Jharkhand naxal area:झारखंड में पुलिस एवं सीआरपीएफ ने संयुक्त अभियान चलाकर पिछले दो साल में नक्सलियों की कमर तोड़ दी है। ऐसे में झारखंड के सबसे बड़े नक्सली संगठन भाकपा माओवादी का तो एक तरह से कहे तो नामोनिशान ही खत्म हो गया है। आपरेशन डबल बुल और आपरेशन आक्टोपस इस बात का साक्ष्य है। कभी बंदूक के बल पर अपनी हुकूमत चलाने वाले सक्रिय नक्सली संगठन अब रंगदारी के धंधे तक सिमट गए हैं। झारखंड पुलिस एवं सीआरपीएफ ने बहुत हद तक नक्सलियों के नकेल कसने में सफलता हासिल की है।
इसके साथ ही राज्य में चार दर्जन से अधिक बड़े नक्सलियों की लेवी-रंगदारी से अर्जित चल-अचल संपत्ति को जब्त कर सुरक्षा बलों ने उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर किया। ऐसे में जब धन नहीं रहा तो इनके पास हथियार की सप्लाई भी रूकी।
वर्ष 2025 में जून माह तक नक्सलियों से कुल 113 हथियार बरामद किया गया, जिसमें पुलिस से लूटा गया 31 हथियार, रेगुलर हथियार 20 एवं देशी हथियार 62 बरामद किए गए। इसके अतिरिक्त गोली 8591, विस्फोटक पदार्थ 17.5 किलोग्राम, 4,51047 नगद लेवी के पैसे नक्सलियों से बरामद किए गए। इसके साथ ही नक्सलियों के द्वारा बिछाए गए 179 आईईडी को बरामद कर नष्ट किया गया। जून माह तक 197 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया, जिसमें रीजनल कमेटी सदस्य-2, जोनल कमांडर एक, सब जोनल कमांडर 7 शामिल हैं।
मारे गए नक्सलियों में 1 करोड़ का इनामी रविन्द्र गंझू, रणविजय महतो, कुंदन खेरवार उर्फ सुधीर सिंह शामिल हैं। इसके साथ ही 10 लाख का ईनामी गौतम यादव, सुनील मुंडा उर्फ भगत जी, रूपेश कुमार उर्फ संजित गिरी, कृष्णा यादव उर्फ तूफान जी सामिल है। जबकि दो लाख का ईनामी दुर्गा सिंह उर्फ पंजरी सिंह, जितेंद्र सिंह खेरवार उर्फ जितेंद्र जी, मुरली भईया उर्फ पप्पू जी को पुलिस ने धर दबोचा। इसके साथ ही 10 नक्सलियों ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
वहीं जून माह तक 19 नक्सली मारे गए। जिसमें एक करोड का इनामी विवेक उर्फ प्रयाग मांझी, अरविंद यादव उर्फ अशोक, साहेब राम उर्फ राहुल। जबकि दस लाख का इनामी विनय गंझू उर्फ पप्पू लोहरा, मनीष यादव उर्फ मनीष जी शामिल है। इसी तरह पांच लाख का इनामी सुदेश गंझू उर्फ प्रभात जी, हेमंती मंझियान, शांति देवी, एवं राहुल तिवारी उर्फ आलोक जी के अलावे सात अन्य शामिल हैं।
उल्लेखनीय है कि लोहरदगा-लातेहार सीमा पर बुलबुल जंगल में चला सुरक्षाबलों का ऑपरेशन डबल बुल हो या फिर वर्तमान में बूढ़ा पहाड़ पर चल रहा ऑपरेशन ऑक्टोपस, इसी रणनीति से नक्सलियों पर दबदबा बनाया गया।
एक समय था जब राजधानी रांची के ग्रामीण इलाकों में नक्सलियों की तूती बोलती थी भाकपा माओवादी, पीएलएफआई, टीपीसी और जेजेएमपी जैसे संगठन बेहद एक्टिव थे, लेकिन अब हालात बिल्कुल ही उलट हो गए हैं जो संगठन बंदूक के बल पर आतंक फैलाते थे, वे अब अपराधियों की तरह रंगदारी वाले धंधे में शिफ्ट हो चुके हैं।
वहीं, टीपीसी और पीएलएफआई जैसे उग्रवादी संगठन का एक मात्र धंधा रंगदारी का ही रह गया है। इंटरनेट कॉल और दूसरे तरह के ऐप का प्रयोग कर यह दोनों संगठन कारोबारी से रंगदारी मांगने में ही व्यस्त हैं।
पिछले एक साल के दौरान राजधानी से 100 से ज्यादा उग्रवादी और उनके समर्थक यहां तक कि पोस्टर छापने वाले भी लेवी मांगने और लेवी नहीं मिलने पर आगजनी के मामलों में जेल गए हैं।
बता दें कि साल 2000 से लेकर साल 2015 तक रांची के ग्रामीण इलाकों में अलग-अलग नक्सली संगठनों की तूती बोलती थी। रांची के बुंडू, तमाड़, सिल्ली, अनगड़ा, सोनाहातू और दशम फॉल इलाके में भाकपा माओवादियों की तूती बोलती थी। इन इलाकों में कुंदन पाहन जैसे दर्जन भर कुख्यात नक्सली सक्रिए थे।
आए दिन इन इलाकों में नक्सली अपनी धमक दिखाते थे। इस इलाके में डीएसपी रैंक तक के अफसर की हत्या नक्सलियों के द्वारा की गई थी। झारखंड में टीपीसी, पीएलएफआई और जेजेएमपी के साथ-साथ कुछ इलाकों में भाकपा माओवादी भी सक्रिए थे, लेकिन पुलिस के ताबड़तोड़ अभियान के बाद सबसे ज्यादा नुकसान भाकपा माओवादियों को ही हुआ। वहीं, टीपीसी, जेजेएमपी और पीएलएफआई लगभग समाप्त ही हो गए।