J&K: जोजिला दर्रा औपचारिक तौर पर यातायात के लिए हुआ बहाल, केवल 73 दिनों के बंद रहा श्रीनगर-लेह राजमार्ग
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: March 19, 2022 06:26 PM2022-03-19T18:26:45+5:302022-03-19T18:26:45+5:30
11,650 फीट की ऊंचाई पर स्थित, जोजिला को एक रणनीतिक दर्रा माना जाता है जो चीन सीमा के अतिरिक्त लद्दाख को शेष देश से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
जम्मू: इस बार मात्र 73 दिनों के बाद ही श्रीनगर-करगिल-लेह मार्ग को खोल दिया गया है। आज इसके सबसे ऊंचे स्थल जोजिला दर्रो को खोल दिया है। 11,650 फीट की ऊंचाई पर स्थित, जोजिला को एक रणनीतिक दर्रा माना जाता है जो चीन सीमा के अतिरिक्त लद्दाख को शेष देश से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अममून जोजिला दर्रा हर साल नवंबर के अंत तक बंद हो जाता है, सर्दियों की शुरूआत के साथ, जब तापमान शून्य से कई डिग्री कम हो जाता है। अभी तक यह दर्रा 6 महीनों तक बंद रहा करता था पर कुछ सालों से कम बर्फबारी और सीमा सड़क संगठन की मेहनत का नतीजा है कि इसे इस बार मात्र 73 दिनों के बाद ही खोल दिया गया।
जानकारी के लिए श्रीनगर-लेह राजमार्ग के छह महीनों तक बंद होने से लाखों लोगों का संपर्क शेष विश्व से कट जाता है और ऐसे में उनकी हिम्मत काबिले सलाम है। बात उन लोगों की हो रही है जो जान पर खेल कर लेह-श्रीनगर राजमार्ग को यातायात के लायक बनाते हैं। बात उन लोगों की हो रही है जो इस राजमार्ग के बंद हो जाने पर कम से कम 6 माह तक जिन्दगी बंद कमरों में इसलिए काटते हैं क्योंकि पूरे विश्व से उनका संपर्क कट जाता है।
श्रीनगर से लेह 434 किमी की दूरी पर है। पर सबसे अधिक मुसीबतों का सामना सोनमार्ग से द्रास तक के 63 किमी के हिस्से में होता है। पर बीआरओ के जवान इन मुसीबतों से नहीं घबराते। वे बस एक ही बात याद रखते हैं कि उन्हें अपना लक्ष्य पूरा करना है। तभी तो इस राजमार्ग पर बीआरओ के इस नारे को पढ़ जोश भरा जा सकता है जिसमें लिखा होता हैः‘पहाड़ कहते हैं मेरी ऊंचाई देखो, हम कहते हैं हमारी हिम्मत देखो।’ भयानक सर्दी, तापमान शून्य से कई डिग्री नीचे। खतरा सिरों पर ही मंडराता रहता है। पर बावजूद इसके बीआरओ के जवान राजमार्ग को यातायात के योग्य बनाने की हिम्मत बटोर ही लेते हैं।
आप सोच भी नहीं सकते कि मौसम इस राजमार्ग पर कितना बेदर्द होता है। सोनमर्ग से जोजिला तक का 24 किमी का हिस्सा सारा साल बर्फ से ढका रहता है और इसी बर्फ को काट जवान रास्ता बनाते हैं। रास्ता क्या, बर्फ की बिना छत वाली सुरंग ही होती है जिससे गुजर कर जाने वालों को ऊपर देखने पर इसलिए डर लगता है क्योंकि चारों ओर बर्फ के पहाड़ों के सिवाय कुछ नजर नहीं आता।
याद रहे साइबेरिया के पश्चात द्रास का मौसम सबसे ठंडा रहता है। जहां सर्दियों में अक्सर तापमान शून्य से 49 डिग्री भी नीचे चला जाता है।
राजमार्ग को सुचारू बनाने की खातिर दिन-रात दुनिया के सबसे खतरनाक मौसम से जूझने वाले इन कर्मियों के लिए यह खुशी की बात हो सकती है कि पिछले 3 सालों से किसी हादसे से उनका सामना नहीं हुआ है।
सोनमर्ग से जोजिला तक का 24 किमी का हिस्सा बीकन के हवाले है और जोजिला से द्रास तक का 39 किमी का भाग प्रोजेक्ट हीमांक के पास। बीकन के कर्मी इस ओर से मार्ग से बर्फ हटाते हुए द्रास की ओर बढ़ते हैं और प्रोजेक्ट हीमांक के जवान द्रास से इस ओर।
काबिले सलाम सिर्फ बीआरओ के कर्मी ही नहीं बल्कि इस राजमार्ग के साल में कम से कम 6 महीनों तक बंद रहने से दुनिया से कटे रहने वाले द्रास, लेह और करगिल के नागरिक भी हैं।
इनमें रहने वालों के लिए साल में छह महीने ऐसे होते हैं जब जिन्दगी बोझ बन जाती है। असल में छह महीने यहां के लोग न तो घरों से निकलते हैं और न ही कोई कामकाज कर पाते हैं। जमा पूंजी खर्च करते हुए पेट भरते हैं। चारों तरफ बर्फ के पहाड़ों के बीच लद्दाख के लोगों को अक्तूबर से मई तक के लिए खाने पीने की चीजों के अलाव रोजमर्रा की दूसरी चीजें भी पहले ही एकत्र कर रखनी पड़ती हैं। नमक हो या फिर तेल सब कुछ 6 महीने के स्टाक के साथ जमा होता है।