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न्यायिक हस्तक्षेप कार्यपालिका को चेताने के लिए, न कि निशाना बनाने के लिए : प्रधान न्यायाधीश

By भाषा | Updated: November 26, 2021 22:15 IST

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नयी दिल्ली, 26 नवंबर प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रमण ने शुक्रवार को कहा कि अधिकारों के पृथककरण की लक्ष्मण रेखा को ‘‘पवित्र’’ माना जाता है और कभी-कभी अदालतें न्याय के हित में हस्तक्षेप करने के लिए बाध्य होती हैं जिसका इरादा कार्यपालिका को चेताने के लिए होता है, न कि इसकी भूमिका को हथियाने के लिए तथा न ही इसे इस तरह पेश किया जाना चाहिए कि न्यायपालिका दूसरी संस्था को निशाना बना रही है।

उन्होंने न्यायिक हस्तक्षेप को कार्यपालिका को निशाना बनाने के रूप में पेश करने के किसी भी प्रयास को लेकर आगाह किया और कहा कि यह "पूरी तरह से गलत" है तथा यदि इसे प्रोत्साहित किया गया तो यह लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होगा।

उच्चतम न्यायालय रजिस्ट्री द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह में न्यायमूर्ति रमण ने विशेष रूप से सोशल मीडिया में न्यायाधीशों और न्यायपालिका पर हमलों का मुद्दा उठाया और कहा कि वे "प्रायोजित और समकालिक" प्रतीत होते हैं।

इस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘न्यायपालिका के लिए गंभीर चिंता का विषय न्यायाधीशों पर बढ़ते हमले हैं। न्यायिक अधिकारियों पर शारीरिक हमले बढ़ रहे हैं। मीडिया, खासकर सोशल मीडिया में न्यायपालिका पर हमले हो रहे हैं। ये हमले प्रायोजित और समकालिक प्रतीत होते हैं। कानून लागू करने वाली एजेंसियों, विशेष रूप से केंद्रीय एजेंसियों को ऐसे दुर्भावनापूर्ण हमलों से प्रभावी ढंग से निपटने की जरूरत है। सरकारों से एक सुरक्षित वातावरण बनाने की अपेक्षा की जाती है ताकि न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारी निडर होकर कार्य कर सकें।’’

न्यायमूर्ति रमण ने विशेष रूप से निचली अदालतों में मामलों के बड़ी संख्या में लंबित रहने को "खतरनाक" करार दिया और इससे निपटने के लिए "सभी हितधारकों को शामिल करने वाले एक बहु-आयामी दृष्टिकोण" की वकालत की।

उन्होंने कहा, "वही न्यायपालिका जो केवल पोस्टकार्ड के आधार पर समाधान प्रदान करती है, विरोधाभासी रूप से, विभिन्न जटिल कारणों से नियमित मुकदमों को उनके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने के लिए वर्षों तक संघर्ष करती है।’’

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, "न्यायिक अधिकारियों की मौजूदा रिक्तियों को भरना, अधिक से अधिक पदों का सृजन, लोक अभियोजकों, सरकारी अधिवक्ताओं और स्थायी अधिवक्ताओं के रिक्त पदों को भरना, आवश्यक बुनियादी ढांचे का निर्माण, पुलिस और कार्यपालिका को अदालती कार्यवाही में सहयोग की आवश्यकता के बारे में संवेदनशील बनाना, आधुनिक तकनीकी उपकरणों की तैनाती और बुनियादी ढांचे का विकास लंबित मामलों से निपटने के लिए आवश्यक कदम हैं।’’

उन्होंने कहा कि संविधान द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा पवित्र है, लेकिन कभी-कभी अदालतों को न्याय के हित में हस्तक्षेप करने के लिए बाध्य होना पड़ता है जिसका इरादा कार्यपालिका को चेताने के लिए होता है, न कि इसकी भूमिका को हथियाने के लिए तथा न ही इसे इस तरह पेश किया जाना चाहिए कि न्यायपालिका दूसरी संस्था को निशाना बना रही है।

न्यायमूर्ति रमण ने न्यायिक हस्तक्षेप को कार्यपालिका को निशाना बनाने के रूप में पेश करने के किसी भी प्रयास को लेकर आगाह करते हुए कहा कि यह "पूरी तरह से गलत" है तथा यदि इसे प्रोत्साहित किया गया तो यह लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होगा।

उन्होंने उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों के वास्ते न्यायाधीशों के नामों को मंजूरी देने के लिए केंद्र को धन्यवाद दिया और कहा कि अब शीर्ष अदालत में चार महिला न्यायाधीश हैं तथा उम्मीद है कि रिक्तियों की संख्या "जल्द ही कम से कम" हो जाएगी।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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