CJI के खिलाफ यौन उत्पीड़न मामला: SC के पूर्व जस्टिस लोकुर ने कहा- महिला को मिलनी चाहिए रिपोर्ट
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: May 22, 2019 09:45 AM2019-05-22T09:45:33+5:302019-05-22T09:45:33+5:30
जस्टिस लोकुर ने आगे लिखा, 'बड़ी बात ये कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह नहीं कहा है कि शिकायतकर्ता इस कथित आंतरिक समिति की रिपोर्ट पाने की हकदार नहीं है।'
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी लोकुर ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ एक महिला के यौन उत्पीड़न के आरोपों के मामले में शुरुआत में 'संस्थागत पक्षपात' को रेखांकित करते हुए कहा है कि पूर्व महिला कर्मचारी के साथ 'निष्पक्ष व्यवहार' नहीं हुआ। जस्टिस लोकुर पिछले ही साल दिसंबर में रिटायर हुए थे।
साथ ही उन्होंने महिला को जांच रिपोर्ट सौंपने की भी वकालत की। जस्टिस लोकुर दरअसल जस्टिस गोगोई सहित सुप्रीम कोर्ट के उन चार जजों में शामिल हैं जिन्होंने जनवरी, 2018 में मीडिया के सामने आकर न्यायालय में केसों के बंटवारे को लेकर सवाल उठाये थे। उस समय सीजेआई दीपक मिश्रा थे।
इंडियन एक्सप्रेस के लिए लिखे लेख में जस्टिस लोकुर ने कहा महिला को आतंरिक समिति की रिपोर्ट जरूर सौंपी जानी चाहिए। ऐसा इसलिए ताकि महिला को उन सवालों का जवाब मिल सके जो उसने और दूसरों ने इस मामले में उठाये थे। जस्टिस लोकुर ने सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व के फैसले का हवाला देते हुए रिपोर्ट की कॉपी शिकायतकर्ता को ने देने पर सवाल उठाए।
जस्टिस लोकुर के अनुसार, 'सेक्रेटरी-जनरल ने इंदिरा जयसिंह Vs सुप्रीम कोर्ट के एक मामले का जिक्र करते हुए रिपोर्ट की कॉपी देने से मना किया है। वह फैसला कहीं से भी तार्किक नहीं है। सबस पहले, आतंरिक समिति कोई इन-हाउस जांच नहीं थी, जैसा 1999-2000 में जजों द्वारा समझा गया, जब इन-हाउस प्रक्रिया को अपनाया गया। दूसरी बात ये कि फैसला औपचारिक इन-हाउस जांच के संदर्भ में दिया गया न कि अनौपचारिक इन-हाउस कार्यवाही या आतंरिक समिति के कार्यवाही के संदर्भ में।'
जस्टिस लोकुर ने आगे लिखा, 'बड़ी बात ये कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह नहीं कहा है कि शिकायतकर्ता इस कथित आंतरिक समिति की रिपोर्ट पाने की हकदार नहीं है।'
जस्टिस लोकुर के अनुसार, 'आंतरिक समिति की प्रक्रिया कहती है कि रिपोर्ट की कॉपी संबद्ध जज को दी जाएगी। इसमें कहीं से भी शिकायतकर्ता को रिपोर्ट की कॉपी नहीं देने जैसी कोई रोक नहीं है। ऐसा नहीं आंतरिक समिति की प्रक्रिया में है और न ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐसी कोई रोक लगाता है। ऐसे में किस कानून के तहत शिकायतकर्ता को रिपोर्ट देने से मना किया गया?'
जस्टिस लोकुर ने साथ ही लिखा, 'जो भी 20 अप्रैल, 2019 के घटनाक्रम को देखेगा उसे निश्चित रूप से संस्थागत पक्षपात नजर आयेगा जब सीजेआई ने खुद को इस मामले में जजों की बेंच का अध्यक्ष बताया।'