कप्पन जातीय तनाव पैदा करने और कानून व्यवस्था बिगाड़ने के लिये हाथरस जा रहे थे: उप्र

By भाषा | Published: November 20, 2020 06:41 PM2020-11-20T18:41:54+5:302020-11-20T18:41:54+5:30

Kappan was going to Hathras to create caste tension and disturb law and order: UP | कप्पन जातीय तनाव पैदा करने और कानून व्यवस्था बिगाड़ने के लिये हाथरस जा रहे थे: उप्र

कप्पन जातीय तनाव पैदा करने और कानून व्यवस्था बिगाड़ने के लिये हाथरस जा रहे थे: उप्र

नयी दिल्ली, 20 नवंबर उत्तर प्रदेश सरकार ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में दावा किया कि हाथरस के रास्ते में गिरफ्तार केरल का पत्रकार सिद्दीक कप्पन ‘पत्रकारिता की आड़ में’ जातीय तनाव पैदा करने और कानून व्यवस्था बिगाड़ने की ‘निश्चित योजना’ के तहत वहां जा रहा था।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ के समक्ष दाखिल हलफनामे में उप्र सरकार ने आरोप लगाया है कि कप्पन पापुलर फ्रण्ट ऑफ इंडिया का कार्यालय सचिव है और वह केरल स्थित उस अखबार का पहचान पत्र दिखाकर ‘पत्रकार होने की आड़ ले’ रहा था जो 2018 में बंद हो चुका है।

कप्पन की गिरफ्तारी पर सवाल उठाने और उसकी जमानत के लिये केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स की याचिका का विरोध करते हुये राज्य सरकार ने कहा कि यह विचार योग्य नहीं है और इस मामले में याचिकाकर्ता की कोई स्थिति नहीं है क्योंकि आरोपी अपने वकीलों और रिश्तेदारों के संपर्क में है तथा वह खुद अपने वकीलों के माध्यम से याचिका दायर कर सकता है।

हलफनामे में कहा गया है, ‘‘जांच के दौरान पता चला है कि वह पीएफआई के अन्य कार्यकर्ताओं और उसकी छात्र इकाई (कैम्पस फ्रण्ट ऑफ इंडिया) के नेताओं के साथ जातीय तनाव पैदा करने और कानून व्यवस्था की स्थिति बिगाड़ने की निश्चित मंशा से पत्रकारिता करने की आड़ में हाथरस जा रहा था और उसके पास से आपत्तिजनक सामग्री मिली है।’’

पीठ के समक्ष उप्र सरकार की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्होंने हलफनामा दाखिल किया है।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘पिछली बार गलत रिपोर्टिंग हुयी थी। मैं गलत रिपोर्टिंग को लेकर चिंतित हूं। रिपोर्ट में कहा गया कि पत्रकार को राहत देने से इंकार ।’’

पीठ ने यूनियन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा कि वह उप्र सरकार के जवाब का अवलोकन करके अपना प्रत्युत्तर दाखिल करें।

पीठ ने कहा, ‘‘आपको जमानत के लिये आवेदन करने का अधिकार है और जवाब पढ़ लें और इसके बाद हम आपको पूरी तरह सुनेंगे।’’

पीठ ने कहा कि राज्य सरकार को न्यायिक राहत के लिये आरोपी के हस्ताक्षर प्राप्त करने के लिये उस तक वकीलों के पहुंचने पर कोई आपत्ति नहीं है।

पीठ ने कहा, ‘‘मामला एक सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया जाये। इस दौरान, अदालती प्रक्रिया के लिये जेल में आरोपी व्यक्ति के हस्ताक्षर लिये जा सकते हैं।

सिब्बल ने कहा कि इससे पहले वकीलों को हस्ताक्षर के लिये कप्पन तक पहुंचने से रोका गया था।

मेहता ने सिब्बल के इस दावे का प्रतिवाद किया और कहा कि न तो उन्हें पहले रोका गया और न ही इसका कोई विरोध है।

पत्रकार सिद्दीक कप्पन को पांच अक्टूबर को हाथरस जाते समय रास्ते में गिरफ्तार किया गया था। वह हाथरस में सामूहिक बलात्कार की शिकार हुयी दलित युवती के घर जा रहे थे। इस युवती की बाद में सफदरजंग अस्पताल में मृत्यु हो गयी थी।

पुलिस ने कहा था कि उसने पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया से संबंध रखने वाले चार व्यक्तियों को मथुरा में गिरफ्तार किया है जिनके नाम-मल्लापुरम निवासी सिद्दीक, मुजफ्फरनगर निवासी अतीकुर रहमान, बहराइच निवासी मसूद अहमद और रामपुर निवासी आलम हैं।

इन गिरफ्तारियों के चंद घंटे बाद ही केरल के पत्रकारों के इस संगठन ने सिद्दीक की पहचान केरल के मल्लापुरम निवासी सिद्दीक कप्पन के रूप में की और कहा कि वह दिल्ली स्थित एक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

राज्य सरकार ने न्यायालय में दाखिल हलफनामे में कहा है कि कप्पन ‘गैरकानूनी हिरासत में नहीं बल्कि न्यायिक हिरासत में है।

मथुरा की जिला जेल के वरिष्ठ जेल अधीक्षक द्वारा दाखिल हलफनामे के अनुसार, ‘‘याचिकाकर्ता ने झूठ का सहारा लिया है और उसने इस मामले को सनसनीखेज बनाने के इरादे से शपथ लेकर झूठे बयान दिये हैं जो इन तथ्यों से साफ हो जाते हैं।’’

हलफनामे में कहा गया है, ‘‘हिरासत में लिया गया व्यक्ति सिद्दीक कप्पन पापुलर फ्रण्ट आफ इंडिया का कार्यालय सचिव है जो केरल के 2018 में बंद हो चुके अखबार का पहचान पत्र दिखाकर पत्रकार होने की आड़ लेता है।’’

हलफनामे में यह भी कहा गया कि जब कप्पन को विशेष कार्य बल द्वारा जांच के सिलसिले में दिल्ली लाया गया तो उसने अपना रिहाइशी पता गलत बता कर पुलिस को गुमराह करने का प्रयास किया और वह जांच में मदद नहीं कर रहा था बल्कि उसने गुमराह करने वाला विवरण दिया।

यह भी आरोप लगाया गया है कि केरल यूनियन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने इस तथ्य को छिपाया कि उन्होंने मथुरा की अदालत में छह अक्टूबर को पेश होने के लिये वकीलों की सेवायें ली थीं और उसे आरोपी को पेश किये जाने के समय और स्थान की पूरी जानकारी थी।

हलफनामे में यह भी कहा गया है कि आरोपी सिद्दीक कप्पन ने कभी भी अपने परिवार या वकील से मुलाकात करने या सक्षम अदालत या जेल प्राधिकारी के समक्ष कोई आवेदन आज तक दाखिल नहीं किया है।

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