगा बीजेपी का केन्द्रीय नेतृत्व?

Web Title: Karnataka bypolls: Rajasthan BJP central leadership narendra modi, vasundhara raje

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