जेएनयू विवाद: छात्रसंघ अध्यक्ष एन बालाजी ने कहा-झूठे हैं वीसी एम जगदीश कुमार, पढ़ें 25 मार्च की रात JNU में क्या हुआ था
By निखिल वर्मा | Published: March 27, 2019 08:32 AM2019-03-27T08:32:51+5:302019-03-27T08:33:21+5:30
दिल्ली पुलिस ने भी कहा कि वीसी की पत्नी को बंधक बनाने जैसे कोई घटना नहीं हुई है। पुलिस ने कहा कि कुछ छात्रों द्वारा मार्च निकालने का आह्वान किया गया था, लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें प्रवेश की कोशिश करते समय रोक दिया।
लोकसभा चुनाव 2019 से पहले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) फिर से चर्चा में है। कुलपति एम जगदीश कुमार ने सोमवार को विश्वविद्यालय के छात्रों पर जबरदस्ती घर में घुसने और अपनी पत्नी को बंदी बनाए रखने का आरोप लगाया। जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष एन बालाजी ने वीसी के आरोपों को नकारते हुए कहा कि जगदीश कुमार झूठे हैं। उन्हें छात्रों के हितों से कोई मतलब नहीं है।
क्या है मामला
विश्वविद्यालय के सात छात्र इस अकादमिक सत्र से लागू हो रही प्रवेश परीक्षा के लिये ऑनलाइन प्रणाली के विरोध और विश्वविद्यालय के कुछ कोर्स में फीस कम करने की मांग को लेकर में पिछले 10 दिन से भूख हड़ताल पर बैठे हैं।
25 मार्च की रात में वाम संगठनों के छात्रों ने अनशन स्थल (साबरमती टी स्टॉल) से कुलपति से मिलने की मांग करते हुए उनके घर पहुंचे। पिछले सप्ताह जब छात्र कुलपति से मिलने पहुंचे तो कुलपति ने उनकी चिंताओं को दूर करने बजाय उन्हें मिठाई पेश की थी। छात्रों में इस बात से ज्यादा नाराजगी थी कि वीसी और जेएनयू प्रशासन 8वें दिन भूख हड़ताल के बावजूद भी उनसे बात करने के लिए राजी नहीं है।
छात्रों का हुजूम वीसी के आवास के बाहर जब पहुंचा तो वहां पहले ही विश्वविद्यालय के गार्ड्स तैनात थे। गार्ड्स ने छात्रों को जब आगे बढ़ने नहीं दिया तो हल्की हाथापाई भी हुई। इस घटना में जेएनयू की छात्र गीता कुमारी को चोटें आईं।
इसी बीच कुलपति ने ट्वीट किया, "आज शाम करीब सौ छात्रों ने जबरन मेरे जेएनयू आवास में तोडफ़ोड़ की और मेरी पत्नी को कई घंटों तक घर के अंदर कैद रखा, जबकि मैं एक बैठक में था। क्या यह विरोध का तरीका है? घर में एक अकेली महिला को आतंकित करना?"
लोकमत से विशेष बातचीत में कुलपति के आरोप पर एन बालाजी ने बताया, "हम कुलपति से मिलने गए थे। सुरक्षाकर्मियों ने हमें हिरासत में ले लिया, मेरे साथ कई छात्रों को गंभीर चोट आई है।"
दिल्ली पुलिस ने भी कहा कि वीसी की पत्नी को बंधक बनाने जैसे कोई घटना नहीं हुई है। पुलिस ने कहा कि कुछ छात्रों द्वारा मार्च निकालने का आह्वान किया गया था, लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें प्रवेश की कोशिश करते समय रोक दिया।
वीसी ने किया नहीं किया केस
26 मार्च की सुबह जेएनयू कुलपति एम जगदीश कुमार ने ट्वीट किया 'कल रात जेएनयू में मेरे आवास के सामने छात्रों का हिंसक व्यवहार बेहद निंदनीय है, लेकिन मैं और मेरी पत्नी छात्रों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराएंगे। हमने उन्हें माफ कर दिया है। उन्हें शुभकामनाएं देते हैं और उम्मीद करते हैं कि वे सुधरेंगे और भविष्य में ऐसी हरकतें नहीं दोहराएंगे।'
लोकमत ने जब जगदीश कुमार से संपर्क करने की कोशिश की तो उनका नंबर बंद आ रहा था। 26 मार्च को सुबह को अपने कार्यालय में आए थे लेकिन फिर चले गए। जेएनयू की जनसंपर्क अधिकारी पूनम एस कुदेसिया ने बताया कि छात्रों के मांग पर अभी कुछ निर्णय नहीं लिया गया है। जैसे ही कोई जानकारी होगी तो मीडिया को सूचित किया जाएगा।
विवादों में रहे हैं जगदीश कुमार
एम जगदीश कुमार ने जनवरी 2016 में जेएनयू के कुलपति का पद संभाला था। इसके बाद से ही वह विवादों के केंद्र बने हुए हैं। उनके ही कार्यकाल में नौ फरवरी, 2016 को जेएनयू विश्वविद्यालय परिसर में हुए एक कार्यक्रम में कथित तौर पर देश विरोधी नारे लगे थे। इस मामले में जेएनयू छात्रसंघ के मौजूदा अध्यक्ष कन्हैया कुमार समेत और दो छात्रों को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था। कन्हैया बिहार के बेगूसराय सीट से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि शेहला राशिद ने राजनीतिक पार्टी बना ली है।
एम जगदीश कुमार ने जेएनयू कैम्पस के अंदर सेना से आर्मी टैंक लगाने की मांग की थी। कुलपति का कहना था कि आर्मी टैंक परिसर के अंदर लगाया जाए इससे छात्रों में देश प्रेम की भावना बढ़ेगी। कुमार छात्रों को देशभक्त बनाने के लिए यहीं नहीं रूके। उन्होंने जेएनयू के शिक्षकों और छात्रों ने कारगिल के शहीदों के परिजन और पूर्व सैनिकों के संगठन 'वेटरंस इंडिया' के सदस्यों के साथ 2,200 फुट लंबा तिरंगा लेकर एक मार्च निकाला था और 'वॉल ऑफ' पर श्रद्धांजलि अर्पित किया गया। कुमार ने कार्यक्रम को 'ऐतिहासिक' बताया था।
एक बार एम जगदीश कुमार विवादों में तब आए जब उन्होंने एक सर्कुलर जारी किया था। इस सर्कुलर के मुताबिक हर छात्र का 75 फीसदी अटेंडेंस मार्क करने की बात कही गई थी। जिसके बाद छात्रों ने इस फैसले को एकैडमिक फ्रीडम और तर्कहीन बताते हुए विरोध किया था।