Karnataka Assembly Elections 2023: सियासी पार्टियां वोटरों को रिझाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं, जाति की राजनीति और मुस्लिम वोट बैंक पर विशेष जोर
By अनुभा जैन | Published: April 27, 2023 02:15 PM2023-04-27T14:15:51+5:302023-04-27T14:20:40+5:30
कर्नाटक चुनाव में सियासी दल मजहबी आधार पर अपनी कार्य योजना बना रहे हैं, मसलन कांग्रेस और जद (एस) पार्टियां मुस्लिम अल्पसंख्यक वोटों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं वहीं भाजाप मुसलमानों ने मुसलमानों का 4 प्रतिशत आरक्षण खत्म करके एक भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं खड़ा किया है।
बेंगलुरु: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। कर्नाटक में जाति का मुद्दा हमेशा केंद्र में रहा है। पार्टियां जाति की राजनीति कर रही हैं। इसके अलावा कांग्रेस और जद (एस) पार्टियां मुस्लिम अल्पसंख्यक वोटों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं क्योंकि बीजेपी ने मुसलमानों को 4 प्रतिशत आरक्षण खत्म करने के बड़े फैसले की घोषणा की है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि मुस्लिम कर्नाटक के मतदाताओं का लगभग 13 प्रतिशत हिस्सा हैं।
कांग्रेस और जद (एस) अपने रणनीतिक कदम के रूप में जहां भी संभव हो मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतार रहे हैं और मुस्लिम दावेदारों को टिकट दे रहे हैं। दरअसल, आप पार्टी ने सबसे ज्यादा 25 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। जद (एस) पार्टी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री सीएम इब्राहिम को अपना प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है ताकि यह संदेश दिया जा सके कि पार्टी अन्य पार्टियों की तुलना में मुसलमानों के साथ बेहतर न्याय कर सकती है।
वहीं दूसरी ओर भाजपा ने किसी भी अल्पसंख्यक उम्मीदवार को चुनावी मैदान में नहीं उतारा है। इस संबंध में बोलते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, “हम जीतने की क्षमता में विश्वास करते हैं और उसके आधार पर टिकट देते हैं बजाय बहुमत या अल्पमत से।“ कांग्रेस भाजपा की कर्नाटक सरकार के खिलाफ 40 प्रतिशत कमीशन चार्ज और हाल ही में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए वरिष्ठ लिंगायत पदाधिकारियों के साथ पार्टी के दुर्व्यवहार पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है।
ये राजनीतिक पार्टियां बेरोजगारी, एलपीजी सिलेंडर, मोटर ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी, महंगाई आदि जैसे वास्तविक मुद्दों के बारे में गंभीर नहीं हैं। जाति की इस राजनीति का हर दल ने अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया। जब तक यह जातिगत समीकरण दिमाग से बाहर नहीं निकल जाता, तब तक ये चुनाव अलग नहीं होंगे।