जम्मू कश्मीर: 30 वर्ष बाद मुहर्रम जुलूस को ‘इजाजत देने’ के प्रशासन के फैसले पर शिया समुदाय बंटा

By भाषा | Updated: August 1, 2021 20:09 IST2021-08-01T20:09:12+5:302021-08-01T20:09:12+5:30

J&K: After 30 years, Shia community divided over administration's decision to 'allow' Muharram procession | जम्मू कश्मीर: 30 वर्ष बाद मुहर्रम जुलूस को ‘इजाजत देने’ के प्रशासन के फैसले पर शिया समुदाय बंटा

जम्मू कश्मीर: 30 वर्ष बाद मुहर्रम जुलूस को ‘इजाजत देने’ के प्रशासन के फैसले पर शिया समुदाय बंटा

श्रीनगर, एक अगस्त शहर के लाल चौक इलाके में यहां तीन दशक बाद प्रतीकात्मक मुहर्रम जुलूस की अनुमति देने के प्रशासन के कथित फैसले को लेकर कश्मीर में शिया समुदाय बंटा हुआ प्रतीत हो रहा है।

ऑल जम्मू एंड कश्मीर शिया एसोसिएशन ने दावा किया है कि प्रशासन ने 30 साल बाद जुलूस की अनुमति देने का फैसला किया है और उसने इस कदम का स्वागत किया है, लेकिन प्रमुख शिया नेता एवं पूर्व मंत्री आगा सैयद रूहुल्लाह मेहदी ने कहा कि इस फैसले को लेकर जवाब की तुलना में सवाल कहीं अधिक उठते हैं।

ऑल जम्मू एंड कश्मीर शिया एसोसिएशन के अध्यक्ष इमरान रजा अंसारी ने कहा कि वे तीन दशक के अंतराल के बाद कश्मीर में मुहर्रम के जुलूस की अनुमति देने के फैसले का स्वागत करते हैं।

उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘इंशाअल्लाह एजेके शिया एसोसिएशन पुरानी परंपरा के तहत इस साल जुलूस का नेतृत्व करेगा।’’

अंसारी ने अंजुमन-ए-शरी शियां अध्यक्ष आगा सैयद हसन अल मूसावी को जुलूस में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया, जो लगभग तीन दशक तक अलगाववादी राजनीति से जुड़े रहे हैं।

पारंपरिक मुहर्रम जुलूस लाल चौक से डलगेट क्षेत्र सहित शहर के कई इलाकों से होकर गुजरता था, लेकिन 1990 में आतंकवाद की शुरुआत होने के बाद से इसे प्रतिबंधित कर दिया गया है क्योंकि प्राधिकारियों का कहना है कि इस धार्मिक आयोजन का इस्तेमाल अलगाववादी राजनीति के प्रचार के लिए किया गया है।

मेहदी ने अबीगुजर से लाल चौक तक प्रतीकात्मक जुलूस निकालने की अनुमति देने के प्रशासन की मंशा पर सवाल उठाये।

बडगाम विधानसभा क्षेत्र से नेशनल कॉन्फ्रेंस का तीन बार प्रतिनिधित्व करने वाले मेहदी ने कहा, ‘‘लिये गए निर्णयों की सूची सामने आयी है, जिसमें यदि मैंने इस आदेश को सही तरह से समझा है तो प्रशासन ने 30 साल के अंतराल के बाद 10वें मुहर्रम जुलूस को अबीगुजर से लाल चौक (2018 में प्रस्तावित एक अस्थायी और वैकल्पिक मार्ग) तक निकालने की अनुमति देने का निर्णय लिया है।’’

उन्होंने कई ट्वीट में कहा कि यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब प्रशासन ने वार्षिक अमरनाथ यात्रा स्थगित कर दी है और इस साल कोविड महामारी के मद्देनजर आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू करके जामा मस्जिद और अन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर ईद की नमाज़ की अनुमति नहीं दी थी।

उन्होंने कहा, ‘‘कुछ दिनों पहले ही पुलिस महानिरीक्षक (कश्मीर) ने लोगों से कोविड प्रोटोकॉल का आह्वान करते हुए कहा था कि वे अपने घरों में ईद मनाएं। फिर से कोविड -19 प्रोटोकॉल को लागू करते हुए जामा मस्जिद में शुक्रवार की नमाज़ को पिछले 100 से अधिक शुक्रवारों से अनुमति नहीं दी गई है और इसे प्रतिबंधित करना जारी रखा गया है। सूची लंबी है।’’

मेहदी ने कहा कि इस तथ्य को देखते हुए कि अन्य सभी प्रमुख धार्मिक समारोहों पर प्रतिबंध जारी रखा गया है और इसमें कोई भी विशेष धर्म अपवाद नहीं है, ‘‘30 साल के अंतराल के बाद अबीगुजर से लाल चौक तक 10 वें मोहर्रम जुलूस के बारे में अचानक लिया गया यह फैसला जवाब के बजाय सवाल कहीं अधिक उठाता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘उन सवालों के जवाब देने के लिए और यह स्पष्ट करने के लिए कि इस फैसले के पीछे कोई नापाक मंशा नहीं है, इस 10वें मुहर्रम जुलूस से पहले जामा मस्जिद में जुमे की नमाज़ होनी चाहिए।’’

शिया नेता ने कहा कि अगर शुक्रवार की नमाज और सभी धर्मों के अन्य प्रमुख धार्मिक कार्यक्रमों पर प्रतिबंध जारी रहता है और ‘‘केवल इस विशेष जुलूस को अचानक प्रोत्साहित किया जाता है, तो मैं समझूंगा कि इसके पीछे नापाक मंसूबे हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘लोगों को इस प्रलोभन और इस जाल में नहीं फंसना चाहिए।’’ मेहदी ने कहा कि इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण की जिम्मेदारी प्रशासन की है।

उन्होंने कहा, ‘‘अब, जब इस साल ईद की नमाज़ का समय बीत चुका है। जामा मस्जिद में भी जुमे की नमाज पर प्रतिबंध हटायें, जैसे आपने अचानक यह फैसला लिया और साबित करें कि कोई नापाक मंशा नहीं है।’’

कश्मीर के संभागीय आयुक्त के पांडुरंग पोल से सम्पर्क के प्रयास सफल नहीं हुए, हालांकि श्रीनगर के उपायुक्त मोहम्मद अजाज असद ने कहा कि वह इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते क्योंकि जिला प्रशासन ने ऐसा कोई आदेश जारी नहीं किया है।

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